अभी ५ और ६ दिसंबर को 'पहा़ड़' के रजत जयंती कार्यक्रमों की एक कड़ी में शामिल होने के सिलसिले में पिथौरागढ़ जाना हुआ। पहाड़ी रास्ते का कठिन सफर थका देने वाला रहा। अभी तक वहाँ की थकान से उबर नहीं पाया हूँ। पिथौरागढ़ के पास में एक बड़ी प्यारी जगह है चंडाक -छोटी , शांत , सुरम्य जगह।यहाँ लोग ( आशुतोष उपाध्याय , विपिन बिहारी शुक्ला , वाई०डी० भट्ट और मैं ) लारी बेकर साहब का घर तलाशने की जुगत में जम कर भटके। एक ऊँची पहाड़ी दिखी तो उस पर भी गिरते - पड़ते चढ़ लिए। ऊपर पहुँच कर सारी थकावट दूर - हिमालय की विराटता के आगे कोई नही ,कुछ भी बड़ा नहीं।प्रस्तुत हैं इसी यात्रा की कुछ तस्वीरें -
बादल , बर्फ , पहाड़ और ( टावर भी )



प्रकृति के बढिया चित्र - धन्यवाद।
ReplyDeleteयह चन्दाक क्या वही जगह है जहा से देवदार का नयनाभिराम सिलसिला जारी रहता है. सन्गमन के दौरान पिथौरागर जाना हुआ था. यादे ताजा हुई. फ़ोतो और हो तो दर्श्न करा दीजिये.
ReplyDeletethanx for a post oozing positive energy in this time of sheer negativity.only posts like these compel me to return to blogosphere.
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