tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post3880706878007007701..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: तुम उठा लाए एक ही बार में एक स्त्री के निधन के बाद की भी रातें!Ashok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-68233406815779666552013-01-02T22:16:06.967+05:302013-01-02T22:16:06.967+05:30यह कविता हंस के दिसंबर 88 अंक में छपी थी...मंगलेश ...यह कविता हंस के दिसंबर 88 अंक में छपी थी...मंगलेश डबराल की टिप्पणी के साथ दूसरी कविता पतंग भी...<br />इस कविता जा जादू मेरे ऊपर आज तक सिनेमा के लेंप पोस्टों की तरह जगा हुआ है...<br />बहुत साल हुए हंस की फाईल गुम हो गयी.शुक्रिया...अपनी स्मॄति को जांचने के लिये.<br />और यह आलोक का जादू...फिर अवधेश की पंक्ति याद आती है-<br />यह जीवन जादू हुआ जाता हैnaveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-36578245786313973022013-01-01T16:59:15.340+05:302013-01-01T16:59:15.340+05:30sach me adbhut...:)
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सुना था इक्कीस दिसम्बर को धर...sach me adbhut...:)<br />.<br />सुना था इक्कीस दिसम्बर को धरती होगी खत्म<br />पर पाँच दिन पहले ही दिखाया दरिंदों ने रूप क्रूरतम<br />छलक गई आँखें, लगा इंतेहा है ये सितम<br />फिर सोचा, चलो आया नया साल<br />जो बिता, भूलो, रहें खुशहाल<br />पर आ रही थी, अंतरात्मा की आवाज<br />उस ज़िंदादिल युवती की कसम<br />उसके दर्द और आहों की कसम<br />हर ऐसे जिल्लत से गुजरने वाली<br />नारी के आबरू की कसम<br />मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-59153439671936044542013-01-01T14:13:42.309+05:302013-01-01T14:13:42.309+05:30अद्भुत कवितायेँ अद्भुत कवितायेँ लोकेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com