Monday, January 12, 2015

कैसी-कैसी क्रिकेट कमेंट्री - 10 - रेक्स एल्स्टन


कुछेक और भी मजाकिया वाक्य उनके मुंह से जब-तब निकले थे जैसे कि “ओवर नाऊ टू ओल्ड जॉन आर्लट एट ट्रेफोर्ड,” और “नो रन्स फ्रॉम दैट ओवर बोल्ड बाय जैक यंग, व्हिच मीन्स दैट ही हैज़ नाऊ हैड फ़ॉर मेडन्स ऑन द ट्रॉट.” खेल पर ध्यान देने की उनकी आदत इतनी पुख्ता थी कि कमेंट्री करते वक़्त वे अपने दोनों हाथ कानों पर धर लिया करते थे जिससे उनकी दृष्टि किसी सुरंग जैसी बन जाया करती. 

एक दफा उन्होंने जिम स्वान्टन की तरफ एक सवाल उछाला. सवाल करते ही उन्हें अहसास हुआ कि उनके साथी कमेंटेटर महोदय टॉयलेट गए हुए हैं. एक और अविस्मरणीय घटना में उनके साथ आर्थर गिलीगन एक्सपर्ट के बतौर मौजूद थे. उन्होंने गिलिगन से पूछा “क्या कहते हो आर्थर?” एल्स्टन ने मुड़कर देखा तो इंग्लैण्ड के पूर्व कप्तान गहरी नींद में सोये हुए थे. एल्स्टन ने गिलीगन की पसलियों में उंगली चुभाई तो गिलीगन ने पुरूस्कार जैसा देते हुए कहा “तुमने अभी अभी जो कुछ कहा उस सब से में पूरी तरह सहमत हूँ रेक्स.” और उन्होंने छाती पर गर्दन ढुलका कर बाकायदा खर्राटे लेने शुरू कर दिए.

अपनी तमाम शरारतों के बावजूद ब्रायन जॉनस्टन का मानना था कि एल्स्टन “मेहनती और शुद्धतावादी थे और कतई पक्षपात नहीं किया करते थे.”

एल्स्टन ने १९६४ तक नियमित कमेंट्री करना जारी रखा हालांकि आधिकारिक रूप से वे बीबीसी से 60 साल की वैधानिक आयु में १९६१ में रिटायर हो गए थे. उसके बाद उन्होंने ‘डेली टेलीग्राफ’ के लिए लिखना शुरू किया और बाद के वर्षों में कई किताबें लिखीं.

१९८७ में यानी अपनी खुद की मृत्यु का शोक-समाचार पढ़ने के एक साल बाद इस अजीम कमेंटेटर को बीबीसी ने १९८७ में एमसीसी के द्विशाताब्दी टेस्ट के लिए बॉक्स में आमंत्रित किया. उनकी आवाज़ तब भी युवा और मज़बूत सुनाई देती थी.

हां, कुछ दिक्कतें जस की तस बनी हुई थीं – मसलन पाकिस्तानी क्रिकेटरों के नामों के उच्चारण के साथ उनकी क्रोनिक परेशानी : “इट्स अब्दुल व्हट नॉट.माई वर्ड! ही’ज़ अ ग्रेट बोलर, ही इज़.” उनकी अदाएं श्रोताओं को इस कदर भाईं कि उन्हें 20 मिनट का एन्कोर जिद करके कराया गया.

जब १९९४ में उनका स्वर्गवास हुआ उनके साथी कमेंटेटर रॉबर्ट हडसन ने ‘द इन्डीपेन्डेन्ट’ में उन्हें याद करते हुए लिखा कि वे एक शानदार कमेंटेटर ब्रॉडकास्टर होने के साथ साथ एक दयालु व्यक्ति थे. उन्होंने यह भी जोड़ा “इस दफ़ा वे अपना शोक-समाचार नहीं पढ़ सकेंगे.”

(अगली कड़ी में एक और महान कमेंटेटर इंग्लैण्ड के जॉन आर्लट)

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