Tuesday, February 15, 2011

मेरी ख्वाहिश है कि मैं हो जाता अँधेरे में एक कंदील


विश्व कविता के प्रेमियों के लिए फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश ( १३ मार्च १९४१ - ०९ अगस्त २००८ )  कोई अपरिचित - अनचीन्हा नाम नहीं है। हिन्दी पढ़ने - पढ़ाने वालों की दुनिया में उन्हें खूब अनूदित किया गया है और खूब पढ़ा गया है / खूब पढ़ा जाता रहेगा। नेरुदा, लोर्का , नाजिम हिकमत की तरह उन्हें चाहने वालों की कतार कभी छोटी नहीं होगी।  आइए आज देखते - पढ़ते हैं उनकी एक प्रसिद्ध कविता : 'दूसरों के बारे में सोचो'।



महमूद दरवेश की कविता

दूसरों के बारे में सोचो
( अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह )

जब तुम तैयार कर रहे होते हो अपना नाश्ता
दूसरों के बारे में सोचो
( भूल मत जाना कबूतरों को दाने डालना )

जब तुम लड़ रहे होते हो अपने युद्ध
दूसरों के बारे में सोचो
( मत भूलो उनके बारे में जो चाहते हैं शान्ति )

जब तुम चुकता कर रहे होते हो पानी का बिल
दूसरों के बारे में सोचो
( उनके बारे में जो टकटकी लगाए ताक रहे हैं मेघों को )

जब तुम जा रहे होते हो अपने घर की तरफ
दूसरों के बारे में सोचो
(उन्हें मत भूल जाओ जो तंबुओं - छोलदारियों में कर रहे हैं निवास)

जब तुम सोते समय गिन रहे होते हो ग्रह - नक्षत्र - तारकदल
दूसरों के बारे में सोचो
( यहाँ वे भी हैं जिनके पास नहीं है सिर छिपाने की जगह )

जब तुम रूपकों से स्वयं को कर रहे होते हो विमुक्त
दूसरों के बारे में सोचो
( उनके बारे में जिनसे छीन लिया गया है बोलने का अधिकार )

जब तुम सोच रहे हो दूरस्थ दूसरों के बारे में
अपने बारे में सोचो
( कहो : मेरी ख्वाहिश है कि मैं हो जाता अँधेरे में एक कंदील)

6 comments:

वाणी गीत said...

दूसरों के बारे में सोचो ..
और ये भी की मैं हो जाता कंदील ...

दरवेश जी की संदेशपरक कविता के लिए बहुत आभार !

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब, औरों के लिये सोचना वाला कंदील ही होना चाहेगा।

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Pratibha Katiyar said...

Waah!

Sandeep Gaur said...

bahut badhia....

मुनीश ( munish ) said...

Beautiful because beauty lies in simplicity.