Saturday, February 23, 2008

अवधूत, गगन घटा गहरानी


मोहल्ले में मैंने आज सुबह कुमार गंधर्व जी की आवाज़ में 'हिरना समझ बूझ बन चरना' लगाया था। उसी के सिलसिले में प्रस्तुत कर रहा हूं इसी दिव्य स्वर में 'अवधूत, गगन घटा गहरानी'।



2 comments:

  1. वाह - क्या बात है - sound quality बहुत ही ज़ोर रही - manish

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  2. शुक्रिया अदृश्य सांताक्लाज आज कितनी इच्छाएं पूरी हुई तुमने मेरी। शुक्रिया।

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