
इधर कई दिनों से भीषण गर्मी पड़ रही है. बारिश का नामोनिशान नहीं. तीन-चार दिनों से पहाड़ों पर आग लगने का दुर्भाग्यपूर्ण सिलसिला भी शुरू हो गया है.
गर्मी का कोई क्या करे साहब?
हां पंखा चलाकर मियां की मल्हार को तो सुना ही जा सकता है. कल्पना तो की ही जा सकती है मेघाछन्न आकाश की ... और बारिश की! यह प्रस्तुति पंडित विनायक तोरवी के स्वर में है.
१९४८ में जन्मे पंडित विनायक तोरवी को ग्वालियर घराने के गायनाचार्य गुरुराव देशपाण्डे का शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. महान गायिका गंगूबाई हंगल के अतिरिक्त पं. मल्लिकार्जुन मंसूर और पं. बासवराज राजगुरु जैसे संगीतज्ञों से भी उन्होंने गायन की बारीकियां जानीं. फ़िलहाल पं. तोरवी शास्त्रीय गायन के साथ ही कन्नड़, मराठी और हिन्दी में भक्ति संगीत और सुगम संगीत के साथ नवीन प्रयोग करने में व्यस्त हैं
कई सम्मानों से नवाज़े जा चुके पं. तोरवी वाणिज्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त हैं और कैनरा बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर हैं.
डाउनलोड यहां से करें: http://www.divshare.com/download/7224862-a98
सही कहा आपने, कम से कम मल्हार सुन कर मेघों के छाए होने का एहसास तो कर ही सकते हैं।
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TSALIIM.
-SBA-
तोरवी जी को सुनाने का आभार. ४३ डिग्री की इस गर्मी में हमने भी कल्पना के कुछ पल जीने की उम्मीद में थे. वैसे हमारे कमरे का वातावरण इसके लिए अनुकूल भी था. बड़ा सा कूलर खिड़की में लगा हुआ और पानी के टपकने की आवाज़ और कुछ बूंदे भी बाहर आती. लेकिन सब क्षण भंगुर साबित हुआ. तोरवी जी का गायन प्रारंभ हुआ और एक मिनट में ही बिजली गोल. ये लोग तो सपने भी नहीं देखने देते. एक घंटे के बाद अब दुबारा सुन रहे हैं.
ReplyDeleteI think we can conduct an experiment some day. At a given standard time specific to respective areas , we must play collectively Malhaar at louder than usual volume . Let us see what happens . Im optimistic that there will be rain. We can attempt it at least.
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