इसका एक अंश अनुराग वत्स ने अपने ब्लॉग पर कभी लगाया था. आज से आप इसी पुस्तक के छठे अध्याय 'द ट्रायल' पर श्रृंखला शुरू कर रहा हूं हो सकता है यह अध्याय चार किस्तों तक जाए या पांच तक. देखिये.
जोसेफ़ के. 'द ट्रायल' का नायक है जिसे अज्ञात कारणों से एक सुबह गिरफ़्तार कर लिया जाता है जैसा कि किताब की शुरुआत बताती है: “Someone must have been telling lies about Joseph K., for without having done anything wrong he was arrested one fine morning”
जोसेफ़ के. को गिरफ़्तार करने के बाद उस पर मुकदमा चलाया जाता है और ऐसे अपराध के लिए मृत्युदण्ड दे दिया जाता है जिसके बारे में खुद वह भी नहीं जानता. काफ़्का लिखता है: “The Court wants nothing from you. It receives you when you come and it dismisses you when you go”
पढ़िये सिताती की किताब का वह हिस्सा जिसमें वह इस महान किताब की पहेली को सुलझाने का प्रयास करता है.

द ट्रायल -१
काफ्का का लेखन शून्य में किसी पांसे के फेंके जाने जैसा होता है जो दिमाग में आ सकने वाली संभावनाओं की सीमा से आगे तक संभव विरोधाभासी सिद्धान्तों को एक साथ सामने लेकर आता है। एक ही समय लिखे गए ‘द ट्रायल’¸ ‘द नेचर थियेटर आफ ओकलाहामा’ और ‘इन द पैनल कालोनी’ में हमें सूचित किया जाता है कि ईश्वर की मृत्यु हो चुकी है¸ कि दंड और परमानन्द देने वाली मशीन के परखच्चे उड़ चुके हैं और यह कि ईश्वर का आखिरी भक्त अपनी सलीब पर मर चुका है और अंतत: यह कि गुनगुने सत्य के आलोकित होने का समय हमारा इन्तजार कर रहा है। ‘द ट्रायल’ के देवता¸ जिसका नाम कभी नहीं लिया जाता¸ के पास इतनी असीम शक्ति है जितनी उसके पास कभी नहीं रही थी। वह सारे यथार्थों पर धावा बोलता है¸ उस यथार्थ पर भी जो उसके लिए एकदम अजनबी होना था। पहले ही पन्ने में उसके संदेशवाहक¸ सोते हुए जोसेफ के के कमरे में घुस आते हैं और उसे गिरफ्तार कर लेते हैं।
इस देवता का नाम क्या है? या उसके नाम क्या हैं? या क्या ऐसा तो नहीं कि मामला देवताओं की अनेकता का है जिनमें से हर एक के अनन्त नाम हैं हैं और जो लगातार नए देवताओं का सृजन करते जाते हैं? काफ्का के अध्यात्म की शुरूआत ही में एक चीज को छोड़ दिया जाता हैः कोई भी यह नहीं कहता कि कानून ही देवता का निवास स्थान है या यह कि न्यायालय किसी ईश्वर की सर्जना है हालांकि हमें लगता रहता है कि हम आखिरकार उसी के रूबरू हैं। इस से हमें कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि चाहे वह ईसाई अध्यात्म हो या यहूदी - दोनों ही आखिर में छलांग लगाते हुए ईश्वर के नाम से परे पहुंच जाते हैं। तो क्या हम यह मान लें कि कानून और न्यायालय अन्तत: ईश्वर के ही कारण हैं? इस किताब में हम ठीक यही काम करेंगे; हालांकि ऐसा करने में हम एक तरह का दगा भी करेंगे क्योंकि किताब में ईश्वर के नाम की अनुपस्थिति एक शून्य का निर्माण करती है¸ ईश्वर की देह की मृत्यु के शून्य का¸ जिसे हम एक भरपूर नाम के साथ अदलबदल देते हैं।
‘द ट्रायल’ के दर्शन का दूसरा वाक्य हमें बतलाता है कि ईश्वर सभी तरह की भौतिकता से परे है : अपने जीवन के आखिरी दस सालों में जिस हताश यकीन के साथ काफ्का ने ईश्वर की इस स्थिति को ठोस तरीके से रेखांकित किया वैसा किसी भी नवीन या पुरातन दर्शन ने नहीं किया था¸ चाहे वे डायेनीशियन दार्शनिक रहे हों या इस्लामी। हम कुछ भी नहीं कह सकते क्योंकि किसी भी बेनाम ईश्वर के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। ‘द ट्रायल’ के कुछ वाक्यों के आधार पर हम अपनी सोच को इस कल्पना के साथ सीमित कर लेते हैं कि ईश्वर अंतहीन सीढ़ियों वाले एक पिरामिड का निर्माण करता है और जिसके बारे में संपूर्णता के साथ कुछ भी नहीं सोचा जा सकता। सबसे ऊंची सीढ़ियों पर सर्वशक्तिमान न्यायाधीश होते हैं : जो बहुत ही दूर हैं और रहस्यमय तरीके से अदृश्य जिस तरह संसार का खोया हुआ केंद्रबिन्दु होता है या अपने महल में मृत कोई चीनी सम्राट या विस्मृत कर दिया गया वह विचार जिसने चीन की महान दीवार का निर्माण किया था। हमें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं या क्या कभी किसी समय उन्होंने संसार का सृजन किया था। आज उनका काम है कानून की हिफाजत करना : कभी बेहद शानोशौकत के साथ कभी बिल्कुल रोजमर्रा तरीके से¸ कभी किसी हत्यारे के चाकू की क्रूरता के साथ तो कभी चंद्रमा की मुलायम किरणों की तरह। और भी ऊपर¸ इस सब के परे क्या कोई उपस्थित या अनुपस्थित ईश्वर है जैसा कि 'द कासल' और 'द ग्रेट वाल आफ़ चाइना' में संकेत मिलता है? या क्या यह पिरामिड अनन्त आकाश तक उठता जाता है? हम बस इतना कह सकते हैं कि ब्रह्मांड के किसी बिन्दु पर एक संपूर्ण दृष्टि है जो ‘द ट्रायल’ की पूरी जटिलता पर निगाह रखे रहती है। जहां तक हमारा सवाल है : हम जो ‘द ट्रायल’ के बीच रह रहे होते हैं¸ हम न तो किसी देवता या देवताओं की पहचान कर सकते हैं¸ न उनकी रहस्यमय संपूर्णता को आत्मसात कर सकते हैं¸ उनके साथ किसी भी तरह का नजदीकी या सुदूर संबंध बना सकना असंभव है और हमारी कोई प्रार्थना या खोज स्वर्ग की चोटी तक नहीं पहुंच सकते।
यह अमूर्त ईश्वर एक प्रकाश है और वह प्रकाश के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता। हालांकि हम महान प्लेटोनिक ईसाई परम्परा के आखिर में खड़े हैं¸ काफ्का इस बात को दो बार सुनिश्चित शब्दों में गंभीरता के साथ हमें बतलाता है कि ईश्वर के घर के दरवाजे से एक “चौंधिया देने वाली रोशनी” निकलती है। क्या फर्क पड़ता है कि हम उसे बहुत विरले ही देख पाते हैं जैसा कि मृत्यु की अंधा बना देने वाली निकटता के समय कोई ग्रामीण देख पाता है? हर चीज के बावजूद यह तथ्य कि बिना नाम वाला वह ईश्वर कोई रोशनी है¸ हमें किसी निर्विवाद सत्य की सी सांत्वना देता है। लेकिन इस रोशनी का एक विशेष गुण भी है। जब यह हमारे संसार पर गिरती है खासतौर पर संसार की पवित्र जगहों पर¸तो वह अंधकार के मोटे कम्बलों की सर्जना करती है मानो किसी ब्रह्मांडीय कानून के कारण देवता इस बात के लिए मजबूर कर दिए गए हों कि हमें केवल रात का ज्ञान हो सके। तो यहां आपको दिखती हैं न्यायालय के गलियारों में गिर रही कब्रिस्तान की परछाइयां¸ हुल्ड के मकान की मोमबत्तियां¸ तितोरेली के मकान के ज़ीने का मद्धम प्रकाश¸ वह संपूर्ण अंधकार जो गिरजाघर को अपने आगोश में समेट लेगा। इस रोशनी का एक और गुण है। न्यायालय की छत पर गिर रही यह रोशनी कानून के गलियारे को दमघोंटू गर्मी से भर देती है। ये पवित्र स्थान बेहद संकरे होते हैं “धुंए और मकड़ी के जालों से अटे गांव के गुसलखानों की तरह” जहां जैसा कि ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ में स्विद्रिगेलोव अनन्तता के निवास करने की कल्पना करता है। कानून जीवन की हवा को प्रदूषित कर देता है। वह ब्रह्मांड की ताजगी और स्वछंदता को नष्ट कर देता है और हमें आजादी से सांस लेने से रोकता है। कोई इस बात को भी जोड़ सकता है कि जोसेफ के. को ही न्यायालय की हवा दमघोंटू लगी होगी जबकि उसमें रहने काम करने वालों के लिए वह उनका नैसर्गिक वातावरण होती होगी। उनके लिए वहां की हवा शुद्ध और पवित्र होती होगी।
दर्जनों सदियों से हम यह विश्वास करने के आदी हो चुके हैं देवता सर्वोच्च सत्य और न्याय का प्रतिरूप होता है या होते हैं। ‘द ट्रायल’ का देवता अपने आप को इस अतिमानवीय छवि में कैद नहीं होने देगा। उसे सत्य शब्द पसन्द नहीं है : या अधिक स्पष्टता में कहा जाए तो वह हां या नहीं के विकल्प में कैद किसी एक सत्य से कहीं ऊपर उठा हुआ है। उसके लिए सत्य विरोधाभासी चीजों की स्वीकृति में समाहित है। ईश्वर एक ही समय में दो विरोधों से बना हुआ है : एक दूसरे के परस्पर विरोधी दो विचार उसके लिए “आवश्यक” हैं क्योंकि आवश्यकता पवित्रता के सबसे निकट की श्रेणी में आती है। इसलिए हमें जरा भी अचरज नहीं होता कि यूनानी देवताओं की तरह या गुइटे के ‘लेरयारे’ के देवताओं की तरह ‘द ट्रायल’ का देवता झूठ¸ धोखे और नाटकबाजी को तरजीह देता है। न्यायालय के सिपाही जोसेफ के. से झूठ बोलते हैं जब वे उसे बताते है कि "जल्दी ही उसे सब मालूम पड़ जाएगा"; न्यायालय झूठ बोलता है जब वह किसी बहाने से जोसेफ के को गिरजाघर में आने का लालच देता है; पादरी झूठ बोलता है और गिरजाघर और न्यायालय मिलकर एक अश्लील वैराइटी शो का सृजन करते हैं। जहां तक न्याय का सवाल है तो न्यायालय इस मामले में कतई सच्चा है : उसके निर्णय निर्विवाद हैं और उन पर किसी का भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला हालांकि यह एक क्रूर विडंबना है कि सत्य की तसदीक एक भ्रष्ट मुखबिर करता है। तितोरेली और हुल्ड की तरह काफ्का भी आश्वस्त है कि वह गलती करता ही नहीं और कर भी नहीं सकता। अगर हमें यह नहीं बताया जाता कि किसी को रिहा किया गया या नहीं तो ऐसा इसलिए है कि मानवीय न्यायालय के बरखिलाफ अपनी जादुई अंतर्चेतना के चलते दैवीय न्यायालय केवल दोषियों पर ही आरोप मढ़ता है। लेकिन यह एक अजीब सा न्याय है। यह इतना असंदिग्ध और आदमियों से इस कदर कटा हुआ है कि कई बार ऐसा लगता है कि यह शिकार या प्रतिशोध की देवियों का प्रतिरूप है : अपने भीतर ढेर सारी विशुद्ध नफरत भरे हुए।
यहूदी¸ ईसाई या इस्लामी कानून की तरह न्यायालय का एक लिखित कानून है : किसी फरिश्ते ने उसे किसी आदमी से लिखवाया या किसी संत – पैगम्बर से उसे निगलने को कहा या फिर किसी दिल के भीतर उकेर दिया। हम पादरी को यह कहता हुआ सुनते हैं कि कहीं पर कानून का अiस्तत्व है जो हमेशा एक सा होता है और धर्मशास्त्रों को साथ लिए चलता है जिसकी तमाम व्याख्याकार लगातार अपने तरीकों से रोज नई व्याख्या करते हैं। यह एक गुप्त कानून है : केवल कुछ ही अध्येता इस की महान पुतक के पृष्ठों को पलटते हैं; और जैसा कि 'द ट्रायल' में होता है न्यायाधीशों द्वारा एकत्र की गईं तमाम सामग्री – आरोप¸ कागजात¸ निर्णय – न तो आरोपी को उपलब्ध होते हैं न वकीलों को और कई बार तो खुद न्यायाधीशों को भी नहीं। दैवीय ज्ञान गुप्त ही रहना चाहिए। अगर हम और जानना चाहते हैं तो हमें ‘इन द पैनल कालोनी’ से मुखातिब होना पड़ेगा। इस तरह लिखित कानून एक ऐसा भीषण खेल है जो दैवी शक्तियां हमारे साथ खेल रही हैं; इस खेल का मंतव्य सत्य को हमसे छिपाने का भी है और उसे हमारे सामने उद्घाटित करने का भी। जोसेफ के उस रहस्य को नहीं समझता जिसके सहारे देवता हमारी रक्षा करते हैं; वह लिखित दस्तावेजों और गिरफ्तारी के वारंट वगैरह की मांग करता है। जोसेफ के यह भी नहीं समझता कि दैवी रहस्य के परे एक बेकाम लम्बी स्क्रिप्ट भर होती है ; वकीलों के मूखर्तापूर्ण संस्मरण या आत्मकथा लिखने के उनके अर्थहीन प्रयास जिन्हें दैवीय ताकतें अपनी चौंधिया देने वाली रोशनी में उपहास की निगाह से देखती हैं।
'द ट्रायल' के देवता के हृदय तक पहुंचने के लिए हमें उसी विडंबना को दोहराना पड़ेगा जिसने तकरीबन सारी धार्मिक चेतनाओं को यातना पहुंचाई है। इस कदर अमूर्त देवता जो इतनी दूर है कि सुदूरतम और ठंडे सितारे या अपने महान महल में खोए किसी चीनी सम्राट जैसा दिखता है; वही इस संसार में हर जगह व्याप्त है और उस अनन्त वास्तविकता के भीतर उपस्थित है जिसे वह खुद इतना नापसंद करता है। यह बात हमें चित्रकार तितोरेली से मालूम पड़ती है। जब कुछ छोटी लड़कियां जोसेफ के को छेड़ती हैं तो तितोरेली झुक कर इसके कानों में कहता है :"ये लड़कियां भी न्यायालय का हिस्सा हैं।" "क्या?" अपना सिर घुमाकर तितोरेली को घूरता जोसेफ पूछता है। चित्रकार वापस अपनी कुर्सी पर बैठता है और थोड़ा मजाक और थोड़ा समझाने के स्वर में बोलता है : “हरेक चीज न्यायालय का हिस्सा है।” इसमें कोई शक नहीं है : न केवल महान गुप्त न्यायाधीशों वाला 'द ट्रायल' का वह अदृश्य शिखर बल्कि इन पृष्ठों पर आने वाली हरेक चीज : वे घृणास्पद सिपाही¸ यहां तक कि वे भ्रष्ट तेरह साल की लड़कियां – सब कुछ न्यायालय है। सारा यथार्थ कानून बन गया है : रोजमर्रा के जीवन की हर चीज पवित्र बन गई है। ईश्वर ने हर चीज में अवतार ले लिया है और वह हर चीज में ठोस तरीके से विराजमान है। इस किताब के विरोधाभासों को हम इसी तरह सुलझा सकते हैं। एक तरफ तो अपने विशाल गलियारों में उपस्थित न्यायालय गुप्त है जैसा कि एक कर्मचारी बतलाता है : “जनता को सब कुछ मालूम नहीं है।” दूसरी तरफ उसे किसी विशिष्ट भवन की जरूरत नहीं क्योंकि उसने सारे मकानों में खुद को स्थापित कर लिया है और वह सारे व्यक्तियों पर हुक्म चलाता है। यहां तक कि बैंक में भी उसी का राज चलता है जहां किसी और शक्ति की जीत होनी चाहिए थी। उसके मुखबिर हर जगह हैं और हम नहीं जानते कि ऐसा कैसे हुआ पर किताब के हर छोटे बड़े पात्र को जोसेफ के के खिलाफ चल रहे मुकदमे की जानकारी है। न्यायालय अदृश्य भी है और हर जगह खुद को प्रकट भी करता है – ठीक ईश्वर की तरह।
‘अमेरिका’ में रोबिन्सन¸ देलामार्चे और ब्रूनेल्दा का स्थान ऐसा परजीवी संसार है जो कानून की दीवारों के परे है: एक ऐसा रंगीन चरागाह जिस पर कोई ध्यान नहीं देता। यही संसार 'द ट्रायल' में कानून द्वारा स्वीकार कर लिया गया है और उसने एक अध्यात्मिक आयाम प्राप्त कर लिया है। वे कर्मचारी¸ वैश्याएं¸ चित्रकार¸ वकील और निर्णय सुनाने वाले कुछ और ही हैं। जहां ईश्वर का दायरा बढ़ा है वहीं पवित्रता का ह्रास हुआ है : उसने कुख्यात और घटिया मैदानों पर अपना तम्बू गाड़ लिया है¸ जैसा दोस्तोव्स्की के यहां पहले ही हो चुका था। एक बारोक लेखक के लिए यह एक तरह की विजय होता – ईश्वर की हर जगह उपस्थित होने के तथ्य से ज्यादा कौन सी बात उत्साहित करने वाली हो सकती है बजाय उस ब्रह्मांड के जहां उसका कानून सर्वोपरि होता हो। लेकिन काफ्का के लिए यह एक अद्वितीय त्रासदी थी। सारी वास्तविकता कानून की शक्ल ले चुकी है जबकि वह खुद जरा भी नहीं बदली है बल्कि ‘अमेरिका’ के समय से और भी बदतर हो चुकी है; वह काफ्का के विरुद्ध है और उस पर अब एक नई और अधिक भीषण शक्ति का अधिकार है।
(जारी)
4 comments:
एक विनम्र आग्रह कि काफ्का पर हावर्ड फास्ट कि टिप्पणी भी पढ़ लें. मैं ने काफ्का को पढ़ा नहीं है, लेकिन फास्ट के टिप्पणी पढी है. आप भी पढ़ कर देखी, शायद आप उसे बेहतर समझ पाएंगे.
अगली पोस्ट का इंतज़ार है...
रेयाज़ साहब, जिस दौर में काफ़्का को हावर्ड फ़ास्ट ने चरम रिवीज़निस्ट बताया था, उस वक्त उनका ऐसा कहना गैर साहित्यिक कारणों से भी लाज़िमी था. जॉन हॉयल्स की पुस्तक 'द लिटरेरी अन्डरग्राउन्ड' में इस बात का ज़िक्र करने के बाद कहा गया है: ... And yet, even if. as Kafka might have put it, the absurd seems more often than not to have the last laugh, that laugh, as both Arendt and Fischer have argued, still serves humanity.
हाना आरेन्त और अर्न्स्ट फ़िशर जनपक्षीय दर्शन और आलोचना के बड़े नाम हैं. अर्न्स्ट फ़िशर की किताब 'द नेसेसिटी ऑफ़ आर्ट' कला को मार्क्सवादी नज़रिये से देखती हुई बहुत ज़बरदस्त किताब है.
मुझे हावर्ड फ़ास्ट भी पसन्द है. बहुत पसन्द है. पर मुझे काफ़्का भी बहुत पसन्द है. शायद फ़ास्ट से ज़्यादा. और दोनों की महानता पर किसी को क्या संशय हो सकता है.
आपने एक ज़रूरी टिप्पणी की, उसके लिए आपका धन्यवाद.
What a post Sir ! "The Trial" and "The Castle" ... apart from my favirite "The Complete Short Stories of Kafka" are amongst some of my early reads .. early 80's I guess.
For a person who published just 7 works of his in his lifetime, and yet commands this "Kafkasque" ... one can only say .. "What a wonder it is .. the Art of Non-Reaching"...
Thanks to Max Brod though !!!
Yes, thanks to Max Brod! We wouldn't have seen any of Kafka without his 'BETRAYAL'.
And thanks to you too! For having mentioned "Kafkasque".
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