Friday, January 8, 2010

स्कॉच व्हिस्की के कुछ रहस्य



गेलिक भाषा में एक शब्द होता है - "usquebaugh", जिसका अर्थ हुआ "जीवनजल". ध्वनि के आधार पर यह शब्द कालान्तर में "usky" बन गया. जब अंग्रेज़ी भाषा ने इसे अपनाया तो यह बन गया "व्हिस्की". चाहे इसे स्कॉच व्हिस्की कहा जाए, चाहे स्कॉच चाहे व्हिस्की, दुनिया भार में इसके मुरीदों की संख्या बढ़ती चली गई है.

स्कॉटलैण्ड ने "स्कॉच" शब्द पर अपना एकाधिकार बनाया हुआ है. किसी भी व्हिस्की को स्कॉच तब कहा जाएगा जब वह स्कॉटलैण्ड में बनी हुई हो. स्कॉच की टक्कर की व्हिस्की बनाने में जापान को भी माहिर माना जाता है, लेकिन परम्परा ऐसी है कि वहां की व्हिस्की को स्कॉच के समकक्ष नहीं माना जा सकता.

"Eight bolls of malt to Friar John Cor wherewith to make aqua vitae"

वर्ष १४९४ में स्कॉटलैण्ड के कर-विभाग के दस्तावेज़ों में उक्त प्रविष्टि वहां स्कॉच निर्माण का सबसे पुराना उपलब्ध दस्तावेज़ है. जितनी मात्रा में मॉल्ट का इस प्रविष्टि में वर्णन है, उससे करीब डेढ़ हज़ार बोतलें बनाई जा सकती हैं. यानी व्हिस्की का उत्पादन बड़े पैमाने पर तभी होने लगा था.

मिथकों के अनुसार सन्त पैट्रिक ने व्हिस्की को डिस्टिल करने की प्रक्रिया को पांचवीं सदी में आयरलैण्ड में प्रचारित किया. डिस्टिलिंग के ये रहस्य डैलरियाडिक स्कॉटिशों के साथ इसी शताब्दी में उनके साथ किन्टैयर नामक एक स्थान पर ५०० ईस्वी के साल स्कॉटलैण्ड पहुंचे. सन्त पैट्रिक ने डिस्टिल करने की प्रक्रिया स्पेन और इटली में सीखी थी, जहां सम्भवतः लोग इस बारे में पहले से जानते थे.

डिस्टिलेशन की प्रक्रिया सबसे पहले इत्र बनाने में इस्तेमाल की गई. बाद में इस की मदद से वाइन बनाई गईं. बाद में इस प्रक्रिया से खमीर चढ़े अनाजों की मदद से "जीवनजल" बनाने की शुरुआत उन देशों में हुई जहां अंगूर उतनी ज़्यादा मात्रा में नहीं उगते थे. इस द्रव को हर जगह "जीवनजल" ही कहा गया क्योंकि इसका उत्पादन केवल मठों में होता था और तमाम तरह की बीमारियों से निबटने को इसका केवल औषधीय उपयोग किया जाता था. यहां तक कि चेचक के इलाज में इसका उपयोग होता था. बारहवीं शताब्दी में आयरलैण्ड के मठों में बाकायदा डिस्टिलरियां स्थापित हो चुकी थीं.




स्कॉटलैण्ड का महान रेनेसां-सम्राट जेम्स चतुर्थ (१४८८-१५१३) इन द्रवों का शौकीन था. १५०६ में डैन्डी नामक स्थान पर उसके आगमन के साल राजकोष की एक प्रविष्टि दिखाती है कि एक स्थानीय हज्जाम को राजा के लिए "जीवनजल" की सप्लाई के एवज में अच्छी ख़ासी रकम का भुगतान किया गया. यहां एक हज्जाम का ज़िक्र अचम्भे में नहीं डालता. १५०५ में गिल्ड ऑव सर्जन बारबर्स को एडिनबर्ग में जीवनजल के उत्पादन का एकाधिकार सौंप दिया गया था. इस तथ्य से यह जाहिर होता है है कि अल्कोहल की औषधीय महत्ता को स्वीकार कर लिया गया था. दीगर है कि हज्जामों के पास उस ज़माने में बाकायदा चिकित्सकीय कौशल हुआ करता था.

वैज्ञानिक निपुणता की कमी और पुरातन उपकरणों की मदद से बनने वाला यह द्रव सम्भवतः काफ़ी ज़बरदस्त पोटैन्सी वाला होता रहा होगा और शायद यदा-कदा हानिकारक भी. १५वीं शताब्दी में मठों के छिन्न भिन्न होने की वजह से बहुत सारे भिक्षुओं के सामने रोज़ीरोटी का संकट आन खड़ा हुआ तो उनमें से कुछ ने दारू बनाने की अपनी विशेषज्ञता को रोज़गार बना लेना ही बेहतर समझा. इस के बाद डिस्टिलिंग की जानकारी जल्दी जल्दी फैलना शुरू हुई.

इसकी बढ़ती लोकप्रियता जब स्कॉटिश संसद तक पहुंची तो सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उसने मॉल्ट और उससे बनने वाले उत्पाद पर बाकायदा टैक्स लागू कर दिया. १७०७ में इंग्लैण्ड द्वारा स्कॉटिश बाग़ियों के दमन की शुरुआत के साथ ही इन टैक्सों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो गई. बहुत सारी डिस्टिलरियां भूमिगत हो गईं.

टैक्स वसूलने वाले दलों और अवैध दारू-निर्माताओं के बीच खूनी संघर्ष आम हो गए. अगले डेढ़ सौ सालों तक स्मगलिंग और अवैध शराब का बोलबाला रहा. कई बार तो ताबूतों के भीतर रख कर शराब की स्मगलिंग की जाती थी.
१८२० के दशक तक हाल यह था कि बावजूद हर साल १४००० अवैध डिस्टिलरियों को नष्ट किए जाने के स्कॉटलैण्ड में पी जाने वाली आधी से ज़्यादा शराब नकली या अवैध होती थी.



कानून का ऐसा दुरुपयोग देखते हुए ड्यूक ऑव गॉर्डन ने व्हिस्की उत्पादन को वैधता देने का प्रस्ताव रखा. १८२३ में एक्साइज़ एक्ट पारित हुआ जिसके मुताबिक दस पाउन्ड की रकम के एवज़ में शराब बनाने का लाइसेन्स जारी किये जाने का कानून पारित हुआ. उत्पादित की गई व्हिस्की पर प्रति गैलन एक नियत आबकारी टैक्स लगाए जाने का प्रावधान हुआ. इस से अगले दस सालों के भीतर स्मगलिंग पूरी तरह समाप्त हो गई. और दर असल आज की सबसे नफ़ीस शराब बनाने वाली डिस्टिलरियां स्मगलरों द्वारा इस्तेमाल की गई जगहों पर स्थापित की गईं.

इस आबकारी कानून ने स्कॉच व्हिस्की उद्योग की नींव डाली. इसके अलावा दो और बातें हुईं जिनकी वजह से स्कॉच-उद्योग को बहुत फ़ायदा पहुंचा.

अब तक हम ने मॉल्ट व्हिस्की का ही ज़िक्र किया है. लेकिन १८३१ में एनीयास कोफ़ी नामक एक शराबनिर्माता ने ऐसी तकनीक ईजाद की कि अनाज को डिस्टिल कर के थोड़ा हल्के स्वाद वाली व्हिस्की बना पाना सम्भव हो गया. इस प्रकार माल्ट व्हिस्की के साथ साथ ग्रेन व्हिस्की बना पाने में महारत रखने के कारण स्कॉटलैण्ड ने समूचे यूरोपीय बाज़ार पर अपना सिक्का जमा लिया.

दूसरी बात इत्तफ़ाक़न घटी. १८८० के दशक में फिलॉक्सेरा नाम के एक कीड़े ने फ़्रांस भर के अंगूर - बागानों को तहसनहस कर डाला था. जल्द ही फ़्रांस भर के घरों से वाइन और ब्रान्डी का भंडार खत्म होने लगा. स्कॉटलैण्ड के शराब-निर्माताओं ने अपना मौका ताड़ा और जब तक फ़्रांस का दारू-उद्योग सम्हलता यूरोप भर में ब्रान्डी की जगह स्कॉच व्हिस्की ने ले ली थी.

तब से स्कॉच व्हिस्की बनी हुई है. प्रतिबन्धों, युद्धों, क्रान्तियों, मन्दी वगैरह के बावजूद बनी हुई है. संसार भर में आज दो
सौ से ज़्यादा देशों में स्कॉच व्हिस्की की बड़े पैमाने पर खपत होती है.

जल्द ही आपको स्कॉच व्हिस्की के कुछ आलीशान ब्रान्ड्स के बारे में बताऊंगा.

फ़िलहाल एक छोटी सी दिलचस्प जानकारी. आप को पता है दुनिया में सबसे महंगी स्कॉच व्हिस्की कौन सी है? हैरान मत होइयेगा. Macallan 1926 की एक बोतल ७५,००० डॉलर यानी करीब तीसेक लाख रुपये की बिकी. कम्पनी द्वारा जारी एक वक्तव्य में बताया गया था कि यह बोतल सियोल की एक दुकान की सेफ़ में रखी हुई थी. पूरा भुगतान किये जाने के बाद ही बोतल ग्राहक को सौंपी गई.



वैसे अगर आप इसे लेना चाहें तो अब यह ब्रान्ड बाज़ार में समाप्त हो चुका है. खुले बाज़ार में कम्पनी इसे मात्र ३८,००० डॉलर यानी करीब सोलह लाख रुपये में बेच रही थी. अब बाज़ार में यह उपलब्ध नहीं है लेकिन आप इसे चखना ही चाहते हैं तो न्यू जेरेसी बोरगाटा होटल कैसीनो एन्ड स्पा में ३३०० डॉलर प्रति पैग के हिसाब से जेब ढीली करने को तैयार रहिये.

7 comments:

Udan Tashtari said...

जीवनजल की हमारी वाली जॉनी ब्लैक नहीं दिखी..बाकी तो चकाचक!!

निर्झर'नीर said...

rochak jaankari di hai aapne ..abhar

मृत्युंजय said...

न सही मय न सही ज़िक्र से क्या गुज़री है
दिले हज्ज़ाम ने यूँ बज़्म में तिश्ना पटका

डॉ महेश सिन्हा said...

रोचक जानकारी जुटायी है आपने हज्जाम से शल्य चिकित्सक . जीवन जल और संत पैट्रिक वाह

अमिताभ श्रीवास्तव said...

ham peenevaale hote to jaroor kahte bahut behatreen jaankaari, par fir bhi saamanya gyaan ke liye achhi jaankaari he.../ udan tashtri ke sameer ji ke kahe par bhi jaroor gour kare.
BAAKI CHAKACHAK

Unknown said...

इतनी अच्छी जानकारी देने के लिये धन्यवाद!

आज हिन्दी ब्लोग्स में ऐसे ही जानकारीयुक्र लेखों की बहुत आवश्यकता है ताकि नेट में हिन्दी एक विशाल पाठकवर्ग बन सके। आपने सराहनीय कार्य किया है! हो सके तो इसे गूगल की 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता में भी डाल दें।

अजय कुमार झा said...

क्या सर, मैंने सोचा कि कित्ते टाईम पर जानकारी उपलबध कराई है , भाग कर straw ले आया और पोस्ट में लगी सारी बोतलों में एक एक कर घुसेडी ...दो बूंद जिंदगी के कहीं नसीब नहीं हुए । बताईए कितनी नाइंसाफ़ी है स्कौच की जानकारी चाय पीते पीते पढ रहा हूं