Sunday, March 8, 2009

नई झुलनी की छैयाँ बलम दुपहरिया बिताय ल हो !


धीरे -धीरे गरमी की आमद अपनी हाजिरी लगाए जा रही है. वसंत जैसा भी है , उसका बस अंत ही है .होली का रंग अपने उफान पर है. ऐसे में सभी को होली की बधाई - मुबारकबाद. मस्त रहें - मौज करें. हैप्पी होली !
फगुआ पर बारहमासा ! अभी सुबह उठकर यही सुन रहा था मन हुआ कि 'कबाड़खाना' पर प्रस्तुत कर दिया जाय सो हाजिर है. उम्मीद है पसंद आएगा. एक बार फिर होली की बधाई !




बारहमासा : नई झुलनी की छैयाँ बलम दुपहरिया बिताय ल हो !
स्वर : पंडित विद्याधर मिश्र

5 comments:

  1. aapka geet to nahi chala magar hamari holi ke avsar par aapko dher sari shubh kaamnaayen

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  2. गीत चल भी रहा है, सुन भी रहा हूं । इतना धीरज भी नहीं है कि पूरा गीत सुनने के बाद कमेंट लिखूं ।
    इस बारहमासे के लिये आपका बहुत बहुत आभार ।

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  3. गीत के लिये आभार .

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  4. भारतीय शास्त्रीय संगीत की बात ही निराली है.
    दिल झूम गया

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  5. pandit ji ke kuch aur sunvayen...aanand...aanand..apna aur joshim ka no. den...mere no. par..0-9820212573

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