
विभिन्न प्रकार के साधनों की सहायता से टुन्न होने का सत्कर्म करने वालों को रायते का महात्म्य भली भांति मालूम है।
'शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ' लिखने वाले मरहूम शायर मजाज़ साहब पैरोडियां बनाने में एक्सपर्ट की हैसियत रखते थे। एक दावत में उन्होंने रायते पर कई शेर कहे थे। अलग अलग शायरों की स्टाइल में कहे गए थे ये शेर। फैज़ साहब की ज़मीन पर शेर देखें:
"तेरी अन्गुश्त-ऐ-हिनाई में अगर रायता आए
अनगिनत जायके यल्गार करें मिस्ल-ऐ-रकीब"
(यानी अगर तेरी मेंहदी लगी उँगलियों पर रायता लग जाए तो तमाम स्वाद शत्रुओं की तरह आपस में आक्रमण करने लगें।)
ख़ुद अपने एक शेर को मजाज़ साहब ने इस तरह रायतामय बनाया:
"बिन्नत-ऐ-शब-ऐ-देग-ऐ-जुनून रायता की जाई हो
मेरी मगमूम जवानी की तवानाई हो"
फिराक साब की ज़मीन पर फकत एक मिसरा है। साब लोग उसे पूरा कर सकते हैं:
"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."
पुराने चूल्हे की है आँच जरा - सी मद्धम.
ReplyDeleteटपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम .
देखते जाओ मेरे दोस्त , ऐ मेरे हमदम.
कबाड़खाने के इस रायते में मिर्च है कम.
टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम
ReplyDeleteटल्ली दिले बेकरार की यादों में चम चम ।
मजाज़ का वह चुटकुला भी ज़हन पर तैर गया- जब किसी शायर ने उनके शे’र की तारीफ़ में कहा- वाह क्या शेर है, इस पर मेरा दीवान कुर्बान.. तो मजाज़ ने कहा"यह ज़्यादती न करना, मुझे यह सौदा मंज़ूर नहीं।":)
ReplyDeleteमजेदार! चंद्रमौलेश्वर जी ने मजाज साहब का चुटकुला सुनाया वो भी गजब का है!
ReplyDeletemaja aa gya ....
ReplyDelete"टपक रहा है धुंधलकों से रायता कम कम ..."
ReplyDeleteमिर्च्री ज़ियादे चीनी कम ..चीनी कम
आब-ऐ-ज़म ज़म, भोले बम ..बम..बम .....