Tuesday, May 5, 2009

चप्पल पर भात

चप्पल पर भात

-वीरेन डंगवाल

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क़िस्सा यों हुआ
कि खाते समय चप्पल पर भात के कुछ कण
गिर गए थे
जो जल्दबाज़ी में दिखे नहीं.

फिर तो काफ़ी देर
तलुओं पर उस चिपचिपाहट की ही भेंट
चढ़ी रहीं
तमाम महान चिन्ताएं.

6 comments:

  1. महानताओं की ऐसी -तैसी मामूली चीजें ही करती हैं. अपनी पसंद की एक कविता.
    मौज हुई!

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  2. dushchakra mein srishta sangrah mein aisi hi lajwab kavitaen hain

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  3. यह नुस्खा सही है। ज्ब भी चिन्ताएँ आ घेरें चप्पल, यदि पास हो तो, पर भात गिरा लो।
    घुघूती बासूती

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  4. दुश्वारियों से बचाने में ऐसी ही चीजों ने सार्थक भूमिकाएं निभाई हैं. सुंदर पंक्तियां.

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