नोबेल पुरुस्कार से सम्मनित पोलिश कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का मेरी प्रियतम रचनाकारों में हैं. उनकी कई कविताएं कबाड़ख़ाने के पाठक पहले भी पढ़ चुके हैं. आज पढ़िये उनकी एक और कविता जिसमें हमारे पुरखों के जीवन के बहाने वे बड़ी जटिल गुत्थियों से दो दो हाथ कर रही हैं.
हमारे पूर्वजों का संक्षिप्त जीवन
उनमें से बहुत थोड़े जी सके तीस की उम्र तक
वृद्धावस्था तब चट्टानों और पेड़ों का विशेषाधिकार थी
बचपन उतना ही होता था जितनी देर में भेड़िये के बच्चे बड़े हो जाते थे
जीवन के साथ चलने के लिये, आपको जल्दी करनी होती थी
-सूरज डूब जाने से पहले
-पहली बर्फ़ के आने से पहले
तेरह साल की लड़कियां बच्चे जनती थीं
चार साल के बच्चे जंगलों में चिड़ियों के घोंसले तलाशते थे
और बीस की उम्र में शिकारियों की टोली का नेतृत्व करते
-अब वे नहीं हैं, वे जा चुके हैं
अनन्तता के सिरों को जल्दी-जल्दी तोड़ दिया गया.
अपनी युवावस्था के सुरक्षित दांतों से
जादूगरनियां चबाया करती थीं टोने-टोटके.
अपने पिता की आंखों के सामने पुरुष बना एक बेटा
दादा की आंखों के खाली कोटरों के साये में जन्मा एक पोता.
जो भी हो, वे लोग वर्षों की गिनती नहीं करते थे.
वे जाले, बीज, बाड़े और कुल्हाड़े गिना करते थे.
समय जो इतनी उदारता से देखता है आसमान में किसी सुन्दर सितारे को
उसने उनकी तरफ़ एक तकरीबन ख़ाली हाथ बढ़ाया
और उसे वापस खींच लिया, मानो यह सब बहुत श्रमसाध्य रहा हो
एक कदम और, दो कदम और,
उस चमकीली नदी के साथ-साथ
जो अन्धकार से निकलकर अन्धकार में विलीन हो जाती थी.
खोने के लिये एक भी पल नहीं था,
न कोई स्थगित प्रश्न, न देर से होने वाले रहस्योद्घाटन
बस वही हा जिसे समय के भीतर भोगा गया.
सफ़ेद बालों की प्रतीक्षा नहीं करे सकती थी बुद्धिमत्ता
उसने रोशनी देखने से पहले सब कुछ देख लेना था
और सुनाई देने से पहले सुन लेना था हर आवाज़ को.
अच्छाई और बुराई-
इनके बारे में बहुत कम जानते थे वे, लेकिन जानते सब कुछ थे,
जब बुराई जीत रही हो, अच्छाई को छिपना होता है
और जब अच्छाई सामने हो, तो बुराई को,
दोनों में से किसी को बःई जीता नहीं जा सकता
न ही ऐसी किसी जगह फेंका जा सकता है, जहां से वे वापस न लौटें
इसलिए अगर आनन्द होता, तो थोड़े भ्रम के साथ
और उदासी होती, तो ऐसे नहीं कि मद्धिम सी भी उम्मीद न हो.
जीवन चाहे कितना भी लम्बा हो, रहेगा सदैव संक्षिप्त ही.
कुछ भी और जोड़े जाने के वास्ते बहुत छोटा.
जीवन चाहे कितना भी लम्बा हो, रहेगा सदैव संक्षिप्त ही...simborska apni bhi pasand hain...aabhar...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है। वाह
ReplyDeleteइसलिए अगर आनन्द होता, तो थोड़े भ्रम के साथ
ReplyDeleteऔर उदासी होती, तो ऐसे नहीं कि मद्धिम सी भी उम्मीद न हो.
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निर्भ्रम आनंद और
पूरी उम्मीद जगती है ये कविता !
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डा.चन्द्रकुमार जैन
जीवन चाहे कितना भी लम्बा हो, रहेगा सदैव संक्षिप्त ही.
ReplyDeleteकुछ भी और जोड़े जाने के वास्ते बहुत छोटा.
वाह!
ReplyDeleteप्रियतम कवयित्री की एक और महान रचना से आपने साक्षात्कार कराया. बहुत धन्यवाद. अद्भुत है हमारा कबाड़ख़ाना!
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