Saturday, October 12, 2013

प्रेम के बारे में एक शब्‍द भी नहीं


प्रेम के बारे में एक शब्‍द भी नहीं 

-वीरेन डंगवाल 


शहद के बारे में 
मैं एक शब्‍द भी नहीं बोलूंगा 

वह 
जो बहुश्रुत संकलन था 
सहस्‍त्र पुष्‍प कोषों में संचित रहस्‍य रस का 

जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव 
न जाने कब 
एक तर्जनी की पोर से 
चखी थी उसकी श्‍यानता 
गई नहीं अब भी वह 
काकु से तालु से 
जीभ के बींचों-बीच से 
आंखों की शीतलता में भी वही 

प्रेम के बारे में 
मैं एक शब्‍द भी नहीं बोलूंगा. 

(चित्र - ऑस्ट्रियाई चित्रकार गुस्ताव क्लिम्ट की एक पेंटिंग की डीटेल)

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मिठास सहस्र कर्मों का प्रतिफल है, मधु एकत्र करने सा, प्रेम भी वही है। बहुत सुन्दर कविता।

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 13/10/2013 को किसानी को बलिदान करने की एक शासकीय साजिश.... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः34 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


रश्मि शर्मा said...

बहुत सुंदर कवि‍ता