tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post5158080964854506291..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: ब्लॉग और भाषा का जनपक्षAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-40929939880127214872008-01-29T10:11:00.000+05:302008-01-29T10:11:00.000+05:30भाषा तो दरिया है । बहाव में ही शुद्धता भी है और ता...भाषा तो दरिया है । बहाव में ही शुद्धता भी है और ताज़गी भी। मगर लोक बोली के उच्चारण अगर हिन्दी पर थोपने की वकालत होगी तो हिन्दी भी गई और लोकभाषा भी गई। उच्चारण के फर्क से ही तो हिन्दी का उसकी बोलियों से मोटा मोटा अन्तर पहचाना जाता है न....<BR/>मैने शब्दों के सफर में http://shabdavali.blogspot.com/2008/01/blog-post_3081.html<BR/>यही लिखा है कि आमजन को हिन्दी के मठवाद से दूर रखें पर जो कर सकें तो अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-14366016802189738742008-01-29T04:30:00.000+05:302008-01-29T04:30:00.000+05:30पोस्ट में मेरी टिप्पणी का ज़िक्र है इसलिए लिख रह हू...पोस्ट में मेरी टिप्पणी का ज़िक्र है इसलिए लिख रह हूँ.<BR/><BR/>Apparently हिन्दी में एक saying है.. सब धान बाईस पसेरी.. आप ने वाही कर दिया.... दिलीप कुमार को happy birth day कहने पर objection raise करने वाला में ही था. लेकिन आपने मुझे उन लोगों के rank में put कर दिया जो language fanatic हैं. what I mean is that यार तुसी समझते हो न की this hindi fundamentalism is you know चलने वाला नही है. youThird Eyehttps://www.blogger.com/profile/15698316715337394391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-39794865279728552362008-01-28T20:25:00.000+05:302008-01-28T20:25:00.000+05:30दीलीप जी तर्क और कुतर्क लगभग हर चीज़ के दिए जा सकत...दीलीप जी तर्क और कुतर्क लगभग हर चीज़ के दिए जा सकते है। अपने जीवन मे बहुत कुछ हम स्व -अभ्यास से सीखते है, अपने आस-पास लोगो को सुनकर सीखते है, रेडियो- टीवी से भी सीखते है, और दूनिया भर की किताबो से भी। फिर इस सीख-सीख कर कभी इस लायक भी हो जाते है कि ज्ञान के सागर मे एक बूँद खुद भी मिला दे। स्कूल से, या कोलेज से सिर्फ बुनियादी शिक्षा मिलती है, या कहे तो एक मतलब मे साक्षर हो जाते है, शिक्षा जीवन के स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-54871841122398724442008-01-28T14:55:00.000+05:302008-01-28T14:55:00.000+05:30आप की सब बातें जायज़ है पर साथ-साथ इरफ़ान की चिंताएं...आप की सब बातें जायज़ है पर साथ-साथ इरफ़ान की चिंताएं भी.. उन्होने परिश्रम करके अपने को ठीक किया है.. मैं खुद भी लगातार अपने हिज्जों और नुक़्तों को लेकर सचेत बने रहने की कोशिश करता हूँ और मानता हूँ कि जो भी ज़िम्मेदारी के स्थानों पर हैं वे भी इसे समझें.. नहीं तो एक मधुर भाषा की मधुर ध्वनियों को खोकर नुक़सान हमारा ही होगा..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-47274033751169419852008-01-28T14:41:00.000+05:302008-01-28T14:41:00.000+05:30दिलीप जी, आपकी बात से मै सहमत हू। हिन्दी एक बनती ...दिलीप जी, आपकी बात से मै सहमत हू। हिन्दी एक बनती हुई भाषा है। इसका अभी स्थिरीकरण नही हुआ है। विकासशील जीवित भाषाओ का स्थिरीकरण होता भी नही है। मै खुद छ्त्तीसगढ के सीमान्त के एक गाव से हू। ६ से ८ दर्ज़े तक 'गलत हिन्दी' लिखने के लिए हमारे नम्बर काटे जाते रहे। हमे दण्ड मिलता रहा। बाद मे हमने जाना कि अरे ये तो खडी हिन्दी के भीतर भी 'कोलोनीज़' है। साहित्य मे आकर तो यह पारदर्शी आईने जैसा साफ़ हुआ। 'शुद्धUday Prakashhttps://www.blogger.com/profile/07587503029581457151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-22638355203635090322008-01-28T12:58:00.000+05:302008-01-28T12:58:00.000+05:30इरफ़ान भाई , मैं सीखने के लिये तैयार हूँ.शागिर्द बन...इरफ़ान भाई , मैं सीखने के लिये तैयार हूँ.शागिर्द बनायेंगे क्या? <BR/><BR/>आपका सही नाम लिखना तो सीख ही लिया. ;-)काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-60051778426124786962008-01-28T11:55:00.000+05:302008-01-28T11:55:00.000+05:30आपकी बात को उचित संदर्भ में समझने की कोशिश कर रहा ...आपकी बात को उचित संदर्भ में समझने की कोशिश कर रहा हूँ उसी तरह जैसे आपने मेरी बात समझी होगी. भाषा के लोकपक्ष के समर्थन में आपकी बातों से उन्हें भी शक्ति मिलेगी जो अपनी मूर्खताओं को दार्शनिक जामा पहनाना चाहते हैं, इस ख़तरे से में अवगत हूँ. अगर हमारे लालन-पालन में और शिक्षण में कोई कमी है तो हम अपने बच्चों को उसका शिकार नहीं बनने देना चाहते और बच्चे ही क्यों, मौक़ा लगते ही अपनी कोशिशों से उस किये को इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-72501626741700345442008-01-28T11:16:00.000+05:302008-01-28T11:16:00.000+05:30हिन्दी का नेट संस्करण रचा जा रहा है और हम इसके साक...हिन्दी का नेट संस्करण रचा जा रहा है और हम इसके साक्षी है. <BR/><BR/>भाषा या भासा तो बहता पानी है, बहेगा...ही.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com