tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post775110737967391209..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: वहीं वे फूल भी हैं जो जीवन में खिलना चाहते हैंAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-72978285367944203382012-02-29T21:08:23.697+05:302012-02-29T21:08:23.697+05:30"यदि तुम इस तंत्र का शिकार हो तब भी
तुमने उतन..."यदि तुम इस तंत्र का शिकार हो तब भी<br />तुमने उतनी दूर तक दौड नहीं लगाई है<br />जितनी बिल्ली को देखकर चूहा लगाता है<br />तुम जो कविता को शरणस्थली बनाते हो<br />जो कला भी है लेकिन हर बार<br />खुले में एक मोर्चा बन जाती है<br />और शरणस्थलियों को क़त्लगाह बनाती है."<br />कला को,कला होने के साथ-साथ और क्या बन जाना पड़ता/पड़सकता है, यह सच्चाई और अनुभव की आंच पर तपा, बेहद महत्वपूर्ण बयान है.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.com