Thursday, August 21, 2014

इलायची भर देती है हवा और देह को


घर में बैठा रहता हूँ मैं

- महमूद दरवेश

घर में बैठा रहता हूँ मैं, न उदास, न ख़ुश,
न पूरा मैं, न दूसरा कोई.

बिखरे हुए अखबार.
फूलदान के ग़ुलाब मुझे याद नहीं दिलाते
किसने तोड़ा था उन्हें मेरे लिए.
आज स्मृति से छुट्टी है,
हर किसी चीज़ से छुट्टी ...
आज इतवार है.

जिस दिन हम अपनी रसोई और बेडरूम को तरतीब से लगाते हैं.
हर चीज़ अपनी जगह है. शांति से सुनते हैं
समाचार. कहीं कोई जंग नहीं छिड़ी हुई है.

प्रसन्न शहंशाह अपने कुत्तों से खेलता है,
हाथीदांत के स्तनों के बीच से पीता है शैम्पेन,
और झाग में तैरता है.

इकलौता शहंशाह आज लेता है दोपहर की अपनी नींद
मेरी तरह, और तुम्हारी तरह.वह पुनरुज्जीवन के बारे में नहीं सोचता, वह
उसे अपने दांये हाथ में थामे रहता है, और यही सत्य और अनन्तता है.

कमज़ोर और हल्की मेरी कॉफ़ी उबलती है.
इलायची भर देती है हवा और देह को.

यह ऐसा है जैसे मैं अकेला होऊं. मैं वह हूँ
या मैं हह वह दूसरा. उसने मुझे देखा और
मेरे दिन को लेकर सुनिश्चित होकर वह चल दिया.

इतवार
तोरा का पहला दिन होता है मगर
युद्ध के देवता के लिए समय बदल लेता है अपनी रिवायत
और अब आराम किया करता है इतवार को.

घर में बैठा रहता हूँ मैं, न उदास, न ख़ुश, बीच में और दरम्यान.
मुझे कतई फर्क नहीं पड़ेगा अगर मुझे जानना होगा

कि मैं पूरी तरह मैं नहीं हूँ ... या कोई और!

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तोरा: तोरा (अरबी में तौरात) यहूदियों का मूल धर्मग्रंथ है. यह उनकी पाँच मुक़द्दस किताबों से बना है. दरवीश का तोरा से यही तात्पर्य है.