tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post872747903661625274..comments2023-10-29T13:39:06.893+05:30Comments on कबाड़खाना: राजधानियां नहीं होतीं पानी कीAshok Pandehttp://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-10429518013424164562009-01-02T11:50:00.000+05:302009-01-02T11:50:00.000+05:30"नदी बोली समन्दर से मैं तेरे पास आई हूं"कविवर डा. ..."नदी बोली समन्दर से मैं तेरे पास आई हूं"<BR/>कविवर डा. कुवंर बैचेन जी की रचना है... इसे सुर और प्रत्यक्ष देखना चाहे तो.. <BR/><BR/>www.sahityashilpi.com पर देख सकते हैं.. उन्ही की आवाज मेंMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-15379558203018491592008-06-14T20:46:00.000+05:302008-06-14T20:46:00.000+05:30उम्दा रचनाएं। शुक्रिया साहेब....उम्दा रचनाएं। शुक्रिया साहेब....अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-66565235701849544522008-06-11T07:42:00.000+05:302008-06-11T07:42:00.000+05:30इन गीतों में इतनी गहराई है की एकबारगी लगता है सब क...इन गीतों में इतनी गहराई है की एकबारगी लगता है सब कुछ समझ गए फ़िर और सोचता ह टू समझ में आता है की क्या क्या बात कही गई है. अलंकारों से भरी कविता पढ़वाने के लिए अतुल जी और अशोक जी आपका भी धन्यवादRajesh Roshanhttps://www.blogger.com/profile/14363549887899886585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-81152473941835525412008-06-11T00:04:00.000+05:302008-06-11T00:04:00.000+05:30पेड़ की डाल परकुर्सी की तरह बैठो बच्चोयह कुर्सी सबस...पेड़ की डाल पर<BR/>कुर्सी की तरह बैठो बच्चो<BR/>यह कुर्सी सबसे ठीक है<BR/>-इसकी जड़ें हैं.<BR/>===================<BR/>सार्थक चयन.<BR/>आभार<BR/>डा.चंद्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-39948356831157265922008-06-10T22:22:00.000+05:302008-06-10T22:22:00.000+05:30पेड़ की डाल परकुर्सी की तरह बैठो बच्चोयह कुर्सी सबस...पेड़ की डाल पर<BR/>कुर्सी की तरह बैठो बच्चो<BR/>यह कुर्सी सबसे ठीक है<BR/>-इसकी जड़ें हैं.<BR/><BR/>भाई, उम्दा! बहुत उम्दा!विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-21601370382066967592008-06-10T21:13:00.000+05:302008-06-10T21:13:00.000+05:30अशोक भाई, मजा ही आ गया, अपने दोनों ही अजीजों का जि...अशोक भाई, मजा ही आ गया, अपने दोनों ही अजीजों का जिक्र पढ्कर. अतुल भाई की कविता निश्चित ही खूब हैं - उन्हीं के एक गीत की पंक्ति<BR/>"अब तो सडकों पर आओ, ओ शब्दों के कारीगर"<BR/>अभी फ़ोन पर बात हुई थी- मार्फ़त आपके ही. चलिये अतुल भाई को जल्द ही आप लिखो यहां वहां पर पढियेगा. पर कविता नही. कमबख्त ने कबसे वायदा किया हुआ है, उम्मीद है अब लिख ही ले जो मै लिखने को कहता रहा हूं.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-11973291422139513662008-06-10T19:49:00.000+05:302008-06-10T19:49:00.000+05:30कविता वही है जो सबको लगे कि उसके दिल कि बात है..ओर...कविता वही है जो सबको लगे कि उसके दिल कि बात है..ओर ये बात अतुल जी मे है......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-41375013997217276782008-06-10T19:45:00.000+05:302008-06-10T19:45:00.000+05:30वाह अशोक जीनदी बोली समन्दर से कई साल पहले सुना था....वाह अशोक जी<BR/>नदी बोली समन्दर से कई साल पहले सुना था.<BR/>ख्वाहिश है कि आप इसकी संगीतमय प्रस्तुति सुनवायेंमैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-33670543920506698642008-06-10T19:33:00.001+05:302008-06-10T19:33:00.001+05:30bahut hi sundar..bahut hi sundar..PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1273951886615878038.post-41571945371871643242008-06-10T19:33:00.000+05:302008-06-10T19:33:00.000+05:30अशोक जीअपने मित्र अतुल जी और उनकी विलक्षण प्रतिभा ...अशोक जी<BR/>अपने मित्र अतुल जी और उनकी विलक्षण प्रतिभा से परिचय करवाने का तहे दिल से शुक्रिया. उनको पढ़ कर संदेह की कोई गुंजाईश नहीं रहती की वे कमाल के गीतकार हैं. कुर्सियाँ वाली रचना में "यह कुर्सी सबसे ठीक है<BR/>-इसकी जड़ें हैं." लिख कर उन्होंने अपनी कलम का लोहा मनवा लिया है. मेरी तरफ़ से उन्हें और आप को बहुत बहुत बधाई. उनका लिखा कुछ और पढने को मिल जाए तो आनंद आ जाए.<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com