
जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा
पानी के पेड़ पर जब
बसेरा करेंगे आग के परिंदे
उनकी चहचहाहट के अनंत में
थोड़ी-सी जगह होगी जहां मैं मरूंगा
मैं मरूंगा जहां वहां उगेगा पेड़ आग का
उस पर बसेरा करेंगे पानी के परिंदे
परिंदों की प्यास के आसमान में
जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा
वहां छायाविहीन एक सफेद काया
मेरा पता पूछते मिलेगी
(*पेन्टिंग को बड़ा देखने के लिए इमेज पर क्लिक करें)
कविता और उस पर पेंटिंग बहुत सुंदर अदभुत हैं दोनों ..
ReplyDeleteपानी के परिंदे, काया की सफ़ेदी.
ReplyDeleteआग के रंग को मद्धम रहने दिया.
एक और अच्छी पेंटिंग.
देवताले जी हमारे समय के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में हैं। इनकी कविताओं का आस्वाद जीवन का खरा आस्वाद है। उपर से रविन्द्र की पेंटिंग मजा आ गया। आभारी इस प्रस्तुति के लिए।
ReplyDeleteपरिंदों की प्यास का आसमान औ इतनी गाढ़ी हरियाली...बहुत कुछ कहा इन्होंने।
ReplyDeleteये कविता जीवन और मृत्यु के अन्त और अनन्त से बखूबी जूझती है। पेंटिंग भी बहुत अच्छी। आपको बधाई !
ReplyDeleteपेंटिग के हरियालेपन को समृध्द करती पूज्य देवताले जी कविता...वाह! क्या बात है. काश ...हमारी कलाओं का भावुक अंर्तसंबध मनुष्य में मुखरित होने लगे ?
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति के लिए.
ReplyDeleteसशक्त कविता और उस पर सुंदर चित्र।
ReplyDeletekavita baar baar padhi...chitr me hirno ke honey sa aabhaas...sundar dono
ReplyDeleteग़ज़ब की पेन्टिंग और देवताले जी की क्या शानदार कविता. धन्यवाद.
ReplyDeleteरचना एवं पेंटिग दोनों में तारतम्य प्रदर्शित हो रहा है।
ReplyDeleteगजब की पेंटिग। सजीव एवं चित्ताकर्षक। बधाई।
सोने में सोहागा है यह प्रस्तुति.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
दंवतालेजी मेरे परमादरणीय हैं लेकिन मुझे तो कविता के मुकाबले पेण्टिंग ज्यादा प्रभावी और मन की आग को ठण्डा करने वाली लगी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर!
ReplyDeleteआप सबका प्यार और स्नेह पाकर और हरा-भरा हो गया हूं। सचमुच, सबके प्रति गहरा आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी ये पेंटिंग
ReplyDeleteएकदम से तो ध्यान खींचती है लेकिन...
मुझे लगता है इस श्रृंख्ला की आपकी दूसरी पेंटिंग अधिक प्रभावी हैं...
हो सकता है कंप्यूटर स्क्रीन पर देखने से मुझे ऐसा लग रहा हो...
खैर प्रयोग सुंदर है रविन्द्र भाई,
बधाई बधाई!!
बीच में एक सप्ताह शहर से बाहर रहा आज ही लौटा हूँ!
मित्रवत आपका
अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर ९८२७४ ३३५७५
कुश के प्रति भी आभार। अवधेश भाई, शुक्रिया। नई सिरीज पर काम शुरू कर चुका हूं।
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