
क्रिकेट के प्रति भारत की दीवानगी के चलते हमारे यहां पर्याप्त क्षमता होने के बावजूद जिन खेलों के साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया है, बैडमिटन उनमें प्रमुख है। छोटे-छोटे कस्बों तक में घरेलू महिलाओं-बच्चों-सरकारी अधिकारियों आदि का पसंदीदा खेल होने के बावजूद विश्व बैडमिंटन परिदृश्य में भारत की उपस्थिति उतनी मज़बूत नहीं है, जितनी वह हो सकती थी। भारत में बैडमिंटन का ज़िक्र हो तो ज़ाहिर है सबसे पहले प्रकाश पादुकोण नाम के चैम्पियन खिलाड़ी का ही नाम आएगा।
1978 से 1980 के बीच पादुकोण को विश्व में पहली रैंकिंग प्राप्त थी। बैडमिंटन की तमाम बड़ी प्रतियोगिताएं जीत चुकने के बाद पादुकोण ने इस खेल की सबसे मुश्किल और प्रतिष्ठित मानी जाने वाली ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप 1981 में इंडोनेशिया में लिम स्वी किंग को हराकर अपने कब्ज़े में की थी। ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप का बैडमिंटन में वही महत्व है जो टेनिस में विम्बलडन का है या क्रिकेट में लॉर्ड्स के मैदान पर टेस्ट जीतने का।
प्रकाश पादुकोण के रिटायर होने के बाद सैयद मोदी से बहुत उम्मीदें थीं पर 1988 में बेहद विवादास्पद परिस्थितियों में लखनऊ में उनकी हत्या हो गई। इस त्रासद घटना के कोई दस सालों तक भारतीय बैडमिंटन के दिन कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं रहे। इस बीच आन्ध्र प्रदेश के नलगोंडा में जन्मा एक बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी इस खालीपन में किसी सनसनी की तरह उभर रहा था। पुलेला गोपीचंद नाम के एक खिलाड़ी की शैली में कई विशेषज्ञों को प्रकाश पादुकोण की झलक दिखाई देती थी, लेकिन 1995 में पुणे में चल रही एक प्रतियोगिता में डबल्स के एक मैच के दौरान गोपीचन्द के घुटने में घातक चोट लगी और उनका करिअर करीब-करीब समाप्त हो गया था।
एक सामान्य खिलाड़ी और एक बडे़ खिलाड़ी में क्या फर्क होता है, यह अगले एक साल में गोपीचंद ने कर दिखाया। चोट से उबरकर उन्होंने न केवल विश्व बैडमिंटन में अपनी रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार किया बल्कि 2001 तक आते-आते वह कारनामा कर दिखाया जो सिर्फ प्रकाश पादुकोण कर पाए थे। पुलेला गोपीचन्द ने चीन के चेन हांग को हराकर ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीती। इसके पहले नवंबर 2000 में उन्होंने ईपोह मास्टर्स में तत्कालीन नंबर एक खिलाड़ी इंडोनेशिया के तौफीक हिदायत को धूल चटाई थी।
जैसा कि बाज़ारवाद के इस युग में होना ही था, बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने के बाद गोपीचंद को नोटिस किया और एक कोला कंपनी ने अपने उत्पाद के विज्ञापन के लिए उनसे संपर्क किया। कोला के विज्ञापन के मायने होते हैं अच्छी खासी मोटी रकम, लेकिन तब भी अपने माता-पिता के साथ किराए के घर में रह रहे पुलेला गोपीचंद ने साफ साफ मना कर दिया। आमतौर पर बहुत शांत रहने वाले इस खिलाड़ी ने इस बात को कोई तूल नहीं दी, न ही किसी तरह की पब्लिसिटी की। मीडिया तक को इस बात का पता दूसरे स्त्रोतों से लगा।
एक इंटरव्यू में उनसे इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, चूंकि मैं खुद सॉफ्ट ड्रिंक नहीं पीता, मैं नहीं चाहूंगा कि कोई दूसरा बच्चा मेरी वजह से ऐसा करे। मैं कोई चिकित्सक नहीं हूं, लेकिन मुझे पता है कि सॉफ्ट ड्रिंक्स स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और मैंने अपने मैनेजर को इस बारे में साफ-साफ कह रखा है कि मैं किसी भी ऐसे प्रॉडक्ट के साथ नहीं जुड़ूंगा, चाहे वह सॉफ्ट ड्रिंक हो या सिगरेट या शराब।
पैसे को लेकर भी उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था: "मेरे लिए ज़्यादा महत्व उसूलों का है और मैं किसी भी कीमत पर अपने उसूलों को पैसे के तराज़ू पर नहीं तोल सकता।"
आज जिस सायना नेहवाल के प्रदर्शन पर हम प्रसन्नतामिश्रित गौरव महसूस करते हैं उसे इस मुकाम पर ला पाने का पूरा श्रेय इस चैम्पियन गोपीचन्द को जाता है.
क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे क्रिकेटरों के पास भी ऐसे कोई उसूल हैं?
(यह लेख मैंने कुछ समय पहले 'नवभारत टाइम्स' के खेल पन्ने के लिए लिखा था. नभाटा का आभार.)
गोपीचंद के बारे में मैंने कुछ दिन पहले अहा जिंदगी में भी पढ़ा था। अच्छा लगा इस बारे में विस्तार से पढ़ना!
ReplyDeleteपुलेला के बारे में यह जानना बड़ा सुखद लगा...shukriya..
ReplyDeleteक्या नंगई की हद तक नाच करते क्रिकेट सितारों और उनके प्रशंसक, संचार के माध्य, जो क्रिकेट में जीत हार की कसौटी को ही देश प्रेम की परिभाषा के खांचे में फ़िट करते हैं क्या वे भी जानते हैं कि ऎसे लोग आज भी मौजूद हैं- "मेरे लिए ज़्यादा महत्व उसूलों का है और मैं किसी भी कीमत पर अपने उसूलों को पैसे के तराज़ू पर नहीं तोल सकता।"
ReplyDeleteगोपीचंद के बारे में मेरे लिए यह जानकारी एक उम्मीदों भरी सुबह है। आभार भाई आशोक।
बहुत बहुत आभार।
बहुत जरूरी पोस्ट। पिछले साल एक प्रकाशक ने कक्षा ६-७ के लिए पाठय-पुस्तक के लिए राय मांगी दी कि किस खिलाङी को शामिल किया जाना चाहिए जो बच्चों के लिए आर्दश हो, और बिना एक पल की देरी किए मैंने कहा पुलेला गोपीचंद। हालांकि बाज़ार में यह नाम बहुत लोकप्रिय न होने की वजह से शुरुआत में उन्होंने थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई लेकिन अंततः उन्होंने बात मानी और वह आलेख भी मुझसे ही लिखवाया।
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए दिल से शुक्रिया।
पुलेला गोपीचंद जिंदाबाद! पैसापिपाशु खिलाड़ी मुर्दाबाद!
ReplyDeleteThanks for this article Ashok. Pulela ko SALAM.
ReplyDeleteपत्नी इस खेल की राष्ट्रीय खिलाडी रहीं हैं तो उनके हवाले से यह और जोड दूं कि पादुकोण और गोपी ने इस खेल को अफ़सर शाही के शिकंजे से एक हद तक मुक्त कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
ReplyDeleteis daur mein aisi pratibaddhta! koii Kapil-vapil aisa nahi kar sakta
ReplyDeleteGreat man indeed !
ReplyDeleteIt is a pleasure sure to see an ardent cricket lover writing on Badminton . Cricket died the day it bacame one day !
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