Monday, June 21, 2010

दिल वो ज़ालिम कि उसी शख़्स पे मरता जाए




एच एम वी ने क़रीब बीस साल पहले उस्ताद मेहदी हसन साहब की लाइव कन्सर्ट का एक डबल कैसेट अल्बम जारी किया था: 'दरबार-ए-ग़ज़ल'. उस में पहली ही ग़ज़ल थी आलम ताब तश्ना की 'वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए'. बहुत अलग अन्दाज़ था उस पूरी अल्बम की ग़ज़लों का, गो यह बात अलग है कि उसकी ज़्यादातर रचनाओं को वह शोहरत हासिल नहीं हुई. हसन साहब की आवाज़ में शास्त्रीय संगीत के पेंच सुलझते चले जाते और अपने साथ बहुत-बहुत दूर तलक बहा ले जाया करते थे.

कुछेक सालों बाद बांग्लादेश के मेरे बेहद अज़ीज़ संगीतकार मित्र ज़ुबैर ने वह अल्बम ज़बरदस्ती मुझसे हथिया लिया था. उसका कोई अफ़सोस नहीं मुझे क्योंकि ज़ुबैर ने कई-कई मर्तबा उन्हीं ग़ज़लों को अपनी मख़मल आवाज़ में मुझे सुनाया. ज़ुबैर के चले जाने के कुछ सालों बाद तक मुझे इस अल्बम की याद आती रही ख़ास तौर पर उस ग़ज़ल की जिसका ज़िक्र मैंने ऊपर किया. यह संग्रह बहुत खोजने पर कहीं मिल भी न सका. कुछ माह पहले एक मित्र की गाड़ी में यूं ही बज रही वाहियात चीज़ों के बीच अचानक यही ग़ज़ल बजने लगी. बीस रुपए में मेरे दोस्त ने दिल्ली-नैनीताल राजमार्ग स्थित किसी ढाबे से सटे खोखे से गाड़ी में समय काटने के उद्देश्य से 'रंगीन गजल' शीर्षक यह पायरेटेड सीडी खरीदी थी. नीम मलबूस हसीनाओं की नुमाइशें लगाता उस सीडी का आवरण यहां प्रस्तुत करने लायक नहीं अलबत्ता आलम ताब तश्ना साहब की ग़ज़ल इस जगह पेश किए जाने की सलाहियत ज़रूर रखती है. ग़ज़ल का यह संस्करण 'दरबार-ए-ग़ज़ल' वाले से थोड़ा सा मुख़्तलिफ़ है लेकिन है लाइव कन्सर्ट का हिस्सा ही.

सुनें:



वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
दिल वो ज़ालिम कि उसी शख़्स पे मरता जाए

मेरे पहलू में वो आया भी तो ख़ुशबू की तरह
मैं उसे जितना समेटूं, वो बिखरता जाए

खुलते जाएं जो तेरे बन्द-ए-कबा ज़ुल्फ़ के साथ
रंग पैराहन-ए-शब और निखरता जाए

इश्क़ की नर्म निगाही से हिना हों रुख़सार
हुस्न वो हुस्न जो देखे से निखरता जाए

क्यों न हम उसको दिल-ओ-जान से चाहें 'तश्ना'
वो जो एक दुश्मन-ए-जां प्यार भी करता जाए

(अहद-ए-मोहब्बत: प्यार में किये गए वायदे, पैराहन-ए-शब: रात्रि के वस्त्र, हिना हों रुख़सार: गालों पर लाली छा जाए)

डाउनलोड  लिंक http://www.divshare.com/download/11766094-d41

9 comments:

  1. पसंद आई मखमली पेशकश...

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  2. बहुत सुंदर! अशोक जी एक गु$जारिश है, कृप्या ये भी $जरूर बता दें कि इसे लिखा किसने है.

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  3. वो कि हर अहद-ए-मोहब्बत से मुकरता जाए
    दिल वो ज़ालिम कि उसी शख़्स पे मरता जाए

    सदाबहार ...

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  4. इश्क़ की नर्म निगाही से हिना हों रुख़सार
    हुस्न वो हुस्न जो देखे से निखरता जाए

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  5. हुजूर,
    हमसे कहा होता, हम आपको ईमेल कर देते ये गज़ल आपके पास।
    इसको सुनकर देखेंगे कि अगर हमारा पास वाला वर्जन इससे अलग हुआ तो आपको ईमेल कर दी जायेगी।

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  6. अशोक भाई मजा आ रहा है सुनने में

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  7. कोई मुझे इसे डाउनलोड करने का तरीका बताएगा... मुझसे हो नहीं रही है... :-(

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  8. डाउनलोड लिंक लगा दिया है. लिंक पर क्लिक करने पर जो पन्ना खुलेगा उस पर डाउनलोड बटन क्लिक कर दें. बस. मनचाहे फोल्डर में सेव करें.

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