आधुनिक भारत में पारसी थियेटर जो प्रकारांतर से हिन्दी सिनेमा की नींव भी बना, के अन्यतम अभिनेता-निर्देशक और बहुआयामी व्यक्तित्व के इन्सान मास्टर फिदा हुसैन के बारे में कुछ किस्से आपने यहां पिछली कड़ी में पढ़े। हिन्दी रंगमंच की दुनिया का जाना माना नाम है प्रतिभा अग्रवाल का। प्रतिभाजी ने 1978 से 1981 के दरम्यान मास्टरजी के साथ लगातार कई बैठकें कर उनके अतीत की यात्रा की। मास्टरजी के स्वगत कथन और बीच बीच में प्रतिभाजी के नरेशन की मिलीजुली प्रस्तुति बनी एक किताब जो मास्टरजी के जीवन के बारे में और इस बहाने पारसी रंगमंच की परम्परा और नाट्य परिदृश्य की जानकारी देनेवाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यहां इस पुस्तक से एक और दिलचस्प संस्मरण। मास्टर फिदा हुसैन के संस्मरण की पिछली कड़ी में हमने देखा कि किस तरह थियेटर के लिए उनकी दीवानगी और गाने-बजाने के शौक से उनके घरवाले ख़फा रहते थे। उनका गला बर्बाद करने के लिए उनके पान में सिंदूर खिला दिया गया जिससे उनकी आवाज़ चौपट हो गई। किसी तरह एक पहुंचे हुए फकीर की मदद से उनकी आवाज़ लौटी और वे फिर अपनी दुनिया में रमने लगे। 

इससे आगे का क़िस्सा खुद मास्टरजी की ज़बानी-अगली कड़ी में। बड़े हर्फों के लिए फ्रेम पर क्लिक करें।
प्यारे अजित भाई,
ReplyDeleteइस पुस्तक से अभी और कुछ आना चाहिए, मैं तो फिदा हूँ , पुस्तकों का ग़ज़ब खजाना है अपके पास ! शब्दों के खानदान के पुरोहित तो आप हैं ही. प्रतिभा अग्रवाल जी की ही एक अन्य पुस्तक' प्यारे हरिचंद जू' (!) भारतेन्दु पर है न? उससे भी कुछ..
आपके कारण आज की सुबह उम्दा और मस्त हुई!
Sir
ReplyDeleteSoochanatmak aalekh ke liye aabhaaree hain
अजित भाई
ReplyDeleteअति उत्तम! अगला हिस्सा भी जल्दी लगा डालिये.
किताब कहीं से तो खोज निकालनी ही होगी अब. सुन्दर पुस्तक से परिचित कराने का आभार साहेब!
कबाड़खाना का मैं नियमित पाठक तो रहा ही,
ReplyDeleteअतीत के ऎसे रोमाँचक झलकियों के लिये किन शब्दों में आपका आभार प्रदर्शन करूँ ?
काश, मैं स्वयँ भी आपके सँग खड़ा हो पाता !
प्रतीक्षा है, आगे की कड़ियों की !