Saturday, December 1, 2007

आजा नचले पर क्यों मचले यार लोग


आजा नचले...नचले-नचले मेरे यार तू नचले
अब तो लुटा है बाज़ार नचले...

पीयूष भाई के लिखे इस गीत में लाइन आती है

हो मोहल्ले में कैसी मारा मार है
बोले मोची भी कि वो सुनार है

नोट: गीत में मोहल्ले से मोहल्ला न समझें.

3 comments:

  1. 'यारों' को बस मचलने का बहाना चाहिए।

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  2. यह लाइन साबित करती है कि जातिवाद हमारे अवचेतन में अब भी जिंदा है.

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