ये खेल होगा नहीं दुबारा
-निदा फ़ाज़ली
बदलती शक्लों
बदलते जिस्मों में
चलता-फिरता ये इक शरारा
जो इस घड़ी
नाम है तुम्हारा
इसी से सारी चहल-पहल है
इसी से रोशन है हर नज़ारा
सितारे तोड़ो या घर बसाओ
क़लम उठाओ या सर झुकाओ
तुम्हारी आँखों की
रोशनी तक
है खेल सारा
ये खेल होगा नहीं
दुबारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा
4 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2249 पर दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2249 पर दिया जाएगा
धन्यवाद
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 11 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
लाजवाब ।
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