पिछले कुछ महीने वेक्यूम में गुज़रे हैं और अगले कुछ और भी ऐसे ही कटेंगे। मैं सफ़ेद भालू भी नहीं कि जान सकूँ यह एकरसता कब ख़त्म होगी। सन्नाटा इतना भीषण है और उसपर ये बेआवाज़ तिरते बादल, जो बेहया की तरह बिन बरसे चले जाते हैं। न सूरज ही दीखता है न पानी ही बरसता है। उसपर काम; जितना काम उससे ज़्यादा काम की चिंता। आज ही मेरी एक क्लाइंट ने लिखकर भेजा है "I am starting to lose the will to live"। जब उनका ये हाल है तो अपनी क्या बिसात?
दो शेर दो अलग अलग मूड के:
"हो जाऊंगा पल भर में मादूम मुझे देखो
एक डूबती कश्ती हूँ, एक टूटता तारा हूँ"
और
"मर्ग इक मांदगी का वक़्फ़ा है
यानी आगे चलेंगे दम लेकर"
फिलहाल तो पिछले कुछ दिनों से फरीदा आप की शरण हूँ... आगे का आगे देखेंगे क्योंकि हाल ऐसा नहीं कि तुमसे कहें...
हाल ऐसा नहीं के तुमसे कहें
एक झगड़ा नहीं के तुमसे कहें
ज़ेर-ऐ-लब आह भी मुहाल हुई
दर्द इतना नहीं के तुमसे कहें
सब समझते हैं और सब चुप हैं
कोई कहता नहीं के तुमसे कहें
किससे पूछें के वस्ल में क्या है
हिज्र में क्या नहीं के तुमसे कहें
अब खिजां ये भी कह नहीं सकते
तुमने पूछा नहीं के तुमसे कहें
... ज़ेर-ऐ-लब आह भी मुहाल हुई
ReplyDeleteदर्द इतना नहीं के तुमसे कहें ...
उफ़! बहुत ख़ूबसूरत!
वादा निभाने का शुक्रिया महेन्दर बाबू! जमाए रहो मैफिल!
मुझे पता नहीं बात क्या है लेकिन ऐसे हिम्मत न हारो बंधु। समय है, कितना भी मुश्किल क्यों न हो, इसे बीतना ही है।
ReplyDeleteअपना भी वही हाल है दोस्त। फिर भी पता नहीं क्यों लगता है कि कुछ अच्छा होने वाला है। फरीदा खानम की आवाज में छलक आए इस गजल के गुमान की कसम।
ReplyDeleteफरीदा आपा शरणम !
ReplyDeleteudas din achhi khabar le aate hain..
ReplyDeleteसुन्दर। पूरा सुन के ही माने।
ReplyDeleteahmed faraz ki gazal dukh fasana nahi ke tujhse kahen se milti julti hai. vaise kisne likhi hai ye wali gazal?
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