Monday, March 1, 2010

अज़ब ' नज़ीर' है फ़रखु़न्दा हाल होली का


* सदा आनन्दा रहै यहि द्वारे...
* सभी कबाड़ियों को और सभी कबाड़ियों की ओर से सभी को होली मुबारक !

* इस बीच आप सभी साथ कविवर नज़ीर अकबराबादी ( १७३५ -१८५० ) के साहित्य से होली की चुनिन्दा रचनाओं के चुनिन्दा अंश साझा कर इस ठिकाने के एक अदने - से सदस्य को सचमुच आनन्द आया और इसी बहाने इस बड़े कवि के बड़प्पन से रू - ब - रू होने का अवसर मिला। खुशी है कि होली की इन पोस्ट्स को पसंद किया गया और नज़ीर के बारे में और जानने की उत्सुकता कई साहित्य प्रेमियों को हुई।इस प्रयास को एक साझे मंच का साझा प्रयास समझा जाय और होली का आनन्द किया जाय !

* नज़ीर की यह बात उनकी होलियों पर ही लागू मानी जा सकती है -

कहीं न होवेगी इस लुत्फ की मियां होली।
कोई तो डूबा है दामन से लेके ता चोली।

* इस पोस्ट के साथ यह कड़ी अब यहीं विराम लेती है।आइए होली के रंग डूबे अपन देखते हैं नज़ीर अकबराबादी की एक और होली के चयनित अंश.....

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बजा लो तब्लो तरब इस्तमाल होली का।
हुआ नुमूद में रंगो जमाल होली का।
भरा सदाओं में रागो ख़याल होली का।
बढ़ा खुशी के चमन में निहाल होली का।
अज़ब बहार में आया जमाल होली का।

निशातो ऐश से चलत तमाशे झमकेरे।
बदन में छिड़कवां जोड़े सुनहरे बहुतेरे।
खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली घेरे।
पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो मुँह फेरे।
यह कहने देते हैं झट रंग डाल होली का।

जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते हैं।
तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते हैं।
लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते हैं
गुलाल मुँह पे लगा गुलमचा सुनाते हैं।
यही है हुक्म अब ऐश इस्त्माल होली का।

कहीं तो रंग छिड़क कहें कि होली है।
कोई खुशी से ललक कर कहें कि होली है।
अबीर फेंकें हैं है तक कर कहें की होली है।
गुलाल मलके लपक के कहें कि होली है।
हरेक तरफ से है कुछ इत्तेसाल होली का।

यह हुस्न होली के रंगी अदाए मलियां हैं।
जो गालियां हैं तो मिश्री की वह भी डलियां हैं।
चमन हैं कूचां सभी सहनो बाग गलियां है।
तरब है , ऐश है, चुहलें हैं , रंगरलियां हैं।
अज़ब ' नज़ीर' है फ़रखु़न्दा हाल होली का।

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इत्तिसाल = मेल - मिलाप
तरब = आनन्द
फ़रखु़न्दा = खुशी का

1 comment:

  1. आख्ररी para मे तो शब्दो की वो धोलक बजी है भैय्या..की पुछो मत..

    नायाब तोहफ़ा है ये श्रन्खला ,होली का.....
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    हर होली पर , इस बार से ’ नजीर ’ भी शामिल होन्गे.

    कभी बुझा होगा जो मन किसी होली पे,

    जहा अबीर,गुलाल,भोली और धोलक भी चूकेन्गे,

    ’नज़ीर’,बुझ्ती लौ को भी रोशनी फ़ुन्केन्गे /

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    एक शान्दार प्रस्तुति..एक जान्दार प्रस्तुति....भाई साब /

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