दादा, लोग कहते हैं नई पीढ़ी क्लासिकल चीज़ों से नहीं जुड़ पाती.मेरा कहना है कि सुनाने वाले भी तो हुनर वाली चाहिए.मेरा बेटा जो इस बरस सी.बी.एस.ई.बारहवीं के इम्तेहान में बैठेगा देर रात तक पढ़ाई करने का आदी है. क्या आप यक़ीन करेंगे कि बंदा पूरी पूरी रात यही एक रचना रिवाइंड करके सुनता रहता है. जबकि कई एफ़.एम.भी उस वक़्त उपलब्ध होते हैं...पर इसे कहते हैं उम्दा मूसीक़ी का जादू...इसी रचना को साबरी बंधुओं ने भी लाजवाब गाया है.जब इसे सुन रहा हूँ तो लग रहा है मन पतंग हो गया है और मुँह में तिल-गुड़ की मिठास घुल आई है....मकर सक्रांति की बधाई भी क़ुबूल कर लें दादा.
अशोकजी, वाह, बहुत खूब। किसी तरह ये सुनने से छूट गया था। आज युनुसजी की चिट्ठे पर आपकी टिप्पणी पढकर सुनने को मिला। संजय पटेलजी की बात सही है, हर पीढी में कला के कद्रदान हैं, बस नयी पीढी को गालियाँ कुछ ज्याद पडती हैं कि हमने सभ्यता और संस्कृति को रसातल में पंहुचा दिया :-)
नुसरत फतहअली को सुनना अपने आप में सुकूं देने वाला है। उम्दा गायकी सुनाने के लिये शुक्रिया..........
ReplyDeletebahut accha laga sunkar..
ReplyDeleteThanks
नुसरत बाबा शानदार !
ReplyDeleteअशोक दादा जानदार !
बाकी सारे खबरदार !!
यही रचना कभी पं. जसराज जी के स्वर में नीलाभ ने मुझे भेंट में दिया था। खोजता हूँ ,नुसरत बाबा शानदार
ReplyDeleteदादा,
ReplyDeleteलोग कहते हैं नई पीढ़ी क्लासिकल चीज़ों से नहीं जुड़ पाती.मेरा कहना है कि सुनाने वाले भी तो हुनर वाली चाहिए.मेरा बेटा जो इस बरस सी.बी.एस.ई.बारहवीं के इम्तेहान में बैठेगा देर रात तक पढ़ाई करने का आदी है. क्या आप यक़ीन करेंगे कि बंदा पूरी पूरी रात यही एक रचना रिवाइंड करके सुनता रहता है. जबकि कई एफ़.एम.भी उस वक़्त उपलब्ध होते हैं...पर इसे कहते हैं उम्दा मूसीक़ी का जादू...इसी रचना को साबरी बंधुओं ने भी लाजवाब गाया है.जब इसे सुन रहा हूँ तो लग रहा है मन पतंग हो गया है और मुँह में तिल-गुड़ की मिठास घुल आई है....मकर सक्रांति की बधाई भी क़ुबूल कर लें दादा.
अशोकजी,
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब। किसी तरह ये सुनने से छूट गया था। आज युनुसजी की चिट्ठे पर आपकी टिप्पणी पढकर सुनने को मिला।
संजय पटेलजी की बात सही है, हर पीढी में कला के कद्रदान हैं, बस नयी पीढी को गालियाँ कुछ ज्याद पडती हैं कि हमने सभ्यता और संस्कृति को रसातल में पंहुचा दिया :-)