Thursday, October 8, 2009

माफ़ करना ऊषा!



मैं नहीं समझता पी टी ऊषा इतनी कम विख्यात हैं कि यहां उनका परिचय दिया जाए.

जब भुस भराने की राष्ट्रीय हॉबी को परिष्कृत करने में लगे हमारे धौनी और सच्चू बाऊ जैसे राष्ट्रनायक नोटों की गड्डियों के गणन में व्यस्त थे, एक मई २००८ को कोझीकोड में हुई एक सेमिनार में पी टी ऊषा यह कह रही थीं(मैं फ़कत इस सेमिनार की बाबत छपी एक ख़बर के हिस्से का हिन्दी तर्ज़ुमा किए दे रहा हूं.):

कोझीकोड, मई १ : पूर्व एथलीट क्वीन पी टी ऊषा ने एक बहस में कहा कि इन्डियन प्रीमियर लीग में नाचने वाली नीममलबूस चीयरलीडर्स भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खातीं और भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा न हो.

माफ़ करें साहेबान, अब अनुवाद करने की इच्छा नहीं हो रही. ... आगे की ख़बर का लिंक यह रहा - http://www.topnews.in/sports/people/p-t-usha

अभी चन्द रोज़ पहले भोपाल में हमारे महान लोकतान्त्रिक कमीने सिस्टम ने इस विनम्र और कर्मठ स्त्री को रोने पर मजबूर कर दिया. जिस जिस ने उस सुन्दर चेहरे पर आंसू देखे होंगे और जो भी इस देश पर नाज़ किये जाने लायक चीज़ों की असल समझ रखता होगा, यकीनन एक बार उस की आंखें भी भर आई होंगी.

पिलावुल्लाकन्डी थेक्केपरम्बिल ऊषा! न तो मैं तुम्हारे नाम का सही उच्चारण जानता हूं, न उसका अर्थ. पता नहीं तुम ब्राह्मण हो या दलित (मान्यवर परभास जोसी बतला सकेंगे सम्भवतः) या हिन्दू या ईसाई.

कपिल देव और मोहिन्दर अमरनाथ के बाद अगर किसी खिलाड़ी ने मुझे भारतीय होने के विनम्रता भरे गौरव से भर दिया था तो वह तुम थीं. मैं उस थोथे गौरव की बात नहीं कर रहा जिस की तूती मिसाल के तौर पर आज के अख़बारों, चैनलों में इस साल के नोबेल विजेता वेंकटरमण रामकृष्णन के भारतीय मूल का होने भर के कारण भर से बजाई जा रही है.

सुनो तो ऊषा, हमारे डंगवाल साहब ने क्या कहा था तुमसे कुछ साल पहले:

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पी टी ऊषा

वीरेन डंगवाल

काली तरुण हिरनी अपनी लम्बी चपल टांगों पर
उड़ती है
मेरे ग़रीब देश की बेटी
आंखों की चमक में जीवित है अभी
भूख को पहचानने वाली
विनम्रता
इसीलिए चेहरे पर नहीं है
सुनील गावस्कर की-सी छटा
मत बैठना पी टी ऊषा
इनाम में मिली उस मारुति कार पर
मन में भी इतराते हुए
बल्कि हवाई जहाज में जाओ
तो पैर भी रख लेना गद्दी पर
खाते हुए
मुँह से चपचप की आवाज़ होती है ?
कोई ग़म नहीं
वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
दुनिया के
सबसे खतरनाक खाऊ लोग हैं.

(क्रिकेटप्रेमी आज से कप वाली दीवाली मनाना चालू कर लेवें, बाई द वे)

16 comments:

  1. "काली तरुण हिरनी अपनी लम्बी चपल टांगों पर
    उड़ती है
    मेरे ग़रीब देश की बेटी
    आंखों की चमक में जीवित है अभी
    भूख को पहचानने वाली
    विनम्रता "----- सचमुच
    और ये तो ग़ज़ब है फिर-

    "वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
    दुनिया के
    सबसे खतरनाक खाऊ लोग हैं."
    ………………………………
    चीयरलीडर्स--आज तक समझ से परे है इनकी ज़रूरत है क्या आखिर?

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  2. अफ़सोस परी रोती है तो भी चर्चा नही और गदहे रेंकते भी है तो हंगामा हो जाता है।चीयर लीडर ये किसकी लीडर है नंगाई की?और क्रिकेट मे नंगाई की क्या ज़रुरत?क्या सचिन,युवी,बीरू,धोनी भीड़ नही खींच पा रहे है।

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  3. पांडे जी से पूरी तरह सहमत… क्रिकेट के चक्कर में अच्छे-अच्छे तु्र्रम खां बरबाद कर हो गये, और बरबाद भी कर दिये गये…
    सच बात तो ये है कि हमें असली घी पचता ही नहीं है… यदि सानिया मिर्ज़ा आज से 20 साल बाद भी भोपाल आयें तो हो सकता है कि मीडिया उनके सामने बिछा हुआ मिले… भले ही आज तक उसकी रैंकिंग 30-40 के ऊपर न गई हो। दिक्कत ये है कि मीडिया और भ्रष्ट खेल अधिकारियों के लिये पीटी ऊषा सिर्फ़ उड़नपरी हैं, जबकि सानिया सचमुच की परी… :)

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  4. जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
    दुनिया के
    सबसे खतरनाक खाऊ लोग हैं

    kya likha hai sar, gajab... ek tamacha...

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  5. सीधा सच यही है डंगवाल जी कि हमारे देश में राजनीति का खेल बन चुका क्रिकेट धीरे-धीरे अन्य सारे खेलो को निगलता जा रहा है ! आज अगर पी टी उषा को वाँछित सम्मान नहीं मिल पा रहा है तो उसकी भी वजह है यह क्रिकेट ! जरुरत है इस खेल को यहाँ से दरकिनार करने की ! फालतू में चंद लोगो को, सिर्फ बैट बल्ला घुमाने की एवज में खुदा समझ लिया जा रहा है !

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  6. यह भी तो गम है ज़माने में ... और क्या..!

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  7. और तुर्रा ये कि इन ...लों को राष्ट्रमंडल खेलों में भी पदक चाहिये झोली भर भर के ..शर्म तो बेच दी है इन्होंने

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  8. Those who made her cry are true kutte ,kameeney !

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  9. I agree with Munish. Lekin pura desh hi to aisa hai...

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  10. बिलकुल सही कहा,क्रिकेट को भगवान बना दिया,और पी.टी उषा जेसे एथेलीट को नकार दिया ।

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  11. क्या कहा जाय, ऐसा ही सिस्टम है अपने यहाँ और हम सब भी उसीके हिस्से है ।

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  13. उफ़ उषा यह हुआ भी तो मेरे प्रदेश में!!!

    हद है नीचता की

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  14. Par ek bhi to sharmshar nahi hai jimmedaron mein.

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  15. भटका हूँ मैं कबाड़ी की दुकान में एक अच्छी पुस्तक के लिए
    आज अनायास मिल गया ---कबाड़खाना--
    यह आलेख कबाड़ी की दुकान से मिलने वाली एक अच्छी पुस्तक से कम नहीं।

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