Sunday, August 30, 2009

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।


कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।
चंदन काठ के बनल खटोला ता पर दुलहिन सूतल हो।
उठो सखी री माँग संवारो दुलहा मो से रूठल हो।
आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा नैनन अंसुवा टूटल हो
चार जाने मिल खाट उठाइन चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो
कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता छूटल हो



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7 comments:

  1. आप बहुत ही सराहनीय काम कर रहे है। कुमार गन्धर्व और वसुन्धरा के गायन की यह श्रृंखला हर व्यक्ति के सुनने लायक है।

    लिंक दे कर कहीं आप कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं कर रहे ?

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  2. सुन्दर! शुक्रिया सुबह-सुबह!

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  3. ओह कुमार जी । आह कुमार जी ।

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  4. कुमारजी का कभी भी , कहीं भी आना और गाना
    हमेशा एक उत्सव की सृष्टि करता है.शास्त्र की मर्यादा में रह कर रचनाशीलता का सृजन कुमारजी के पराक्रम में ताज़िन्दगी शामिल रहा. जब कुमार गान हो रहा हो तब हम ठगे जाकर मालामाल हो जाते हैं.ठगी जाती है हमारी नाटकीयता,बनावट,छदम व्यवहार और ज्ञान.
    हमारी मूढ़ता को धो देता है कुमार-स्वर.

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