Friday, November 9, 2012

दुर्लभ मल्लिकार्जुन मंसूर

मल्लिकार्जुन मंसूर का एक दुर्लभ चित्र, छायाकार- टी. एन. सत्यन 

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत रागों के वक्त तय हैं. इनको किसी जड़ बंटवारे की तरह नहीं देखना चाहिए. आमतौर पर ये राग उस समय के मूड को ध्यान में रखकर बांटे गए हैं. जिस समय के ये राग हैं, उस समय इनको गाने-सुनने से संगीत को हम ज्यादा महसूस कर सकते हैं. अब बदलती हुई दुनिया में ठीक-ठीक ऐसा ही नहीं रह गया है, पर सुबह-सुबह भैरव जैसे राग सुनने से सुकून तो मिलता ही है. ऐसा ही एक कम सुना सुबह का राग राग है- कुकुभ बिलावल.

सुनिए पंडित मल्लिकार्जुन की अद्भुत आवाज में यही राग, बोल हैं -  रे देवता...

1 comment:

  1. ज़बरदस्त! परम आनंद! धन्यवाद मृत्युंजय!

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