

१४, १५ और १६ नवम्बर २००८ को सुमित्रानन्दन पन्त की जन्मस्थली कौसानी (बागेश्वर, उत्तराखण्ड) में पन्त जी और महान उपन्यासकार-कहानीकार-विचारक शैलेश मटियानी जी की स्मॄति में एक बड़ा आयोजन किया जा रहा है. महादेवी वर्मा सृजन पीठ, कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड के सहयोग से आयोजित किये जा रहे इस कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर दूधनाथ सिंह का बीज व्याख्यान होना है. इसके उपरान्त 'हिन्दीतर प्रान्तों में हिन्दी साहित्य और उत्तराखण्ड' विषय पर चर्चा में प्रो. ए. अरविन्दाक्षन (मलयालम), प्रो. एम. शेषन (तमिल), प्रो. मणिक्वंबा तथा प्रो. एस. लीलावती (तेलुगू), प्रो. रंजना अरगड़े तथा डॉ. नयना डेलीवाला(मराठी, गुजराती), प्रो. सुमंगला मुम्मिगट्टी (कन्नड़). डॉ. शशिबाला महापात्र व डॉ. दासरथी भुइयां (उड़िया) और प्रो.प्रणव बन्दोपाध्याय (बांग्ला) हिस्सा लेंगे.
लीलाधर जगूड़ी, मंगलेश डबराल, नीलाभ, वीरेन डंगवाल, सुन्दर चन्द ठाकुर, हेमन्त कुकरेती, हरिश्चन्द्र पांडे, सिद्धेश्वर सिंह और शिरीष मौर्य का काव्यपाठ है.
पंकज बिष्ट, देवेन्द्र मेवाड़ी, प्रदीप पन्त और तमाम अन्य कवि-लेखक साहित्यकार शिरकत कर रहे हैं, स्थानीय विद्वानों की भी बड़ई संख्या में उपस्थिति रहेगी. ... दर असल इतने सारे नाम हैं कि यहां लिखना संभव तो है, पर जायदे हो जाएगा.
कार्यक्रम का एक अनूठा भाग गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी और शौका कविता के सरोकारों पर केन्द्रित रहेगा.
इस पूरे आयोजन के मुखिया हैं प्रसिद्ध कहानीकार और हमारे गुरुजी श्री बटरोही जी.
न्यौते का काग़ज़ देख कर तो लग रहा है कि १६ नवम्बर २००८ की शाम तक हमारी हिन्दी भतेरी आगे तक पहुंच जाएगी.
कौसानी से रिपोर्टिंग जारी रहे, ऐसा प्रयास करता हूं.
मटियानी जी को नमन!
'न्यौते का काग़ज़ देख कर तो लग रहा है कि १६ नवम्बर २००८ की शाम तक हमारी हिन्दी भतेरी आगे तक पहुंच जाएगी'
ReplyDeleteधत्त... ई न्यौते का कागज चेप देते तो चार छे ब्लॉगर वहॉं पहुँचे तब्बी तो हिंन्दी आगे पहुँचती। वैसे हम भी खाली दु-तीन दिन पर चलो आपही के जिम्मे सही।
सुमित्रानन्दन पन्त और शैलेश मटियानी जी को नमन। आयोजन तो सफल होगा ही। सीधे बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteदद्दा पँतजी को व शैलेश मटियानी जी को सादर नमन --
ReplyDelete- लावण्या
रिपोर्टिंग जरूर जारी रखियेगा
ReplyDeleteयशस्वी कलमकारों को नमस्कार । आयोजन की सफलता के लिए हार्दिक शुभ-कामनाएं ।
ReplyDeleteपीने-खाने के लिए मजेदार होते हैं ऐसे साहित्यिक आयोजन। लगे रहो हमारे हिंदी क्षेत्र के महान साहित्यकारों।
ReplyDeletereporting mein gadbad hai, rachnakaro ki list mein ashok pandey ka naam nahi diya
ReplyDeleteश्रद्धेय बटरोही जी को प्रणाम - वे बहुत लगन से इस काम को अंजाम दे रहे हैं!
ReplyDeleteधीरेश सही कह रहा है। आदमी ज़िद्दी है पर बहुत सही बात कहता है हमेशा - सही होने की एक ज़िद होती है यार !
मैं तो लपूझन्ने के शहर में एक बूढ़ी आमा के आपरेशन का प्रबन्ध इत्यादि करने में व्यस्त हूं !
वहां मेरे सब संगी-साथी-खूब घने वाले हैं, पर क्या करूं, मजबूरी का नाम आमा !
मेरा सलाम सभी को !
हिंदी 16 नहीं...14 की शाम ही आगे चली जाएगी !
पूछो क्यों ??
पूछो ?
पूछो ?
पूछो ?
आयोजन की सफलता के लिए शुभ-कामनाएं
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