tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post5922058657387203761..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: एक छोटी सी जन्नत थी हमारी बरसातीAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-15682957100957028502016-11-04T09:48:55.930+05:302016-11-04T09:48:55.930+05:30लीजिए पीकर देखिए यह ग्रीन टी - हरी चाय
जिसे पिलाकर...लीजिए पीकर देखिए यह ग्रीन टी - हरी चाय<br />जिसे पिलाकर पैंतीस बरस हुए उसने मेरा दिल<br />जीतने की पहली कोशिश की थी<br />तब मैं हरी चाय के बारे में जानती न थीAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/10221778115235345495noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-78101553893545300502010-07-30T00:14:33.749+05:302010-07-30T00:14:33.749+05:30कभी कभी तो एक बदमिज़ाज छोटे भाई की तरह
वह ध्यान मे...कभी कभी तो एक बदमिज़ाज छोटे भाई की तरह<br />वह ध्यान में आता है- ट्रान्सलव जोन से खुद खिंच कर चला आया बिम्ब। <br /><br />बहुत खूब चचा।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04419500673114415417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-74677063005549329502010-07-29T11:29:49.419+05:302010-07-29T11:29:49.419+05:30पाठकों ने गहरे प्रेम का उल्लेख किया है तो याद दिला...पाठकों ने गहरे प्रेम का उल्लेख किया है तो याद दिला दूं कि `खालिस` प्रेम कविता भी जैसी इस कवि ने लिखी हैं, वे भी बेमिसाल हैं. हालाँकि खालिस प्रेम कविता उन्हें भी इसलिए नहीं कह सकते कि बेहतर मनुष्य की कविता ही बेहतरीन प्रेम कविता होती है और यह खालिस कलावादियों का काम नहीं है. प्रस्तुत कविता भी इस बात का उदाहरण है कि प्रेम अपने समय से निरपेक्ष नहीं हो सकता. <br />असद ज़ैदी के यहाँ छतीसगढ़ का ज़िक्र भीEk ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-49817479773049999972010-07-29T09:13:23.398+05:302010-07-29T09:13:23.398+05:30फिर वह अचानक मर गया
धोखा दिए बिना ज़हर खाए बिना
.....फिर वह अचानक मर गया<br />धोखा दिए बिना ज़हर खाए बिना<br />.....<br />सोचती हूँ ऐसी गहरी पहचान<br />बेमेल लोगों में ही होती है<br /><br />aur bhi bahut kuch bahut badhiya hai...पारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-28528673466596538702010-07-28T23:50:55.476+05:302010-07-28T23:50:55.476+05:30हिला देने वाली कविता..प्रेम की उपस्थिति और अनुपस्थ...हिला देने वाली कविता..प्रेम की उपस्थिति और अनुपस्थिति की सीमारेखा सामाजिक सरोकारों के कूचे से जाती है...पैरों मे बेड़ियाँ डालने वाला यही प्रेम मुक्त भी करता है....अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-31339415679945772332010-07-28T21:59:08.305+05:302010-07-28T21:59:08.305+05:30bahut gahri aur apnisi kavita....bahut gahri aur apnisi kavita....varshahttps://www.blogger.com/profile/03696490521458060753noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-28989691320926354632010-07-28T21:14:11.452+05:302010-07-28T21:14:11.452+05:30बेहतरीन....
और इस पंक्ति ने तो रीड़ की हड्डियों क...बेहतरीन....<br /><br />और इस पंक्ति ने तो रीड़ की हड्डियों को एकदम से सीधा कर दिया..<br /><br />अगर वह जीवित होता तो सोफ़े पर पड़े<br />आलू का जीवन तो न जीता...!<br />..आभार.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-30278979518957286302010-07-28T18:26:11.795+05:302010-07-28T18:26:11.795+05:30एक गहरा प्रेम किस किस तरह याद किया जा सकता है। असद...एक गहरा प्रेम किस किस तरह याद किया जा सकता है। असद जैदी जी बता गए।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-65416435353179539412010-07-28T14:49:54.528+05:302010-07-28T14:49:54.528+05:30गहरीगहरीप्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com