Wednesday, March 10, 2010

एक पुरानी यात्रा की यादें - ४

(पिछली पोस्ट से आगे)

अगले दिन होली है और मैंने उनकी नाप के कुरते पहले ही से ले कर रखे हैं। दोनों के चेहरों पर पहला रंग घर में ही लगाया जाता है। फिर लोगों का आना शुरू होता है और शुरूआती हिचक और संकोच के बाद दोनों ने रंग लगाने और गले मिलने का तरीका सीख लिया है। बच्चों ने उन्हें भिगोने को छत में रंग की बाल्टियां तैयार कर रखी हैं। हमारे मोहल्ले में उनके आगमन का चर्चा है और महिलाओं की खास मांग पर उन्हें मोहल्ले के मन्दिर में ‘खास महिलाओं वाले’ कार्यक्रम तक को शूट करने को बुलाया जाता है।



होली बीत चुकने के बाद हमारा कार्यक्रम पहाड़ों की तरफ जाने का है।

रानीखेत में एक बेहद पुरानी इमारत में उनके ठहरने की व्यवस्था है। करीब एक सौ तीस साल पुराने ‘होम फार्म’ का कायाकल्प करने के बाद उसे एक हैरिटेज रिसॉर्ट में तब्दील कर दिया गया है। हिमालय की चोटियां यहां से साफ नज़र आती हैं और करीब एक किलोमीटर के व्यास में होम फार्म को छोड़ कोई और इमारत नहीं है। आस्ट्रियाई रेलवे में दूरसंचार सुनिश्चित करने वाले विभाग के मुखिया वेरनर को हैरत है कि इस बियावान में भी उसके मोबाइल में पूरा सिग्नल है। रानीखेत आने से पहले मैं उसकी विशेष मांग पर उसे हल्द्वानी का अत्याधुनिक टेलीफोन एक्सचेन्ज दिखा लाया हूं। भाग्यवश वहां का महाप्रबन्धक मेरा स्कूली दिनों का सहपाठी है। हल्द्वानी से रानीखेत के रास्ते भर वेरनर हमें बताता रहा है कि बहुत जल्द भारत दूरसंचार के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर रहा होगा।

मुझे याद पड़ता है कुछ दिनों से चार्ली ने भारत की किसी भी चीज की तुलना अफ़्रीका से नहीं की है।

रानीखेत अपने होटल के एकान्त में दोनों अपनी डायरियां लिखते हैं और शाम को आर्मी क्लब में एकाध बीयर पीने के बाद हम लोग देर तक गपशप करते रहते हैं। चार्ली की बातों से जाहिर होता है कि वह अपने काम से खुश नहीं है। वह चाहता है फिल्में बनाए लेकिन पैंतालीस साल का हो चुकने पर अब वह किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठा सकता। क्या पता उसके भीतर उतनी प्रतिभा न हो? क्या पता एक बार नौकरी छोड़ देने पर असफल हो जाने की दशा में उसे दुबारा कोई नौकरी मिले या न मिले? वह अकेला रहता है और किसी स्त्री के साथ रहना उसकी फितरत में नहीं है। उसकी तबीयत भी कोई खास अच्छी नहीं रहती। वह तो यहां तक समझता है कि उसका दुनिया में कोई दोस्त नहीं है।

जो भी हो चार्ली से बात करना मुझे पसन्द है और तंजानिया के उसके अनुभवों का खजाना मुझे आकृष्ट करता रहता है। वह सात बार वहां जा चुका है और एक पूरे गांव को उसने गोद लिया हुआ है जहां उसकी कमाई का अच्छा खासा हिस्सा खर्च होता है।



रानीखेत क्लब में पिछले पिचहत्तर साल से काम कर रहे बहादुर दा* नब्बे साल से ज्यादा उमर के हैं और अब भी बेहद फिट हैं। क्लब में आने वाले नौसिखुओं को बिलियर्डस टेबल पर उल्टे पुल्टे शॉट मारता देख कर वे अकसर नाराज हो जाते हैं लेकिन फिर खुद अपनी मोटे शीशों वाली ऐनक ठीक करके सही से शॉट मारना भी सिखा देते हैं। अंग्रेजी राज की सैकड़ों हजारों छवियां बार बार उनके जेहन में आती रहती हैं और उन्हें उन में खो जाना पसन्द है। खुद एक पेशेवर बिलियर्डस क्लब का सदस्य चार्ली बहादुर दा से बहुत प्रभावित है और वायदा करता है कि विएना में अपने बिलियर्डस क्लब में उनकी तस्वीर टांगेगा। बाद के महीनों में मैंने खुद अपनी आंखों से देखा कि उसने अपना वायदा बखूबी निभाया।

रानीखेत के बाद हम अल्मोड़ा जाते हैं और एक पूरा दिन वहां एक संगीतकार परिवार के साथ गुजार कर बिनसर। बिनसर में रात होने ही वाली है। बादलों से आसमान ढंका हुआ है लेकिन बादलों और कोहरे के पीछे हिमालय की एक विशाल चोटी हमारे बहुत नजदीक होने का अहसास देती है। मैं अपने कमरे की खिड़की से देखता हूं : चार्ली बाहर खड़ा एकटक उस अस्पष्ट दिख रही चोटी पर निगाहें टिकाए है। गरम जैकेट डालकर मैं उसके पास जाता हूं। उसके चेहरे पर आंसू हैं। वह मुझे देखता है और अपना हाथ मेरे कन्धे पर रखकर दूसरे से आंखें पोंछता कहता है : "माउन्ट न्गोरोन्गोरो के बाद आज मैं पहली बार किसी पहाड़ के सामने रोया हूं।"

(*दुर्भाग्यवश बहादुर दा इस साल नौ फ़रवरी को दुनिया से विदा हो गए.)

(जारी)

5 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प .जारी रखिये

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bahut khoob

मुनीश ( munish ) said...

My heartfelt tributes to Bahadur da . No because he was a great billiards maestro or once he defeated some sexy female national tennis champ or because he could enjoy a peg or two of dark rum above the age of 90, but because he played the strokes of life so brilliantly ! Amen.

Chandan Kumar Jha said...

"माउन्ट न्गोरोन्गोरो के बाद आज मैं पहली बार किसी पहाड़ के सामने रोया हूँ"

ऐसे भी लोग होते है……………

sanjay vyas said...

चार्ली साहब का पर्वत की विराटता और उसमें अपनी लघुता को तिरोहित करने की इच्छा का भाव मेरी नज़र में उन्हें सच्चा अन्वेषक,घुमंतू साबित करता है.