Friday, April 9, 2010

अ केस ऑफ़ एक्सप्लोडिंग मैन्गोज़


कल रात ही एक किताब ख़त्म की है अ केस ऑफ़ एक्सप्लोडिंग मैन्गोज़. पाकिस्तानी पत्रकार मोहम्मद हनीफ़ का यह पहला उपन्यास उस हवाई जहाज़ दुर्घटना पर आधारित है जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन फ़ौज़ी तानाशाह जनरल ज़िया उल हक़ और कुछ अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी मारे गए थे, जिनमें पाकिस्तान में तत्कालीन अमरीकी राजदूत आर्नोल्ड रफ़ेल भी शामिल थे.

उपन्यास का सूत्रधार पाकिस्तानी वायुसेना का एक जूनियर ऑफ़िसर अली शिगरी है जो हर क़ीमत पर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहता है. उसके पिता कर्नल शिगरी कुछ साल पहले अपने घर में अपनी ही चादर से छत से टंगे पाए गए थे. हालांकि सेना के अधिकारियों ने उनकी मृत्यु को आत्महत्या करार दिया था, अली शिगरी को पक्का यक़ीन था कि ज़िया उल हक़ ने उनकी ह्त्या की साज़िश रची थी.

अली शिगरी को जल्द पता चल जाता है कि एक साथ बहुत सारी घटनाएं और तत्व सक्रिय हैं - पाकिस्तान में अमरीकियों की उपस्थिति, अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेना, हर किसी को डॉलर कमाने की चाहत. लेकिन अली धैर्य रखे रहता है. हालांकि उसके इरादे मज़बूत बने रहते हैं, कहीं कहीं उसे दुनिया के प्रति ऊब भी महसूस होती है जैसे एक बार तन्हाई वाली कोठरी में क़ैद अली कहता है "आप आज़ादी मांगते हैं और वे आपको चिकन कोरमा खाने को देते हैं." वह एक बड़ी योजना तैयार करता है जिसमें उसके साथ रेशमी अन्तर्वस्त्र पहनने वाला उसका रूममेट है, हशीश का शौकीन एक अमरीकी लेफ़्टिनेन्ट है जिसके इरादों पर लगातार शक किया जा सकता है; पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था का मुखिया समझता है कि अली ने सी. आई. ए. से सम्बन्ध बना रखे हैं; व्याभिचार के झूठे आरोप में क़ैद एक अन्धी औरत है; स्क्वाड्रन का धोबी अंकल स्टार्ची है और आम का स्वाद पाने के लिए कैसा भी जोख़िम उठा लेने वाला एक कौवा है. जनरल ज़िया एक कट्टर धार्मिक मुसलमान हैं जिन्हें ग़ैर मुस्लिम महिलाओं के उरोजों का दर्शन करना अच्छा लगता है. हर सुबह जनरल ज़िया अपने सुरक्षा प्रमुख से पूछते हैं - "मुझे कौन मारना चाहता है?"

डार्क ह्यूमर में लिखे गए इस उपन्यास की शैली बेहद दिलचस्प है और भाषा लुभाने वाली. लेखक एक ऐसे संसार की सर्जना कर पाने में सफल हुआ है जो आशातीत तरीक़े से हमारे अपने संसार जैसा लगता है.

इधर के वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप से निकले प्रतिभाशाली लेखकों की सूची में मोहम्मद हनीफ़ ने अपनी जगह बना ली है. किताब को गार्जियन फ़र्स्ट बुक अवार्ड के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था.

बीच के दस बीस पन्ने उबाऊ होने के बावजूद किताब मुझे बेहद पसन्द आई. अगर आप उम्दा फ़िक्शन के प्रेमी हैं तो आपको इसे ज़रूर पढ़ना चाहिये.
पुस्तक का बेहद दिलचस्प शुरुआती हिस्सा पढ़ने के लिए नीचे लिखे लिंक पर जाएं -

A Case of Exploding Mangoes

1 comment:

मुनीश ( munish ) said...

I had some vague idea about the content of this book . General Zia met a befitting end ,but not before launching his infamous theory of ' Bleed India with thousand cuts' . This Pak-despot was a cricket fan , loved to watch Shatrughan Sinha's movies and fathered islamic militancy in this subcontinent.