tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post9109015617935723167..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: इन्डियन ढोबले सर्विस यानी इक्कीसवीं सदी की भारतीय पुलिसAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-84237089608494748562012-10-07T22:51:40.850+05:302012-10-07T22:51:40.850+05:30क्यों नहीं हमारे यहाँ कोबान या स्कॉटलैंड यार्ड हो ...क्यों नहीं हमारे यहाँ कोबान या स्कॉटलैंड यार्ड हो सकते । सुना था अंग्रेज़ों के ज़माने में औरत रात को गहनों से लदी जाती थी तो भी महफ़ूज़ रहती थी लेकिन अब रोज़ आँखों से देखता हूँ कि अगर वो नाम मात्र अथवा निमित्त मात्र वस्त्र धारण करके भी विश्व के विशालतम महानगर की अंधेरी गली से निकले तो किसी की मजाल नहीं जो कुछ कर ले क्योंकि छिताई किसे पसन्द होगी भला ?मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-82259397686305174122012-10-05T19:34:39.501+05:302012-10-05T19:34:39.501+05:30अभिनव जैसे पुलिसिए तो अपवाद स्वरूप हैं. बाकी तो सब...अभिनव जैसे पुलिसिए तो अपवाद स्वरूप हैं. बाकी तो सब के सब ढोबले ही हैं - और जैसा कि अभिनव ने स्वयं कहा है -<br />वे भारतीय पुलिस की आनुवांशिक बनावट के सबसे प्रबल और ध्वंसकारी तंतुओं की सबसे आम घटित होने वाली अभिव्यक्ति भर हैं!रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.com