Thursday, October 2, 2008

'सब मज़े दरकिनार आलम के' उर्फ़ मुनीश की मारुति

बेशक आज ईद है. गांधी और लालबहादुर जयन्ती है. पोस्टों का ढेर बताता है कि ये महत्वपूर्ण अवसर हैं. इस मौक़े पर ख़ुद कबाड़ख़ाने पर सिद्धेश्वर और विनीता ने अच्छी पोस्ट लगाई हैं. मगर मैं कहीं और ले जाना चाहता हूं आप को.

एक साहब हैं मुनीश. बहुत अज़ीज़ हैं - दोस्त हैं और कमाल इन्सान हैं. ज़बान पर उनकी पकड़ का मैं शैदाई हूं. 'आर्ट ऑफ़ रीडिंग' में उनकी आवाज़ में बहुत सुन्दर पोस्ट्स सुनी जा सकती हैं. 'मयख़ाना' उनका अपना ब्लॉग है जहां आप उनकी बहुआयामी प्रतिभा की झलक देख सकते हैं. आज उनके ब्लॉग पर एक ज़बरदस्त पोस्ट लगी हुई है. यह पोस्ट उनकी पुरातन मारुति कार को लेकर है जिस की सवारी का महती सौभाग्य एकाधिक बार इन पंक्तियों के लेखक को प्राप्त हो चुका है.

जिस तरह रेगिस्तान में इत्मीनान से डोलते यात्रारत ऊंट की निहायत औपचारिक लगाम को कोई नहीं खींचता और वह बेफ़िक्री से उसकी पीठ के एक तरफ़ लटकी यहां-वहां होती रहती है, उसी तरह इस महाकार ('नो न इन्टेन्डेड') की फ़्रन्ट सीट की बैल्ट का महात्म्य है. वह है भी और नहीं भी. उसे आप ने अपने कन्धे पर डाल लेना होता है ताकि सुरक्षाकर्मी आप से बेफ़िज़ूल सवालात न करें. बाक़ी सारे काम तरीक़े से होते हैं यानी आपको जहां जाना होता है, आप वहां पहुंच जाते हैं.

इस पोस्ट को आप एक तरह से 'मयख़ाना' का विज्ञापन भी समझ सकते हैं. बहुत शानदार है मुनीश का यह ब्लॉग - बिल्कुल अलहदा. एक साफ़दिल इन्सान के सरोकारों से लबरेज़. और उनकी ज़बान ... उफ़्फ़! आप ख़ुद देख लेवें:




भर्तृहरि एक नामी राजा हुए हैं और अपने राज-काज से ज़ियादा वो याद किए जाते हैं उन बातों के लिए जो उन्होंने इंसानी फितरत , खुदा की नेमत और हुस्न की आग के बारे में कही हैं । उनके तमाम अशआर 'नीति शतक', 'वैराग्य शतक 'और 'श्रृंगार शतक' नाम के तीन दीवानों में कलमबंद मिलते हैं । कहते हैं 'वक़्त' या कहें 'काल' के बारे में उनका कहा आज के सबसे बड़े साइंस- दान जनाब स्टेफन हाकिंग्स से काफ़ी मेल खाता है। आप फरमाते हैं --"कालो न यातः वयमेव यातः" याने वक़्त नहीं बीत रहा ,हम ही बीत रहे हैं।

मशहूर शायर जनाब जां निसार अख़तर के बेटे और सूडो -सेकुलरिस्टों की ज़ीनत, मोहतरमा शबाना के खाविंद जावेद अख़तर साहब ने इस सब्जेक्ट पे एक नज़्म कही है जो आपके दीवान 'तरकश' में सहेजी गई है । बहरहाल, "वक़्त नहीं हम ही बीत रहे हैं", मेरी मारुती कार भी बीत रही है । अपना पन्द्रहवां सालाना उर्स वो इसी सितम्बर में मना चुकी है । इन पन्द्रेह बरसों में मैं अपनी कार के मुकाबले कहीं ज़ियादा बीता हूँ मगर महकमा ट्रैफिक वालों का फरमाना है के आपसे हमें कोई शिकवा नहीं लेकिन १९९३ मॉडल की मारुती अगर आप अब भी चलाना चाहते हैं तो इसका 'फिटनेस' सर्टिफिकेट ले आइये ।

उनकी मंशा समझनी मुश्किल नहीं । बड़ी- बड़ी कार कम्पनियों ने उनके अफसरान को निहाल कर रखा है । वो चाहती हैं के पुरानी गाडियाँ हटें तो नई बिकें । मारुती वालों से ये कोई नहीं पूछ सकता के भाई ऐसी कार बनाते ही क्यूँ हो जो १५ साल बाद भी सही सलामत चलती रहे । मुझे अपनी कार से कोई शिकायत नहीं । हरियाणा के गावोँ की भुसंड-भदान सड़कें हों या केट विंसलेट की चम्पई जांघों सी रेशमी कालका-शिमला रोड , रेणुका झील से पोंटा साहब का लद्दाख की याद दिलाता कच्चा रस्ता हो या आज के दौर की तमाम इंडियन हीरोइनों के पापी पेट जैसी सपाट नजीबाबाद - लैन्सडाउन रोड इस गाड़ी ने मुझे कभी धोखा नहीं दिया । हाँ हरियाणा टूरिस्म ने ज़ुरूर दिया ।

एक दफे दगशाई (हिमाचल) जाते हुए मोरनी हिल्स के रस्ते में लगे एक बोर्ड को देख मैं शोर्ट-कट के चक्कर में कालका की तरफ़ उतर गया जो नदी किनारे के गोल पत्थर की ढुलाई का रस्ता था और करीब १५ किलो मीटर का ये रस्ता हिमालयन कार रैली की प्रैक्टिस के लिए बेजोड़ हो सकता है । वहाँ से भी इस गाड़ी ने निकाला (निकालता तो खुदा है मगर मैं सेकुलर भी तो हूँ न) और ठीक पेट्रोल पम्प के सामने ही बंद हुई जहाँ इसकी वजेह महज़ बैटरी कनेक्शन का वायर हटना बताया गया ।



अब इस गाड़ी को बेचने का जी तो नहीं मगर रखना भी जी का जंजाल है चूंकि किसी दिन ये ज़ब्त भी हो सकती है अगर 'फिटनेस' न लिया तो! क्या करूँ समझ नहीं आता और ३ -३.५० लाख में आजकल कौनसी बढ़िया गाड़ी है ? गाड़ियों के बारे में ब्लॉग बन्धु अपने ख्याल यहाँ बाँट सकें तो इनायत होगी ।

11 comments:

Unknown said...

भईया आपको शो रूम जाना ही चाहिए ।

दीपा पाठक said...

मुनीश साहब एक बार आप हमारी मारूति के दर्शन कर लेंगे तो अपनी गाङी पर अश-अश करना बंद कर उसकी कशीदाकारी करने लगेंगे। उसमें भी वो सब तमाम खूबियां है जो आपकी सवारी में हैं शायद कुछ ज्यादा ही हो, आपसे तो पुलिस वाले ही कहते हैं हमसे तो हर मिलने वाला कहता है यार अब तो गाङी बदल ही लो, लेकिन हमें उससे कोई शिकायत ही नहीं तो बदलें क्यों।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

लगता है मैने जल्दबाजी कर दी थी जब ९५ मॉडल को २००६ में हटा दिया था। जो बन्दा ले गया उसने उससे देहात की शादियाँ करा-कराकर एक और मारुति खरीद ली है। अभी भी ठाट से दौड़ा रहा है।

वाह मारुति (नन्दन)- हनुमान जी के नाम में बड़ा दम लगता है।:)

Yunus Khan said...

सलाह देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं ।
अगर मारूती की ओर जाना है तो फिर वैगन आर आपके लिए बेहतर विकल्‍प है । अगर ह्यून्‍डेई पसंद है तो सैंत्रो और अगर शेवरले से प्‍यार है तो स्‍पार्क आपके बजट में होगी ।
वैसे कार वाले डॉट कॉम पर जायें । प्रॉपर रिसर्च है । फिर भी कोई टेक्‍नीकल दिक्‍कत हो तो हम हैं ना । हम अपने सूत्रों से और स्‍वयं के अर्जित ज्ञान से पूरी मदद करेंगे ।

महेन said...

दुनिया साईकिल की ओर भाग रही है और आप कार खरीदना चाहते हैं? बहुत नाइंसाफ़ी। फ़िर भी अगर खरीदनी है तो आल्टो खरीद लो। गुणीजनों से बहुत्ते तारीफ़ सुने हैं। हम भी इस गड्डी के शैदाई हैं और तीन साल से मालिक भी।

एस. बी. सिंह said...

भाई कार तो १५ साल में रिटायर हो रही है पर सरकार तो ५ साल में ही । कार कंपनी वालों को पता चल गया तो मांग कराने लगेगे की कार भी ५ साल ही चले। है तो आज गांधी जयंती पर आज हम 'मयखाने' जरुर जायेंगे । धन्यवाद

siddheshwar singh said...

कोई सी भी खरीद लो भाई पर अपन को एक बार सवारी जरूर करा दीजो. तभी कह पाएंगे- 'गड्डी जांदी ए छलांगा मारदी..

Ashok Pande said...

जनाब एस बी सिंह साहब, आज ड्राई डे होता है, मयख़ाने में जाने का अंजाम जानते हैं न! पुड़्स अन्दर न कर दे कहीं!

वैसे ग़लती मेरी है, आज नहीं लिखना था मयख़ाने के बाबत.

चलिए देखी जाएगी!

मुनीश ( munish ) said...

हमारे दर्द-ऐ-दिल को आपने इज़्ज़त बख्शी , शुक्रिया अशोक भाई. सिद्धेश्वर बाबू देखिये कब वो मुबारक घड़ी आती है.THANX FOR THIS RARE HONOUR DEAR KABADEEZ !

जहाजी कउवा said...

मुनीश भाई अब लखटकिया नैनो ही लेना. ममता बस मानने ही वाली है

Vineeta Yashsavi said...

bhi apki maruti mai safar karke to maza hi aa gaya...........