Thursday, July 9, 2009

अभी तो सुबह के माथे का रंग काला है, अभी फ़रेब न खाओ बड़ा अन्धेरा है



रात का अजब बखत है. काम सारा निबट चुका. नींद हज़ारों मील दूर. न नशे की न किसी याद की फ़रियाद. बस बाबा मेहदी हसन ख़ान साहेब की लोरी. आ जाएगी कमबखत नींद भी. इस लोरी को याद रखियो. ग़ज़ल जाने किसकी राग जाने कौन सा ... बस आया चाहती है नींद ...

3 comments:

  1. hum to mehndi hasan ke deewane h...
    so is postle liye ashok ji ko ... dil se dhanyavad

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  2. डूब गये जनाब..एक गैप के बाद सुना. बहुत आभार.

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