tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post3258602904729519860..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: ज्ञानरंजन की कहानियाँ - ७ Ashok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-81169641484892003312014-11-23T18:40:33.032+05:302014-11-23T18:40:33.032+05:30हास्यरस के वाकई हँसी दिला दी। सोचा नहीं था कि प्र...हास्यरस के वाकई हँसी दिला दी। सोचा नहीं था कि प्रेम विवाह करने के बाद किसी के मन में ऐसे ख़याल भी आ सकते हैं। वैसे इसमें कुछ गलत भी नहीं है अक्सर विवाह का मतलब जिम्मेदारियां ही होता है फिर वो प्रेम विवाह हो या घर वालों द्वारा कराया गया। कहानी को पढ़कर लगा कि महाशय ने जोश जोश में सर ओखली में दे दिया। विकास नैनवाल 'अंजान'https://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com