Wednesday, January 20, 2010

लो फिर बसन्त आई



ताहिरा सैयद कर रही हैं बसन्त का इस्तकबाल.



यहां इस बात का ज़िक्र बेमानी नहीं होगा कि यही रचना उनकी माता मल्लिका पुखराज भी गा चुकी हैं.

(फ़ोटो 'ट्रिब्यून' से साभार)

5 comments:

  1. आनन्दं आनंद अशोक भाई. एक मुद्दत बात सुना इसे. इस गीत को दोनों ही आवाजों में सुनने में सुने का अपना आनंद है.

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  2. अशोक भाई, यहाँ तो आम के पेड़ पे कोयल कूकती रहती है विकल होकर और में भी. ये इस मुलक केरल में नहीं है किसी बसंत पंचमी का रंग. यहाँ तो लोहरी, पोंगल, बिहू या संक्रांति भी नहीं थी. पर ओणम पर खूब फूल सजते हैं. ये तस्वीर देखकर ही मन खुश-उदास हो लिया. सुनकर तो...

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  3. geet to ghar jaakar hi sun paaunga, aour nishchit roop se jaaniye sunane ke liye betaab hu.

    BASANT PANCHAMI KI AAPKO SHUBH KAMNAYE.

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  4. क्या गज़ब याद दिला दी अशोक भाई, मैंने 1980 या 81 में लखनऊ के बेग़म हज़रत महल पार्क में मलिका पुखराज और उनकी बेटी ताहिरा दोनों को गाते सुना है. क्या अद्भुत शाम थी वह. ताहिरा के पति भी उस दिन साथ आये थे और कम्पेयरिंग कर रहे थे. पाकिस्तान के राजनीतिक हालात पर उस दिन उन्होंने खूब चुटीली किंतु प्रच्छ्न्न टिप्पणियाँ की थी. ' लो फिर बसंत आई ' उस दिन माँ-बेटी दोनों ने मिल कर गाया था और उसी तरह ' अभी तो मैं जवान हूँ..' भी.

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  5. आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

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