Tuesday, June 1, 2010

याद पिया की आए



उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान (१९०२ –२५ अप्रैल १९६८) पटियाला घराने की शान थे. उनकी गायकी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई बुलन्दियों तक पहुंचाया था.

अपने गायन में खान साहेब ने अपनी जन्मभूमि कसूर - पटियाला घराने की मौसीक़ी में ध्रुपद अंग को तो आत्मसात किया ही, जयपुर और ग्वालियर घरानों की विशेषताओं को भी उसका हिस्सा बनाया.

विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चले गए लेकिन जल्द ही लौटकर वापस आ गए. बताते हैं कि वे कहा करते थे - "अगर हर खानदान में एक बच्चे को भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखाया गया होता तो यह दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन कभी न होता."

ठुमरी नामक विधा, ऐसा लगता है कि उस्ताद के लिए ही बनाई गई थी. उनकी गाई एक ठुमरी है हरि ओम तत्सत. इसके साथ एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है. किसी एक समारोह में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर ने ख़ानसाहेब के बाद गाना था. जब पंडिज्जी समारोह में पहुंचे तो उन्होंने खानसाहेब को गाते हुए देखा. इस बारे में उन्हें पहले नहीं बताया गया था. तनिक गुस्साए पंडित ओंकारनाथ ठाकुर ने यह कहते हुए वापस जाना शुरू किया किया कि वे किसी मुसलमान गवैये के साथ एक ही मंच पर नहीं गा सकते. खानसाहेब ने तुरन्त हरि ओम तत्सत गाना शुरू किया और बताया जाता है कि पंडिज्जी पूरे समय उन्हें सुनते रहे और बाद में उस्ताद के गले लग कर उनसे अपनी हरकत के लिए माफ़ी भी मांगी.

पहले यूट्यूब पर सुनिये हरि ओम तत्सत:



जिन दो ठुमरियों ने उस्ताद को बहुत बहुत ज़्यादा शोहरत दिलाई वे थीं याद पिया की आए और का करूं सजनी. खास तौर पर याद पिया की आए गाते समय वे जिस नाज़ुकी के साथ शब्दों को आकार देते हैं, वह उल्लेखनीय है. ऐसा लगता है कि वाकई कोई बिरहन अपने पिया को बेतरह याद कर रही है. यह ठुमरी उनकी गायकी का प्रतिनिधित्व करती है. पेश हैं ये दोनों अलौकिक रचनाएं -



(यूट्यूब का सहारा इस लिए लेना पड़ रहा है कि मेरे पास ये दोनों ठुमरियां .flac फ़ॉर्मैट में हैं और उन्हें मैं divshare पर अपलोड तो कर चुका हूं मगर वहां एम्बैड करने का विकल्प नहीं आ रहा. आप चाहें तो उन्हें डाउनलोड ज़रूर कर सकते हैं. डाउनलोड लिंक्स ये रहे - http://www.divshare.com/download/11553452-2d1 और http://www.divshare.com/download/11553451-b7d)

8 comments:

  1. आनंद आ गया.. :)

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  2. आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

    आचार्य जी

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  3. कितनी बार सुनकर लौट गया…वाह नहीं कहुंगा तो तौहीन होगी…नमन

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  4. यह सुबह उस्ताद को सुनकर बहुत खुश-उदास हो रही है. बार-बार सुनता हूं, सुनता जाता हूँ

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