Monday, November 17, 2008

गुलज़ार की नज़्म लैण्डस्केप और मेरी पेंटिंग



लैण्डस्केप


गुलज़ार
दूर सुनसान से साहिल के क़रीब
इक जवां पेड़ के पास
उम्र के दर्द लिए, वक़्त का मटियाला दुशाला अोढ़े
बूढ़ा - सा पॉम का इक पेड़ खड़ा है कब से
सैकड़ों सालों की तन्हाई के बाद
झुकके कहता है जवां पेड़ से ः 'यार
सर्द सन्नाटा है तन्हाई है,
कुछ बात करो'

6 comments:

  1. यह नज्म मुझे बहुत अच्छी लगती है ..आपका बनाया चित्र इस के साथ पूरा न्याय कर रहा है ..बढ़िया है

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  2. लाजवाब पेंटिंग और गुलज़ार जी के नज्म को पेश करने का लाजवाब अंदाज.. बहुत खूब.. आपकी पेंटिंग ही नहीं, आपको पढना भी मुझे खूब बता है.. :)

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  3. बहुत शानदार जा रही है यह वाली सीरीज़ रवीन्द्र भाई. बने रहें!

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  4. नज़्म से तो वाकिफ थे आज आपकी पेंटिंग से भी रुबरु हो गये .शानदार

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  5. इनकी त्रिवेणीया अत्यंत आनंददायक होती है !!

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