Friday, April 9, 2010

आई प्रवीर - द आदिवासी गॉड - ३

(पिछली किस्त से जारी)

आई प्रवीर - द आदिवासी गॉड - ३

(पिछली किस्त से जारी)

आर. सी. वी. पी. नरोना, डिप्टी कमिश्नर, मुख्यमन्त्री रविशंकर शुक्ला का पत्र लेकर मेरे पास आया था. इस पत्र में सरकार द्वारा मेरी संपत्ति में से रोक लिए गए आठ लाख रुपये दिलाए जाने का प्रलोभन था. जिसके लिए शर्त यह थी कि मैं सुन्दरलाल का विधायकी के लिए समर्थन करूं. जगदलपुर के ही कुछ लोगिस चुनाव में स्वयं खड़े होना चाहते थे और मेरे द्वारा नामित विद्यानाथ का विरोध करने लगे थे और इसी कारण मुझे इन थोपे गए कांग्रेसियों और स्थानीय लोगों के बीच बलि का बकरा बना दिया गया था. नरोना ने इस अवसर का लाभ उठाकर राहत की सांस ली क्योंकि गलत प्रतिनिधित्व का बहाना उसे मिल गया और मेरी अस्वीकृति के बाद वह मुख्यमन्त्री रविशंकर शुक्ला का कृपापात्र बनकर मेरे विरुद्ध उसके द्वारा की जा रही कार्रवाई को जारी रखा जा सकता था.

इस आम चुनाव के बाद नरोना की नीति मेरे विरुद्ध आम लोगों में घृणा फैलाने की थी. मैं चूंकि उस काल में भी एक मान्यताप्राप्त महाराजा था, और बस्तर के निवासी मुझे अन्तर्मन से स्नेह करते थे - वह उन्हें जेल भिजवा देने की धमकी देकर भयग्रस्य कर मेरे विरुद्ध घृणा फैलाने के लिए बाध्य करता था.वह मुझसे भी अपनी बैलबुद्धियुक्त व्यवहार करने लगा था. यही नहीं वह मेरे शिकार के लिए आरक्षित क्षेत्र अमरावती में मेरे द्वारा किए गए वनभैंसों के शिकार का विरोध करने लगा था. यह हाल था भारत मे गणतन्त्र का जिसके लिए कितने ही लोग ब्रितानी प्रशासन से लड़कर मारे गए थे. भारतीय संविधान आम आदमी के साथ ही साथ पूर्व रियासतीऊ शासकों को भी उनके मूलभूत अधिकारों की गारन्टी देता है. किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह कांग्रेस पार्टी केवल अपने लिए चुनावी मतों में ही रुचि रखती है और उसकी नज़र में वे सभी व्यक्ति देश के शत्रु हैं जो उसके सिद्धान्तों के अनुरूप न चल कर किसी स्वतन्त्र या अन्य सिद्धान्त वाले दल के लिए कार्य करना चाहते हैं या उसका समर्थन करना चाहते हैं. अपनी आज़ादी के लिए वर्षों तक कठिन संघर्ष करने के बाद हम भारतीय कितने विशालहृदय हो गए हैं यह उनकी कारगुज़ारियों में दिखाई देता है. नरोना यह सब केवल इसलिए करता था क्योंकि इस चुनाव में थोपे गए उम्मीदवार सफलता के लिए ज़रूरी मत प्राप्त करने में बावजूद सभी प्रयासों में असफल रहे. इस के बाद मुख्यमन्त्री रविशंकर शुक्ला की शह पर स्थानीय सरकारी वर्ग ने षडयन्त्र कर दुर्भावनापूर्वक मुझे और मेरी सम्पत्ति को कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के तहत देकर मुझे मेरी सम्पत्ति के उपयोग के लिए प्रतिबन्धित कर दिया. उनकी अन्यायपूर्ण कारगुज़ारियों के लिए उनका एकमात्र बहाना यह था - मेरे द्वारा रुपये पैसे का याचकों और ज़रूरतमन्द लोगों में वितरण जो सहायता या दानपुण्य के रूप में किया जाता था. उनके विचार से मैं ऐसा अपनी रियासत वापस पाने के लिए कर रहा था. कितनी हास्यास्पद है यह बात और उनका यह अनुमान जबकि उनके द्वारा की जा रही संपत्ति का वितरण जो वे सहायता और अनुदान के रूप में कुपात्रों, ग़ैरज़रूरतमन्दों और भ्रष्ट लोगों में अपने निहित स्वार्थों के लिए करते हैं, उन्हें स्वीकार्य है. ये आज भी घोषणा करते नहीं अघाते हैं कि हमने अपनी ज़मीन चीन से वापस ले ली है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. सुन्दरलाल और सूर्यपाल को मेरे मेरे विरोध के लिए कोई तो मार्ग खोजना ही था इसलिए वे मुख्यमन्त्री रविशंकर शुक्ला द्वारा बस्तर में अपनी तानाशाही बनाए रखने के लिए सहर्ष इस षडयन्त्र में शामिल हो गए. नरोना अपने आप को ईश्वर पर आस्था रखने वाला व्यक्ति कहता था. यह उसका सौभाग्य था कि मैंने उसके साथ एक अन्य व्यक्ति की तरह व्यवहार किया था. विजयचन्द्र भंजदेव जो अभी मात्र बालक ही था, जल्द ही उसकी दम्भोक्तियों से प्रभावित हो गया. सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस की प्रान्तीय सरकार मेरे भाई विजयचन्द्र भंजदेव को मेरे विरुद्ध भड़का कर अपने हाथों का एक खिलौना या कठपुतली बनाकर रख लेना चाहती थी.

इसके कुछ समय बाद प्रान्तीय सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद को विशेष रूप से बस्तर में आमन्त्रित किया था, जिसके लिए मुझे विश्वास में नहीं लिया गया और जो शायद केवल मुझे अपमानित करने या नीचा दिखाने के लिए किया गया था और शायद यही कारण था कि मैं उनसे नहीं मिल सका. कांग्रेसी लोगों का एक प्रतिनिधिमण्डल कांकेर के महाराजा की अध्यक्षता में राष्ट्रपति के बस्तर आगमन पर हवाई अड्डे में मिला और मेरे विरुद्ध उन्हें एक ज्ञापन दिया. इस पर मुख्यमन्त्री रविशंकर शुक्ला ने मुझे एक चिठ्ठी लिखकर कहा थी कि प्रधानमन्त्री पं. नेहरू मेरे व्यवहार से अप्रसन्न हैं. मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि इसमें प्रधानमन्त्री की अप्रसन्नता के लिए भी क्या कोई कारण था, क्योंकि न तो मैं बस्तर का पूर्ण प्रभावी शासक था और न ही मैं राष्ट्रपति से मिलने के लिए किसी कानून के तहत बाध्य था. एक अप्रैल १९६३ को प्रान्तीय सरकार के द्वारा एक आदेश पारित किया गया था जिसके द्वारा मुझे एक अस्थिर मस्तिष्क का व्यक्ति घोषित किया गया था. इसके साथ ही मुझे नेग्लोमेनिया नामक बीमारी से रुग्ण बताया गया था जबकि मैंने इसे कभी अनुभव नहीं किया. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पं. नेहरू भारी रकम आदिवासी क्षेत्रों के लिए, अनुदान के रूप में, बड़ी-बड़ी घॊषणाएं कर रहे हैं, जिससे आदिवासी क्षेत्रों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कहा जा सकता है. किन्तु कांग्रेस की प्रान्तीय सरकार विद्वेष के कारण इसका कोई लाभ बस्तर के आदिम समुदाय तक पहुंचने ही नहीं देती. प्रान्तीय सरकार द्वारा मेरे विरुद्ध पारित आदेश का बस्तर के निवासियों ने जम कर घोर विरोध किया था. वास्तव में यह आदेश न केवल असंवैधानिक था बल्कि यह प्रान्तीय सरकार की अनैतिकतापूर्ण एक दुर्भावना थी, जिसके तहत प्रान्तीय सरकार मुझे मेरे महल आवास में क़ैद करके रख लेना चाहती थी. प्रान्तीय सरकार का य्ह दुर्भावनापूर्ण आदेश बिना किसी न्यायिक जांच के जारी किया गया था और इस प्रकार एक प्कपक्षीय रूप से इसी सरकार के द्वारा विलय अनुबन्ध की शर्तों के अनुरूप की गई सन्धि भी तोड़ दी गई थी. इसी सन्धि के अनुसार रियासतों के पूर्व शासकों को उनकी अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी राजनैतिक दल में सम्मिलित होने अथवा अपना समर्थन देनेका स्पष्ट उल्लेख है. मैं समझता हूं कि इसके अतिरिक्त भी भारत में आम आदमी को यह संवैधानिक अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप किसी भी राजनैतिक दल में सम्मिलित होकर या बिना सम्मिलित हुए भी अपना समर्थन दे सकता है और किसी नागरिक को भी कोई दण्ड दिया जा सकता जब वह किसी प्रकार की प्रशासनिक कार्रवाई में हस्तक्षेप कर कानूनी तौर पर कोई दण्डनीय अपराध करे. यह कितने दुख की बात है कि एक रियासत के पूर्व शासक और महाराज उसके देश के भारतीय लोगों के द्वारा केवल इसलिए प्रशासन में हस्तक्षेप का अपराधी कहा जावे क्योंकि वह कांग्रेसी उम्मीदवारों का समर्थन नहीं करता और केवल स्वतन्त्र या निर्दलीय उम्मीदवारों को अपना राजनैतिक समर्थन देता है. मैं समझता हूं इस संकीर्ण मानसिकता वाली कांग्रेस की गलाकाटू नीति ही शायद एकमात्र कारण है जो शनैः शनैः पूंजीवादी एवम पारिवारिक वंशानुगत शासन की ओर भारत को लिए जा रही है. यह आरोप जो बस्तर के पूर्व शासक के लिए शुरू से ही लगाए जा रहे हैं, भारतीय जनमानस में अत्यधिक रुचिकर रहे हैं. रायपुर के विधायक ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने मध्य प्रदेश की विधान सभा में बस्तर के सन्दर्भ में एक नीतिगत सरकारी वक्तव्य की मांग की थी जिसे केवल उपेक्षित कर टाल देने की साज़िश की गई थी. किन्तु बाद में यही उपेक्षापूर्ण टालू-नीति सरकार के गले में फांस बन गई थी जो इस सरकार के मुंह पर एक करारी चोट साबित हुई थी. फिर भी मैं यहां यही कहूंगा कि यह और कुछ नहीं केवल इस अपरिपक्व कांग्रेस की प्रान्तीय सरकार की मेरे प्रति एक दुर्भावना ही थी. देवी मां की कृपा से मैंने यह आज दुनिया को दिखा दिया है कि रियासती सत्ता के बिना भी बस्तर के निवासियों का न केवल एक शासक हूं बल्कि उन्हें अन्तर्मन से प्यारा हूं. बावजूद सभी मान्यताओं के मेरा भाई विजयचन्द्र भंजदेव बिलचित इस बस्तर रियासत में प्रान्तीय सरकार के हाथों का एक खिलौना या कठपुतली बनकर रह गया है.

(जारी)

1 comment:

Anil Pusadkar said...

पढ रहे हैं,आगे भी पढेंगे.