अभी तो सुबह के माथे का रंग काला है, अभी फ़रेब न खाओ बड़ा अन्धेरा है
रात का अजब बखत है. काम सारा निबट चुका. नींद हज़ारों मील दूर. न नशे की न किसी याद की फ़रियाद. बस बाबा मेहदी हसन ख़ान साहेब की लोरी. आ जाएगी कमबखत नींद भी. इस लोरी को याद रखियो. ग़ज़ल जाने किसकी राग जाने कौन सा ... बस आया चाहती है नींद ...
hum to mehndi hasan ke deewane h...
ReplyDeleteso is postle liye ashok ji ko ... dil se dhanyavad
डूब गये जनाब..एक गैप के बाद सुना. बहुत आभार.
ReplyDeletevaah vaah
ReplyDeletekya khoob yaad dilaya