
कबाड़ की दुछत्ती से सुनिये इन्द्र चन्द्र का लिखा नौशाद के संगीत निर्देशन में गाया गया गीत : 'बाबा चाकलेट लाए, अकेली कौन खाये, बलम नाहिं' । यह गीत १९४२ में बनी फिल्म 'स्टेशन मास्टर' का है। चिमनलाल लुहार इस के निर्देशक थे। गायिका हैं कौशल्या। कौशल्या अभिनेत्री भी थीं और इस फ़िल्म में उन्होंने काम किया था।
ऊषा अपने विधुर पिता परमानन्द के साथ रहती है। परमानन्द जी रंगपुर के रेलवे स्टेशन मास्टर हैं। ऊषा पढ़ी लिखी और समझदार है। उम्मीद की जाती है कि वह अपने स्तर के पुरुष से विवाह करेगी। कालीचरण नाम का एक छोटा रेलवेकर्मी चाहता है कि ऊषा का विवाह रेलवे के बड़े अफ़सर निरंजन से हो जाए ताकि खुद कालीचरण के बेटे को रेलवे में नौकरी मिल सके। इस उद्देश्य से कालीचरण और परमानन्द एक और रेलवेकर्मी मानिकबाबू के पास जाते हैं। मानिक बाबू के मन में कुछ और ही है - वे अपनी मनोरोगी बेटी श्यामा की शादी रेलवे गार्ड अरुण से कराने की फ़िराक़ में मुब्तिला हैं। निरंजन की बहन जल्द ही रंगपुर आती है और विवाह पर सहमत हो कर तैयारी के लिए वापस चली जाती है। लेकिन इस दौरान ऊषा को अरुण से प्रेम हो जाता है और वह निरंजन से शादी नहीं करना चाहती क्योंकि वह उस से दूनी उम्र का होने के साथ साथ विधुर भी है। ऊषा के फ़ैसले से तमाम रेलवे कर्मचारियों का जीवन उथल पुथल हो जाता है। नतीजतन एक मालगाड़ी और एक्स्प्रेस गाड़ी आपस में टकरा जाते हैं। फिर मामले की सरकारी जांच होती है जिस की ज़द में तमाम रेलवे के लोग भी आते हैं। ... ( कहानी का सार http://www.imdb.com/से साभार)
आवाज़ की गुणवत्ता थोड़ी ठीक नहीं है, उस के लिये माफ़ी।
ऊषा अपने विधुर पिता परमानन्द के साथ रहती है। परमानन्द जी रंगपुर के रेलवे स्टेशन मास्टर हैं। ऊषा पढ़ी लिखी और समझदार है। उम्मीद की जाती है कि वह अपने स्तर के पुरुष से विवाह करेगी। कालीचरण नाम का एक छोटा रेलवेकर्मी चाहता है कि ऊषा का विवाह रेलवे के बड़े अफ़सर निरंजन से हो जाए ताकि खुद कालीचरण के बेटे को रेलवे में नौकरी मिल सके। इस उद्देश्य से कालीचरण और परमानन्द एक और रेलवेकर्मी मानिकबाबू के पास जाते हैं। मानिक बाबू के मन में कुछ और ही है - वे अपनी मनोरोगी बेटी श्यामा की शादी रेलवे गार्ड अरुण से कराने की फ़िराक़ में मुब्तिला हैं। निरंजन की बहन जल्द ही रंगपुर आती है और विवाह पर सहमत हो कर तैयारी के लिए वापस चली जाती है। लेकिन इस दौरान ऊषा को अरुण से प्रेम हो जाता है और वह निरंजन से शादी नहीं करना चाहती क्योंकि वह उस से दूनी उम्र का होने के साथ साथ विधुर भी है। ऊषा के फ़ैसले से तमाम रेलवे कर्मचारियों का जीवन उथल पुथल हो जाता है। नतीजतन एक मालगाड़ी और एक्स्प्रेस गाड़ी आपस में टकरा जाते हैं। फिर मामले की सरकारी जांच होती है जिस की ज़द में तमाम रेलवे के लोग भी आते हैं। ... ( कहानी का सार http://www.imdb.com/से साभार)
आवाज़ की गुणवत्ता थोड़ी ठीक नहीं है, उस के लिये माफ़ी।
jo bhi hai kehani bari majedar lag rahi hai..
ReplyDeleteaur saan?
ReplyDeleteमस्त-मस्त.... आपके बहाने कैसे-कैसे गीत सुनने को मिल रहे हैं, जो सुने बगैर ही मैं इस दुनिया से कूच कर जाती, अगर कबाड़खाना न होता.. कबाड़खाना ऐसा हो तो मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने की तुलना में कबाड़ी बनना ज्यादा पसंद करूंगी...
ReplyDeleteintrested.....maza aya apki rachna padh kar
ReplyDeletebhai gazab hai
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