Thursday, March 19, 2009

मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा



आज आपका परिचय पोलैंड के एक कम चर्चित किन्तु अति प्रभावशाली कवि राफ़ाल वोयात्चेक से करवा रहा हूं. राफ़ाल का जन्म १९४५ में पोलैंड के एक सम्मानित परिवार में हुआ था. ११ मई १९७१ को मात्र छब्बीस साल की आयु में आत्महत्या कर चुकने से पहले राफ़ाल ने तकरीबन दो सौ कविताएं लिखीं, जिन्हें चार संग्रहों की शक्ल में प्रकाशित किया गया. कुछ कविताएं उसने छ्द्म स्त्रीनाम से भी लिखीं.

उसकी पढ़ाई बहुत बाधित रही और ताज़िन्दगी वह अल्कोहोलिज़्म और डिप्रेशन का शिकार रहा. उसने कविता लिखना तब शुरू किया था जब पोलैंड के युवा कवियों को यह भान हो गया था कि उनका देश एक झूठे और भ्रष्ट राजनैतिक सिस्टम में फंस चुका है.

राफ़ाल की कविताएं तत्कालीन पोलैंड की राजनीति और सामाजिक परिस्थिति को एक सार्वभौमिक अस्तित्ववादी त्रासदी के स्तर पर देखती हैं. मोहभंग, व्यक्तिगत भ्रंश, और मृत्यु के प्रति ऑब्सेशन उसकी कविताओं की आत्मा में है.

पोलैंड के मिकोलो क़स्बे में, जहां वह जन्मा था - हाल ही में उसके नाम पर एक संग्रहालय का उद्घाटन किया गया है, बीसवीं सदी की महान पोलिश कविता में जीवन भर अभिशप्त रहे इस उल्लेखनीय युवा कवि को बहुत लाड़ के साथ याद किया जाता है. आपके लिए ख़ास तौर पर पेश कर रहा हूं उसकी चार कविताएं.


१. अनुरोध

मुझे एक झाड़ू दो - मैं शहर के चौराहे की सफ़ाई करूंगा
या दो एक औरत, मैं उसे प्यार करूंगा और गर्भवान बना दूंगा
मुझे एक पितृभूमि दो, मैं उसके दृश्यों का
महिमागान करूंगा या उसकी सत्ता का अपमान
या करूंगा उसकी सरकार की प्रशंसा
मेरे सामने एक आदमी लाओ मैं उसकी महानता को पहचानूंगा
या उसके दुःख को
रोचक शब्दों में करूंगा मैं उनका वर्णन
मुझे प्रेमीजन दिखाओ और मैं भावनाओं में बह जाऊंगा
मुझे किसी अस्पताल में भेजो
या किसी सम्प्रदाय के कब्रिस्तान में
मेरे वास्ते सर्कस या थियेटर की व्यवस्था करो
किसी फ़सल में किसी युद्ध की - शहर में किसी उत्सव की
या मुझे गाड़ी चलाना या टाइप करना सिखलाओ
मुझे भाषाएं सीखने पर मजबूर करो
या अख़बार पढ़ने पर
और आख़ीर में दो मुझे वोदका
- मैं उसे पियूंगा
और फिर कै करूंगा
क्योंकि कवियों का इस्तेमाल होना ही चाहिये.

२. मैं जीता हूं

मैं जीता हूं तारों को न देखता हुआ
मैं बोलता हूं शब्दों को न समझता हुआ
मैं इन्तज़ार करता हूं दिनों को न गिनता हुआ

जब तक कि कोई आकर भेद न दे इस दीवार को.

३. कौन

कौन घूम रहा मेरे आईने में
न कोई औरत न कोहरे का बना आदमी कोई
पर वह इतनी क्रूरता के साथ वह ख़ुद है
कि दस्तावेज़ अब तक खाली पड़े हैं?

कौन है जो पी रहा मेरे गिलास से
हालांकि वह पियक्कड़ नहीं तो भी
पुलिस उसे कीचड़ से बाहर घसीट लाती है
उसे हमारी वृत्ति का सदस्य मान लिया जाता है?

कौन है जो मेरी कलम से
मेरी कविताएं लिख रहा है
और मेरी पत्नी को ले कर जा रहा बिस्तर पर?
कौन है जो अभी अभी यहां से गया है?

४. फांसी चढ़ा दिये गए आदमी की रखैल

फांसी चढ़ा दिये गए आदमी की रखैल -
उसकी आंखों में देखती है
वह ख़ुद को देखती है उसके ख़्वाबों में

फांसी चढ़ा दिये गए आदमी की रखैल
- शर्मसार -
उसके सिर के पास झुकी हुई
वह पेट से है
उसका चेहरा काला पड़ा हुआ

फांसी चढ़ा दिये गए आदमी की रखैल
जिसका चेहरा दर्द से काला पड़ चुका
बच्चे के दो टुकड़े कर देती है
- वह ख़ुद चूस रही अपनी छाती
उसके नाख़ून
ख़ुद अपनी देह खरोंचते

फांसी चढ़ा दिये गए आदमी की रखैल
उस आदमी के सपने में समूची की समूची है.

16 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

शानदार कविताएं !
जानदार अनुवाद!

राफाल की कुछ कविताएं कभी तुमपे ही देखी और पढीं थीं - अब हिंदी में पढ़ना एक अलग अनुभव हे।

रागिनी said...

इस कवि से परिचय कराने का शुक्रिया!

Astrologer Sidharth said...

धन्‍यवाद बंधू

शायदा said...

aaj me avak hoon...
hairan kar dene wali kavitayein.
shukria

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

फांसी चढा दिये गये आदमी की रखैल की यह हालत है तो बीवी की क्या गत होगी?

मुनीश ( munish ) said...

sadhu ! sadhu !

नीलोफर said...

थोड़ा तल्ख होने के लिए के लिए माजरत चाहूंगी। अगर इसकी गुंजायश न हो और मेरा कंमेंट डिलीट कर दिया जाए तो भी मुझे कोई उज्र नहीं।

डबराल जी ने भाजपा के निजाम में पुरूस्कार ही नहीं लिया, सुब्रत राय सहारा के अखबार में नौकरी भी की लेकिन इसका मतलब ये नही निकलता कि वो चिट-फंड इकानमी के सपोरटर और सैयद मोदी के मर्डर के गुनाहगार भी हो गए। जीने के लिए जो-जो करते हैं लोग वैसा होना भी चाहते हैं ये कतई जरूरी नहीं।

अगर वो ये पुरूस्कार भी ले लेते तो भी उनकी कैफियत पर कोई फर्क नहीं पड़ना था। हमें तो ऐसा लेखक पसंद है जो इस हाथ से रूपिया पकड़े और दूजे हाथ से फिरकेवाराना सोच पर थप्पड़ रसीद करें और कहे इस रूपिए से गिजा खाऊंगा ताकि अगला और करारा हो।

लेकिन समझ नहीं आया कि ये सरेस मोरिया साहब कौन हैं जो हर जगह शामिल बाजा के साजिंदे की तरह चिपके रहते हैं। न लिखने में न देखने में बस हांजी हांजी हर मजलिस में किए जाते हैं। क्या उन्हें मंगलेश डबराल जी उन्हें ये खत सूचना के बतौर पब्लिक करने के लिए फराहम कराया था या वे खुद ही उनकी तरफ से सूरमागिरी करने लगे।
खुदा न करे कि ऐसा हो। गो ऐसा हुआ तो मोरिया साहेब जान लो कि मंगलेश जी आपको शायरी का कोई ईनाम नहीं दिला सकते।

जिस बरबाद जीनियस ने आपको जिंदगी में तुकबंदी का पहला ईनाम दिलवाया था, उसका नाम हमें पता चल चुका है। इसलिए किसी नान इशू को बेवजह इशू ना बनाएं। शुक्रिया।

ghughutibasuti said...

पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

बहुत सुन्दर!!! बधाई!!!
( हे प्रभु यह तेरापन्थ कि इकाई ब्लोग "मुम्बई टाईगर" )

मुनीश ( munish ) said...

In this age of making compromises when mere frustration has taken over anger , i appreciate the way Neelofar has given vent to her feelings even though i still believe that Mr. Dabral did the right thing by rejecting the award 'cos when he is already getting a good package ,offering him mere 50,000 something bucks as an award was insulting indeed.No award, less than 2lac50,000 rupees is acceptable 'cos thats how much an Alto LXI costs even in these times of heavy discounts yar! I wanna see poets drivin' SX4 like Cuban poets do puffin' their Cigars n' all.

ravindra vyas said...

inki kuchh aur kavitayen dijiye ashok bhai!

gopal rathi said...

Raafaul is too good, and so bad is neelofer's comment! Everybody knows shireesh mourya is a good young poet. He belongs to my hometown pipiriya in madhyapradesh, though he used to be called pahadi or uttarakhandi. This is very insulting to see comments like that about him. It shameful for blog also.

mamta said...

राफाल से परिचय करवाने और उन की कवितायें पढ़वाने का शुक्रिया ।

कंचन सिंह चौहान said...

har kavita shaandaar...! ant me maun de jaane waali..kahane ko uchh nahi...!

dhanyavaad is kavi se parichay karaane ka...!

mahesh said...

बहुत अच्छा अनुवाद अशोक जी. रफ़ाएल वॉज़सेक पर एक फिल्म का पता
भी नेट पर चला- वॉजासेक
(लाइफ हर्ट्स) ,उनकी एक और अच्छी कविता आप जैसे शानदार अनुवादक के लिए..आदर सहित
महेश वर्मा,अम्बिकापुर छत्तीस गढ़ से

I speak softly to you

I speak softly to you as if shining
Like stars that bloom on the meadow of blood
While my eyes gaze at the star of your blood
I speak softly - till my shadow is white
I'm a cool island for your flesh
That falls into night, a hot droplet,
I speak to you so softly as if in a dream
Your sweat is aflame on my skin
I speak to you as softly as a bird
In the morning slips sun into your eyes
I speak to you as softly
As the tear which wrinkles a face
I speak to you so softly
As you speak to me

Ashok Pande said...

शुक्रिया महेश जी

यह अनुवाद मैं पहले कर चुका हूं और शायद कहीं छप भी चुका है. कम्प्यूटर मे रखा हुआ होता तो अभी लगा देता. मिलते ही लगाया जाएगा. वायदा.

और हां इस नाम को वोजासेक नहीं वोयात्चेक पढ़ा जाता है.

हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया!