Sunday, November 3, 2013

एक बंजारिन आवाज़ से लम्बी जुदाई !


सन पि़च्यासी के पहले की बात है ये. फ़िल्म 'हीरो' का गीत फ़िज़ाओं में गूँज उठा था और जिन्होंने इन्दौर में तो क्या भारत भर में जिन लोगों ने रेशमा को देखा नहीं था वे समझ थे कि ये कोई सोफ़ेस्टिकेटेड फ़िल्मी गायिका होगी. दिल्ली में डॉ.हरीश भल्ला (वही दूरदर्शन के 'अंधी गलियाँ शो' वाले और बहुतेरे पाकिस्तानी कलाकारों में मेज़बान) के ज़रिये ये प्रोग्राम इन्दौर में तय हुआ था.लायन्स क्लब के आतिथ्य में रेशमा जी मदू की गईं थी. जब ऑडिटोयम पहुँचा तो देखा हारमोनियम और नाल के साथ दो कलाकारों के बीच रेशमा सादा सा सलवार-कुर्ता पहने बैठीं हैं और माथा दुपट्टे से बाक़ायदा ढंका हुआ है. पास पहुँचते ही पैर छू लिये तो बोलीं आप हिदुस्तानी लोग फ़नक़ारों को बहुत इज़्ज़त बख़्शते हैं. फिर जब मैंने कहा कि मुझे आपका शो एंकर करना है तो अपने साथी से कहा ( संभवत: वह उनके पति थे) काँई के रिया हे ई ? मुझे राजस्थानी आती है सो जान गया कि इन्हें एंकर का मतलब समझ में नहीं आया है.  मैं बीच में बोला रेशमा आपा मैं आपके शो का एनाउंसमेंट करने वाला हूँ. ठहाका लगा कर बोलीं कि अरे आपको तो हमारी ज़ुबान समझ में आ गई.  मैंने बताया कि हमारा मालवा भी राजस्थान का हिस्सा ही है और राजस्थानी एक तरह से मालवी की माँ है. फिर तो उनसे राजस्थानी और मालवी में देर तक बातें चलती रहीं और उनसे ऐसा राब्ता बन गया जैसे बरसों से उनसे वाक़फ़ियत रही हो. कलाकार की सादगी और निश्छलता क्या होती है ये रेशमा से मिलकर ही समझ में आया .  मैंने पूछा कि आपका कोई ब्रोशर या टाइप किया हुआ बायोटाडा हो तो रेशमाजी ने बड़ी बेतक़ल्लुफ़ी से कहा बंजारों का क्या बायोटाडा. लिख लो बीकानेर (राजस्थान) की सरज़मीन की पैदाइश हूँ और अब दरवेशों के आस्तानों से मिली चीज़ों को सुनाती फिरती हूँ. मैंने हीरो फ़िल्म के गीत लम्बी जुदाई का ज़िक्र किया तो कहने लगी कि ये नग़मा तो हिन्दुस्तान में मेरी मुँह दिखाई है. मैं क्या गाती हूँ वो तो अब सुनना. इसके बाते रेशमा बुल्लेशाह,बाबा फ़रीद की रचनाओं को गाती रहीं.
रेशमा के गाने में एक जुदा अंदाज़ था. उनके कंठ का खरज वह रियाज़ और उस्तादों का तराशा हुआ नहीं था वह कहीं रेगिस्तानों की उस बालू की तरह था जिसमें ऊपरी तपिश और भीतरी ठंडक होती है. वह स्वर क़ायनात की उस ख़ला की उपज था जो ख़ामोशी को और अधिक विस्तार देता था. हाँ कुछ बंदिशों में उसमें पंजाब की मस्ती भी शुमार हो जाती थी और पान की ललाई में भीगे होठों के बीच से उनके दाँतों से वह झरती हुई कुछ और अधिक मादक हो जाया करती थी. पूरे कंसर्ट में मैंने उनके सामने कोई डायरी या काग़ज़ नहीं देखा. हर चीज़ उन्हें मुँहज़ुबानी याद थी. मेरी ज़िन्दगी का सबसे रौशन लम्हा तब आया जब हमने उनके लाइव शो के दूसरे दिन एक गुफ़्तगू के लिय आमंत्रित किया. यह युवाओं का एक संगठन था. उन्होंने साफ़ कह दिया था बात करूंगी,गाऊँगी नहीं. बातचीत शुरू हुई.जब मुझे लगा कि मैं सारे सवाल कर चुका तो अब कुछ गाने का इसरार कर ही लूँ.मैने कहा रेशमा आपा कोई मुसव्विर आए और उसके हाथ से एक तस्वीर बनते न देखी जाए तो कैसे मालूम पड़ेगा उसका फ़न क्या है और वह किस पाये का आर्टिस्ट है-मैंने कहा कि आपको सुने बिना भी सुरों की मिठास क्या होती है कैसे पता पड़ेगा. राजस्थानी में उन्होंने मुझे कहा म्हें थाँकों इसारो समझ गी हूँ ( मैं तुम्हारा इशारा समझ गई हूँ) रेशमाजी ने गाने से बचने के लिये बड़े प्यार से कहा कि गाने के लिये तो साज़ होने चाहिये न...मैंने कहा कि आपकी आवाज़ को साज़ कहाँ दरकार ? आप तो बंजारन हैं...रेगिस्तान में सफ़र करते हुए कहाँ साज़ होते हैं.तो तत्काल जुमला आया कि भई ताल तो चाहिये न...और जिस रौशन लम्हें का ज़िक्र मैंने ऊपर किया वह समझिये आ गया.. जिस टेबल के सामने मैं और रेशमा जी बैठे हुए थे उसे दिखा कर कहा इससे ताल का काम हो जाएगा...रेशमाजी ने कहा बजाएगा कौन..मैंने कहा मैं बजाऊँगा...और रेशमा जी शुरू हो गईं......ब्याह पर गाए जाने वाले एक पंजाबी गीत से शुरू किया और तक़रीबन दो घंटे तक उन्होंने गीतों की झड़ी लगा दी.....और सिर्फ़ टेबल पर मेरी संगत के सहारे.... बिना किसी साज़ का आसरा लिये हुए रेशमा का वह करिश्माई स्वर गूँज रहा था. हम सुनने वालों को लग रहा था कि हम ऊँट गाड़ी में बैठे एक ऐसी सुरीली यात्रा के हमराह हो लिये हैं जो ज़िन्दगी में शायद कभी न मिले. रेशमा चलीं गईं हैं लेकिन ये आवाज़ें कुदरत की कारीगरी का नमूना हुआ करतीं हैं.जब कभी मौसीक़ी के हवाले से ऐसी आवाज़ों का इंतेख़्वाब होगा जिसका दरदरापन रूह की शुध्दि का सबब बन सकता है तो बिला शक हमें रेशमा के साये में जाना पड़ेगा.

 (तस्वीर उसी मौक़े की है जिसमें रेशमाजी के साथ ख़ाक़सार टेबल पर साज-संगत कर रहा है)

10 comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

एक-एक करके पुराने पेड़ गिरते जा रहे हैं...पर इनकी छाया हमें हमेशा याद आती रहेगी....रेशमा जी को मेरी और से श्रद्धांजलि....

आपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

जिस रेशमा से हमारा परिचय है वह तो अमर है । हीरो के उस अविस्मरणीय गीत की अमक गायिका को हार्दिक श्रद्धांजलि ।

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [4.11.2013]
चर्चामंच 1419 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [4.11.2013]
चर्चामंच 1419 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

Guzarish said...

नमस्कार !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [4.11.2013]
चर्चामंच 1419 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया

Lalmani Tiwari said...

रेशमा जी की आवाज ने हमें अपने अहसासों और जज्बातों की गहराइयों से रूबरू कराया है। उनकी आवाज अमर है और संत शहबाज कलंदर की दरगाह से गायन की शुरुआत करने वाली रेशमा हमारे दिलों में हमेशा जिन्दा रहेंगी।

राजीव कुमार झा said...

रेशमा जी कुदरती और अनगढ़ आवाज थी,और उसमें पंजाबियत की मीठी खुशबू भी.उनके कई पंजाबी गाने इसकी मिसाल हैं .
रेशमा जी को विनम्र श्रद्धांजलि.

Yogi Yogendra said...

अविस्मरणीय परिचय कराया है आपने , खिलंदड आवाज की मलिका रेशमा जी को श्रध्दांजलॊ

Yogi Yogendra said...

अविस्मरणीय परिचय कराया है आपने,खिलंदड आवाज की मलिका रेशमा जी को श्रध्दांजलॊ

ANIL said...

Reshma ji ki awaj ko koi nahi boola sakta