Wednesday, November 18, 2009

प्रश्न और पागलपन


आज एक बार फिर निज़ार क़ब्बानी की दो प्रेम कवितायें !

प्रश्न

मेरे महबूब ने पूछा :
'क्या अन्तर है
मुझमें और आसमान में ?'

अन्तर , मेरे प्यार,
बस इतना ही :
कि जब हँसते हो तुम
तो मैं भूल जाता हूँ आसमान ।

पागलपन

ओह, मेरे प्यार
अगर तुम पहुँच जाओगे
पागलपन के मेरे मुकाम तक
तो गला दोगे अपने सारे आभूषण
बेच आओगे अपने कंगन
और मेरी आँखों में
सो जाओगे
सुख की नींद ।
-------------

( निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें और परिचय यहाँ और यहाँ और यहाँ भी )

11 comments:

  1. एक लफ्ज में.....बेहतरीन...

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  2. असाधारण शक्ति का पद्य

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  3. निज़ार क़ब्बानी की रचनाएँ-गजब!! आपका आभार!!

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  4. ''और मेरी आँखों में
    सो जाओगे
    सुख की नींद ।
    -------------''

    अच्छी अभिव्यक्ति ...
    सधे भाव और सधी भाषा ...

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  5. कब्बानी जी पर सिलसिलेवार रूप से साडी कवितायेँ पढ़ी हैं... जैसे आपका दिल आया.. हमारा भी आया...

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  6. निज़ार क़ब्बानी की रचनाओं का रसास्वादन के लिए धन्यवाद!!

    - सुलभ

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  7. गहरी सोच दोनों के लिए कहूँगा वाह वाह अति सुंदर.

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