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यहाँ साफ़ कर दूं कि समकालीन कविता पर मेरी जानकारी नहीं के बराबर है, और इस किताब की कविताएँ और कवि मेरे लिए नए हैं अधिकतर (किताब में नागार्जुन, मुक्तिबोध, त्रिलोचन, शमशेर आदि की भी एक एक कविता है,) लेकिन उस समय के नए कवियों की भरमार है। इसलिए यहाँ सिर्फ अपनी पसंद की कविताएँ लगा रहा हूँ। नेत्रसिंह असवाल को इंटरनेट पर ढूँढने पर सिर्फ यह पता चला कि वे गढवाली के एक बड़े कवि हैं। चूंकि कविता किताब में 'गढवाली कविता' के नाम से छपी है, इसलिए शायद यह एक अनुवाद है... शायद हमारे पाठकों में से किसी के पास मूल कविता हो, अगर मिल जाए तो क्या कहना !
यह कविता किसी भयावह गहरी अंधेरी खाई की ओर नहीं ले जाती बल्कि ठेठ देशी- रास्तों पर नयी उमंग/नयी इबारत के साथ चलने को उकसाती है.. यहाँ साफ़ कर दूं कि समकालीन कविता पर मेरी जानकारी नहीं के बराबर है, और इस किताब की कविताएँ और कवि मेरे लिए नए हैं अधिकतर (किताब में नागार्जुन, मुक्तिबोध, त्रिलोचन, शमशेर आदि की भी एक एक कविता है,) लेकिन उस समय के नए कवियों की भरमार है। इसलिए यहाँ सिर्फ अपनी पसंद की कविताएँ लगा रहा हूँ। नेत्रसिंह असवाल को इंटरनेट पर ढूँढने पर सिर्फ यह पता चला कि वे गढवाली के एक बड़े कवि हैं। चूंकि कविता किताब में 'गढवाली कविता' के नाम से छपी है, इसलिए शायद यह एक अनुवाद है... शायद हमारे पाठकों में से किसी के पास मूल कविता हो, अगर मिल जाए तो क्या कहना !
'गढवाली कविता'
- नेत्रसिंह असवाल
मैं चाहता हूँ -
कि मेरे देश का हर व्यक्ति कवि हो
और हर कवि के काँधे पर हल हो
तब कविता पर कोई भूत नहीं चढ़ पाएगा।
मैं चाहता हूँ- कि मेरे देश का हर पत्थर भगवान हो
बेशक हो पर गोबर-गणेश न हो
हो तो ऐसा हो- जिससे वक़्त पड़ने पर
तोड़े जा सकें -नरभक्षी बाघ के दांत
चील-कौवों के पर
सियार- लोमड़ों के सर
जो बढ़कर थाम ले ढहते घर की दीवार को।
अपने ही घर में पराई हुई
मुर्गी-सी कुड़-कुडा रही है ज़िंदगी
कविता-खोया हुआ चूजा हो सकती है
डायन-सी मंडरा रही बाज़ हो सकती है
मुच्छड़ कसाई हो सकती है
कविता-गुबरौटी हो सकती है
जिससे माँ रोज़ सुबह
नन्हे-मुन्ने भैया का पेशाब किया हुआ फर्श
और देवता का थान लीपती है।
कविता-हल का फाल हो सकती है
जिससे खेत की एक एक गाँठ- खोलती है
कविता - हल की सीम के साथ-साथ
बोया जाता बीज हो सकती है
या पीछे-पीछे ढेम फोड़ती
किसानों की आँखों का सपना, ओंठों का गीत
कुदाली का संगीत
या हथेली पर फूट- फूट आया, जलता छाला हो सकती है
कविता-खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक
पाटा फेरना हो सकती है !
कविता कुछ भी हो सकती है, कुछ भी कह सकती है, कुछ भी कर सकती है।
ReplyDeleteaabhaar is kavita k liye
ReplyDeleteनेत्रसिंह असवाल गढ़्वाली कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं . यह कविता मैंने रघुवीर सहाय के जमाने की दिनमान में पढी थी.उनके कविता संग्रह ‘ढांगा से साक्षात्कार’ में इसे मूल गढ़्वाली में पढा जा सकता है.
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