Sunday, December 18, 2011

'इस सदी की तिश्नगी का ज़ख्म होंठों पर लिए' : अलविदा अदम गोंडवी


         अदम गोंडवी
(२२ अक्तूबर १९४७ - १८ दिसंबर २०११)


न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से।
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से।


कि अब मर्क़ज़ में रोटी है,मुहब्बत हाशिये पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से।


अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से।


बहारे - बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से।


अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से।            

                                 नहीं रहे अदम गोंडवी...
जनता की टीस ,पीर और उम्मीद के इस बड़े कवि को नमन ...श्रद्धांजलि!



देश - दुनिया के तमाम कठिन हालात के बीच रहते - गुजरते हुए भी  'जुल्फ - अंगडाई - तबस्सुम - चाँद - आईना -गुलाब' जब हिन्दी - उर्दू की साझा कविता - शायरी  के एक बड़े हिस्से पर उपस्थित हो और लोभ - लालच - लिप्सा के कुहरीले तम में  साफ दिखाई देता हो कि 'पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान' की जमात  के लिए 'मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है' और चहुँओर चौबीसों घंटे  की दौड़ा - दौड़ी ,  भागमभाग ऐसी कि महसूस होने लगे कि  'इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब' तो प्रतिरोध  की परम्परा को  आगे ले जाने वाले जिस कवि का नाम ध्यान में आता है वह है अदम गोंडवी जिसके शब्द रास्ता दिखाते हैं कि 'अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो' और अक्षर - अक्षर शब्द - शब्द की खेती करने वाले  लोगों का आवाहन करते हैं कि 'आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को' ....

5 comments:

  1. गोंडवी साहब को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  2. अदम गोंडवी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  3. श्रद्धासुमन...
    नमन.

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  4. दुखद है उनका जाना.श्रद्धांजलि जनकवि को.

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