tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post2794080621899036493..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: वान गॉग को एब्सिन्थ पसंद थी और हमारे क्रिएटू को पॉवरAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-46411915523170344502008-10-13T19:01:00.000+05:302008-10-13T19:01:00.000+05:30यहां भी पढ़ा। फिर मजा आया। आपने सही नब्ज पकड़ी है।...यहां भी पढ़ा। फिर मजा आया। आपने सही नब्ज पकड़ी है।ravindra vyashttps://www.blogger.com/profile/14064584813872136888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-26617978167169286522008-10-12T21:08:00.000+05:302008-10-12T21:08:00.000+05:30हमारे क्रिएटू.... वाह ! बढि़या लगी पोस्ट। मुझे लग...हमारे क्रिएटू.... वाह ! <BR/>बढि़या लगी पोस्ट। मुझे लगता है अभी और भी है कुछ आपके पास इस बारे में कहने के लिए...।शायदाhttps://www.blogger.com/profile/17484034104621975035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-62691078536315392582008-10-12T19:46:00.002+05:302008-10-12T19:46:00.002+05:30bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.वीरेन डंगवालhttps://www.blogger.com/profile/12029699371049325391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-25153641890434672312008-10-12T19:46:00.001+05:302008-10-12T19:46:00.001+05:30bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.वीरेन डंगवालhttps://www.blogger.com/profile/12029699371049325391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-6889648413113081892008-10-12T19:46:00.000+05:302008-10-12T19:46:00.000+05:30bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.bhaiyo, kya kamal ka kohram hai.uttam.वीरेन डंगवालhttps://www.blogger.com/profile/12029699371049325391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-18173923728856602322008-10-12T17:21:00.000+05:302008-10-12T17:21:00.000+05:30धत् तेरे की! मिसरा-ए-उला में 'थे' रह गया.धत् तेरे की! मिसरा-ए-उला में 'थे' रह गया.विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-13048145706682600062008-10-12T17:18:00.000+05:302008-10-12T17:18:00.000+05:30अशोक-अनिल की जुगल जोड़ी ने सही नब्ज पकड़ने की कोशिश...अशोक-अनिल की जुगल जोड़ी ने सही नब्ज पकड़ने की कोशिश की है. मैंने भी देखा है कि मिर्ज़ा ग़ालिब से लोगों ने मुख्य लपक पकड़ी शराबखोरी और कर्ज़ लेने की... <BR/>चचा कह भी गए हैं- <BR/>कर्ज़ की पीते थे मय और समझते कि हाँ<BR/>रंग लायेगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन...<BR/><BR/>...सो यार लोग बलानोशी और कर्जखोरी में पारंगत हो गए और रचनात्मक समुद्र सूखता गया.<BR/>वैसे भी कृत्रिम चीजों की नक़ल मारना मनुष्य के लिए विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-1025072435900734092008-10-12T14:23:00.000+05:302008-10-12T14:23:00.000+05:30"लेकिन पियक्कड़ ओ, हेनरी, पैसोआ वगैरह का अपने काम ..."लेकिन पियक्कड़ ओ, हेनरी, पैसोआ वगैरह का अपने काम के प्रति समर्पण गहरा, प्रमुख और एकाग्र है"<BR/><BR/>फर्क यहीं से पैदा होता है अनिल भाई। जब समर्पण अपने काम की बजाय सिगरेट, बीड़ी, गाँजा, दारू और न जाने काहे काहे के प्रति हो तो कहाँ से होगा कालजयी काम। वैसे भी किसको काम से महान होने की पड़ी है। जब चरणवंदना, चाटुकारी और चमचों के सहारे ही "महान" बना जा सकताहै। और फ़िर 'तू मेरी तारीफ़ कर मै तेरी करूंगाएस. बी. सिंहhttps://www.blogger.com/profile/09126898288010277632noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-17915922956771382962008-10-12T13:55:00.000+05:302008-10-12T13:55:00.000+05:30कुछ कहने की ज़रूरत है? जो बात सच हो उसको किसी की दु...कुछ कहने की ज़रूरत है? जो बात सच हो उसको किसी की दुहाई की क्या ज़रूरत है?<BR/>अनिल भाई की बात पढ़कर रिल्के की दो बातें याद आ गईं:<BR/>"वह उत्तर जो तुम्हे केवल अपने एकांत में अपनी अंतरतम अनुभूतियों के समकक्ष खड़े रहकर मिल सकते हैं, उनको बाहर की अपेक्षाओं से जोड़कर अपने को छितराओ मत।"<BR/>"कलाकार का अनुभव अविश्वस्नीय रूप से सेक्स के एकदम करीब होता है, उन्ही पीड़ाओं और प्रफुल्लताओं जैसा, इतना कि लगे ये महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-12194134106179379392008-10-12T09:27:00.000+05:302008-10-12T09:27:00.000+05:30अशोक जी बहुत बढिया comparision है, आपकी बात १०० फी...अशोक जी बहुत बढिया comparision है, आपकी बात १०० फीसदी सही है, यहाँ बास्तविक कलकार जो मात्र रचने के लिए पैदा हुए हों कम होते हैं और अगर होते हैं तो गुमनाम मर जाते हैं, यहाँ पावर की दरकार ज्यादा है <BR/>वेन गो को जो जान लेगा उनका मुरीद हुए बिना नही रह पायेगा....Sajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com