तकनीकी रूप से देखा जाय तो इस कूड़मण्डल को बनाए एक साल जुलाई की चौदह तारीख़ को हो चुका था. पर उस रोज़ यानी १४ जुलाई को मैंने तनिक हिचक के साथ अपने परम मित्र आशुतोष उपाध्याय के कहने पर कबाड़ख़ाने का निर्माण किया और एक लाइन भर लिखी: "कबाड़खाने में सभी का स्वागत है."
क़रीब दो माह तक कोई नहीं आया, भाईसाब! मैं अपने अनुवादों की व्यस्तता में इस कदर मसरूफ़ रहा कि उसे भूल ही गया. उस के बाद आशुतोष द्वारा लगातार लतियाये जाने पर २९ सितम्बर २००७ को अल्मोड़ा के बद्री काका का एक विख्यात किन्तु लोकल क़िस्म का क़िस्सा लगाया. इस वजह से मैं आज ही के दिन कबाड़ख़ाने का जनमदिन मानता हूं. ख़ैर, सात या आठ किस्तों में उसे मौज मज़े में लिखने के बाद समझ में ही नहीं आया कि यह क्या कर रहा हूं. अपने जानने वाले दस पन्द्रह कुमाऊंनी मित्रों को उसके बाबत मेल इत्यादि करने का उद्यम किया. सच तो यह है कि मैं तब तक इसे लेकर ज़रा भी संजीदा नहीं था. केवल गपाष्टक-स्टोर बनाने की नीयत थी. साहित्य-अनुवाद इत्यादि के लिए काग़ज़-क़लम की एक अलग दुनिया सालों से बनी हुई थी.
इधर दिमाग का पुनर्भूसीकरण हो चुका था. लतियाये जाने के भाग दो के उपरान्त सवाल पैदा हुआ कि अब क्या करूं इस कबाड़ख़ाने का. ईराक के महाकवि सादी यूसुफ़ के अनुवाद बस ख़त्म ही किये थे. माल रेडी था सो लग पड़ा उसी को चिपकाने. शायद दिल्ली वगैरह के एकाध मित्रों ने फ़ोनफ़ान किये. तब तक मुझे यह नहीं मालूम था कि एग्रीगेटर क्या होता है और यह भी कि कौन-कौन इस वर्चुअल संसार में क्या-क्या कर रहा है.
ठीकठीक याद नहीं पड़ता कब इसे कम्यूनिटी ब्लॉग बनाने का विचार आया. आशुतोष उपाध्याय, शिरीष मौर्य और सिद्धेश्वर सिंह की इसमें बड़ी भूमिका रही. मेरा खोया हुआ अज़ीज़ इरफ़ान पता नहीं कितने सालों बाद जीवन में दुबारा घुस आया. उसके बाद राजेश जोशी, दीपा, भूपेन ... अविनाश, दिलीप मंडल ... पता नहीं क्या-क्या किस क्रम में हुआ. लेकिन अक्टूबर के महीने में इस ब्लॉग पर कुल जमा अट्ठानवे पोस्टें चढ़ीं और कुछेक कमेन्ट भी आये. नए-नए नाम थे कमेन्ट करने वालों के. यानी ब्लॉग एग्रीगेटरों ने कहीं से सुराग लगा कर इसे बाक़ायदा ट्रेस कर लिया था.
इधर आशुतोष ने कबाड़वाद का मैनिफ़ेस्टो यूं लिख मारा:
"दुनिया के सबसे खादू और बरबादू देश अमेरिका की कोख से जन्मा है कबाड़वाद (फ्रीगानिज्म) और बनाना चाहता है इस दुनिया को सबके जीने लायक और लंबा टिकने लायक। कबाड़वादी मौजूदा वैश्विक अर्थव्यवस्था में उत्पादित चीजों को कम से कम इस्तेमाल करना चाहते हैं। फर्स्ट हैण्ड तो बिल्कुल नहीं। ये लोग प्राकृतिक संसाधनों से उतना भर लेना चाहते हैं, जितना कुदरत ने उनके लिए तय किया है। कबाड़वाद के अनुयायी वर्तमान व्यवस्था की उपभोक्तावाद, व्यक्तिवाद, प्रतिद्वंद्विता और लालच जैसी वृत्तियों के बरक्स समुदाय, भलाई, सामाजिक सरोकार, स्वतंत्रता, साझेदारी और मिल बांटकर रहने जैसी बातों में विश्वास करते हैं। दरअसल कबाड़वाद मुनाफे की अर्थव्यवस्था का निषेध करता है और कहता है इस धरती में हर जीव को अपने हिस्से का भोजन पाने का हक है। इसलिए कबाड़वादी खाने-पीने, ओढ़ने बिछाने, पढ़ने-लिखने सहित अपनी सारी जरूरतें कबाड़ से निकाल कर पूरी करते हैं।
मैं समझता हूं हम कबाड़खाने के कबाडियों में भी ऐसा कोई नहीं, जो कबाड़वाद की भावना की इज्जत न करता हो। कबाड़वादी बनना आसान नहीं लेकिन हम सब उसकी इसपिरिट के मुताबिक `बड़ा´ बनने की लंगड़ीमार दौड़ से बाहर रहने के हिमायती रहे हैं।
तो हे कबाडियो! आज कसम खाएं, कबाड़खाने में सहृदयता के बिरवे को हरा-भरा रखने के लिए अपनी आंखों की नमी को सूखने नहीं देंगे। आमीन!"
यह "कारवां बनता गया" टाइप का हिसाबकिताब चल निकला. दिसम्बर में मोहम्मद रफ़ी साहब के बर्थ डे के दिन किन्हीं साहब ने मेरी इस कदर ऐसी-तैसी फेरी कि कबाड़ख़ाने को बन्द कर देने का पूरा फ़ैसला कर लिया. अपने संवेदनशील (मूर्ख?) मन के आगे इस कदर ख़ुद को बेबस पाया कि उन्हीं दिनों शुरू किये गए 'सुख़नसाज़' को एक झटके में मेट दिया. और 'लपूझन्ना' को भी.
अंग्रेज़ी में कहते हैं ना कि "गुड सेन्स फ़ाइनली प्रीवेल्ड" सो आप के सामने है एक साल का हो गया आपका पाला-पोसा आपका ही का यह साझा प्लेटफ़ॉर्म.
कहना न होगा इस दौरान कई-कई शानदार मित्र बने - आधी रातों को टेलीफ़ोन पर बातों का सिलसिला जो चला वो अब तक जारी है. ... नामों की लिस्ट बनाने लगूंगा तो डर है कोई नाम छूट न जाए. सब से बेपनाह मोहब्बत मिली है और इस ने जीवन को नई ऊर्जा से भरा है. पहले साल में छः किताबों का अनुवाद करता था, इस साल बारह निबटाईं. पहले बारह घन्टे काम करता था अब चौदह से सोलह. कई बरसों से स्थगित पड़ा 'लपूझन्ना' आज आप के सामने कबाड़ख़ाने की वजह से है. 'सुख़नसाज़' भी.
बहुत क्या कहूं. लपूझन्ना के लफ़त्तू का डायलॉग चुरा कर कहूं तो कन्फ़ेस करने में मुझे ज़रा भी हिचक नहीं कि कबाड़ख़ाना हम सब के लिए "तत्तान के पीते तुपे धलमेन्दल" का काम करता रहा है और हमारे समय के "अदीतों" की शिनाख़्त करने में मदद भी. यह उम्मीद करनी ही चाहिये कि ऐसा होता रहेगा.
आप सब के स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आत्मा तक कृतज्ञता महसूस करता मैं साथी कबाड़ियों की तरफ़ से शुक्रिया कहता हूं.
जै हिन्द! जै हिन्दी भाषा!
apna kabadkhana ek sal ka ho gaya. Happy Happy birthday of Kabadkhana.
ReplyDeleteAshok bhai ko iske liye badhai.
मेरी ओर से ढेरों बधाइयाँ... आप सभी कबाड़ी-श्रेष्ठ जौहरियों को जिनकी पारखी नजर के हम कायल हैं; और बिना नागा यहाँ से उम्दा माल ले जाया करते हैं। आगे भी सप्लाई बनाए रखें।
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। पुनः बधाई और शुभकामनाएं।
ब्लागस्पाट की अपनी कुछ सीमितताएं हैं - जिनके चलते कबाडखाना वर्डप्रेस या टाईप-पैड आधारित ब्लाग्स जितना ‘स्ट्रक्चर्ड’ नहीं हो पाता वर्ना यह सामूहिक ब्लाग अन्य हर मानक पर हिंदी में सर्वश्रेष्ठ है!
ReplyDeleteसेन्टी कायकू होता भाई. मस्ती का दिन है. हैपी बड्डे. बाटली निकाल.
ReplyDeleteअशोक सर,बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteकबाड़खाना का जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक..सर,
कुछ झम्मा हो जाये...भूक्कन लाला के यहां की जलेबी हो जाये..सच कह रहा हूं..सर,आपके कबाड़खाने में ज्ञान की जो दौलत हैं..ना..अगर उसमें से थोड़ा सा भी माल मुझे मिल जाये..तो मेरे जैसा मूर्ख तर जाये..सर मुझे भी आप लोगों की तरह बड़ा कबाड़ी बनना है...
फिलहाल
एक बार आपको..और कबाड़े खाने के सभी वरिष्ठ
कबाड़ियों को ढेरों बधाई...
प्रणाम
आपका
विपिन
एक रोज फ़ोन पर हुई बातचीत को भी एक साल होने जा रहा है अशोक भाई जब कबाडखाने के बारे में आपसे जाना था। उस वक्त ब्लाग के बारे में कोई खास जानकारी थी नहीं। इंटरने से भी अपरिचित ही था, सुना सुना था। मौहल्ले पर ग्यानोदय विवाद छ्प चुका था, साहित्यिक मित्रों से जाना था। उसे ढूंढकर पढने के वास्ते ही किसी मित्र के सहयोग से इंटरनेट की दुनिया से परिचित हुआ। बस उसी दिन कबाडखाने तक पहुंचा था। ग्यान जी पुस्तक का शीर्षक याद था। सोचा उनकी ही पुस्तक के बारे में किसी ने कुछ लिखा है शायद। पर पाया तो उसमें कविताऎं थी प्रिय कवियों की। यह जिक्र जब भाई राजेश सकलानी से किया तो उन्होंने बताया कि अशोक पाण्डे का ब्लाग है वह तो बस फ़िर तो इंटरनेट के करीब होने का जब भी मौका मिला गूगल पर कबाडखाना ढूंढने लगा। सच अच्छा लगने लगा। इस एक साल में तो अच्छे से कबाडखाने में कबाड ढूंढता रहा हूं। कबाड का ढेर भी इतना बेहतरीन हो सकता है, कभी सोच भी न सकता था। मेरी शुभकामना।
ReplyDeleteबाबूजी,
ReplyDeleteनमस्ते.
इस समय सुबह के आठ बजने वाले है हैं और आप हमेशा की तरह लंबी तान कर सोए पड़े होगे. क्यों न हो आधी-पूरी रात जागने की आदत तो ना जाने की. आज अभी जब नेट खोला तो पता चला कि अपना'कबाड़खाना' एक बरस का हो गया.सचमुच ! बधाई तो सैप. आज तो कुछ 'जसन' होना चैये.हुकुम देवो,का कन्नो है. इस कुनबे के मुखिया आप ही हो.
दोस्त,मैं औरों की तो नहीं जानता लेकिन मेरे बंद हो चले लेखन को 'कबाड़खाना' के जरिए दोबारा चालू करवाने का श्रेय आप ही को है सिरीमान.मेरे लिए यह बड़ी बात है-एक उपलब्धि.आज तो ले ही लो मेरी नराई, प्यार और पुच्च!
आज इस मुबारक मौके पै इस नाचीज की ओर से सारे कबाड़ी भाई-भैनों को बधाई और इस ठिए पर आने वाले तमाम खवातीनो-हजरात को तहे दिल से शुक्रिया! आभार!!
-सिद्धेश्वर सिंह
शुभकामनाएं---
ReplyDelete1. इसी तरह कबाड़खाना बढ़ता जाये
2. और बढ़ते जायें श्रेष्ठ कबाड़ी
3. होते जायें कबाड़खाने का हिस्सा ।
4. कबाड़खाने से हम सबको सीखने को मिला है ।
जय हो ।
उत्तरोत्तर प्रगति की कामना के साथ कबाड्खाने के जन्मदिन की बधाई
ReplyDeleteसाल पूरा करने की बधाई।
ReplyDelete"congratulations for completion of one year, wish u good luck"
ReplyDeleteRegards
Congratulations. And all the best for future.
ReplyDeleteआप सबको शुभकामनायें !
ReplyDeletesabhi kabaadiyo ko shubhkamnaye. yuhi kabad ikaththa karate rahiyega :)
ReplyDeleteबधाई हो जी बधाई. मौज-मज़ा. रौनक़-मेला.
ReplyDeleteऐसा लगता ही नहीं कि कभी यह कबाड़खाना था ही नहीं !
ReplyDeleteलगता है यह हमेशा से था और अब तो खैर हमेशा रहेगा भी।
कबाड़खाने को प्यार और अशोक दा को भी !
दादा,
ReplyDeleteजगमगाते रहें कबाड़ख़ाना के सफ़े
और आपका-हमारा यह शब्द-कारवाँ चलता रहे
....निर्बाध.
senti ho gaye lagte ho...achha blog hai aur hai.......aur achha rahe, iske liye thoda sakht rahna padega. badhai
ReplyDeleteअशोकजी, आपको अनेक बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteऔर साथी कबाड़ियों को भी।
लख लख बधाई होवे अतोक जी, उम्मीद करता हूँ यह कारवां इसी तरह बढ़ता रहेगा।
ReplyDeleteसादर
मनीष त्रिपाठी
सब्पिरभुओं के महापिरभू
ReplyDeleteकबाड़श्री पांडेमहाराज को बधइय्यां...
और बाकी कबाड़-संगत को भी शुब्कामनाएं
खूब माहौल बनाया
एक्साल में...
अब जे तो चल्तेई रैना हे...
जन्मदिन मुबारक हो ।
ReplyDeleteहम तो वैसे भी कवाड़ के पुराने आशिक हैं। ढेरों शुभकामनाएं। कुंटलों बधाईयां। कबाड़ बढ़ता रहे। कबाड़ी बढ़ते रहें।
ReplyDeletebadhaiyan...
ReplyDeleteUR ZYada ummeeden badh gayeen aap se
ReplyDeletebarhiya.badhai.vakai bahut barhiya.mujhe to isi se pata chala pyaro ki blog bhi kya chiz hai(batarz asikee kya chiz hai adi adi)
ReplyDeleteबहुत बहुत मुबारकबाद। आप ऐसे ही अच्छी अच्छी पोस्ट करते जाए।
ReplyDeleteफ़स्ट बड्डे, भैरी हैप्पी बड्डे! कबाड़खाना अब बेहतरीन संग्रहालय में तब्दील हो गया है।
ReplyDeleteअशोक भाई, ज़रा हाथ देना हिक्क.. अपुन को मालूम था, आज कबाड़खाना का हप्पी बर्थडे है हिक्क.. पूछो न कैसे हमने रैन बिताई.. हिक्क..
ReplyDeleteबहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteबधाई और आभार
ReplyDeletemany happy returns of the day dear friends. it has been a very enriching experience. may the march continue.
ReplyDeleteपहले जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeletedear pande jee, hamari taraf se bhe bhadai le lo, hamari bole too .....? atthani jee bhi hai sath main...
ReplyDeletehamari taraf se bhi le loo bhadhi, hamari taref se bole to.... attahani jee bhi saat hai...
ReplyDelete