Tuesday, September 15, 2009

बीते कल की ek बात



खूब मिली
खूब मिलती रही तुक
मसलन -
बिन्दी
चिन्दी
जिन्दी
रिन्दी

और ... और ...

कम पड़ गए तुक
छान मारी डिक्शनरी -किताब - बुक
फिर भी न मिला नया - सा तुक.
अब क्या करें ?

कुछ नहीं - साल भर इंतजार !

अब जाने भी दो यार !

7 comments:

  1. ये निराशा क्यों भाई ? जब हिन्दुस्तानी अपनी किसी भी विरासत
    पर गर्व करने में लजाते हैं , सकुचाते हैं तो भाषा को लेकर उनकी सहज -सुलभ
    लाज को लेकर दुःख क्या जताना ! आज तो हालत बहुत बेहतर है सिवा इसके की
    हिंदी में बात करना भर जान जाने की वजह बन जाता है देश के कुछ हिस्सों में. Nice rhyme & a lovely poem anyway .

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  2. भई हिन्दी का पर्व है कहो कि हमे गर्व है ।

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  3. आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.

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  4. एक बरस में कुछ और तुक मिला लेंगे वरना शब्द ही गढ़ डालेंगे. :)

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  5. खाक छानने भर ही से कर पाओगे प्यार
    करते रहोगे हमेशा गर तुक का इंतज़ार

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  6. माफ़ करें लेकिन यह व्यंग्य लज्ज़ास्पद है

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  7. बिन्दी
    चिन्दी
    जिन्दी
    रिन्दी
    &
    Hindi

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